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‘ब्याज दरों’ के भार से उद्योग जगत परेशान

March 27, 2023

  • आठ माह में उद्यमी पर बढ़ा कर्ज का भारआठ माह में उद्यमी पर बढ़ा कर्ज का भार

भोपाल। कोरोना संक्रमण के कारण बदहाली की कगार पर पहुंचे उद्योग जगत की स्थिति अब बेहतर हो रही है। लेकिन बढ़ती ‘ब्याज दरोंÓ के भार से उद्योग जगत परेशान हैं। सरकार ब्याज दरें बढ़ा रही है। इससे सूक्ष्म व लघु उद्योगों पर अतिरिक्त वित्तीय भार आ रहा है। दरें बढऩे से 1 करोड़ लोन लेने वालों पर 8 माह में 1.33 लाख का भार बढ़ा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत कर दिया है। उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने इस वृद्धि के बाद उम्मीद जताई है कि बढ़ती महंगाई के बीच मई, यह ब्याज दरों में लगातार छठी वृद्धि थी, हालांकि मात्रा कम रही। केंद्रीय बैंक ने पिछले साल मई से रेपो दर में 2.50 प्रतिशत की वृद्धि की है। सरकार ने यह कदम वैश्विक दबाव के बीच बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण के लिए उठाया था। लगातार बढ़ती ब्याज दरों ने उद्योग जगत को चिंता में डाल दिया है। बीते 8 माह में जिस गति से ब्याज दरें बढ़ी हैं, उससे न्यूनतम 1 करोड़ लोन लेने वाले प्रदेश के हर उद्यमी पर 1.33 लाख का कर्ज का भार अलग से बढ़ गया है, जबकि फिक्सड डिपॉजिट रिसीप्ट (एफडीआर) में वृद्धि नहीं हुई। इससे उन्हें दोहरा नुकसान हो रहा है। एक तो ब्याज दर बढऩे से ऋण महंगा हो रहा है। दूसरा उनके बैंकों में जमा पैसों पर ब्याज दरें नहीं बढ़ रही।


बढ़ती ब्याज दरों से कर्ज महंगा
उद्यमियों का कहना है कि इस असंतुलन पर केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा है। एफडीआर रिवाइज करने की मांग की है। कोरोनाकाल के बाद से उद्योग पटरी पर तो लौटे, लेकिन बढ़ती ब्याज दरों से कर्ज महंगा होता जा रहा है। एफडीआर में वृद्धि नहीं हो रही। आंकड़ों के मुताबिक अप्रेल 2022 में रेपो रेट 4.0 प्रतिशत था। यह दिसंबर में 6.25 प्रतिशत हो गया, यानी उसमें 150 प्रतिशत की बढ़त हुई। इससे ब्याज दरें उसी गति से बढ़ी हैं। अभी रेपो रेट 6.50 प्रतिशत है। उद्यमियों का कहना है कि बढ़ी ब्याज दरों से सूक्ष्म एवं लघु उद्योग सेक्टर में निवेश हतोत्साहित होगा। मार्केट एक्सपर्ट आदित्य जैन मनयां बताते हैं नए डिपॉजिट और लोन पर बैंक ब्याज की नई दरें तय होती है। आरबीआई के अनुसार मप्र में 70 लाख ऐसे उद्यमी हैं, जिन्होंने ऋण लिया है। इसे ऐसे समझें कि किसी नें 8 माह पहले 1 करोड़ रुपए 4.50 प्रतिशत की दर से लोन लिया था। जो वर्तमान ‘ब्याज के हिसाब से 6.50 लाख हो गया। यानी 8 माह में 1.33 लाख ब्याज बढ़ा।

7.50 फीसदी ब्याज दर की मांग
ग्वालियर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने भी पत्र जारी कर कहा, सिडबी के दिए 83.25 लाख के ऋण पर ब्याज दर 6.15 से बढ़ाकर 8.40 प्रतिशत कर दी है। इसलिए उन्हें एफडीआर पर बढ़ी हुई 7.50 प्रतिशत की दर से देना चाहिए। संगठन ने कहा, ब्याज दर बढऩे से लोन पर अतिरिक्त भार आ गया है, जबकि उनके दिए गए मार्जिन मनी एफडीआर पर ब्याज दर में बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। अशोक पलोट का कहना है कि रेपो रेट बढऩे से डिपॉजिट बढ़ती है। मार्केट का पैसा डिपॉजिट में चला जाता है। इससे मंदी आती है। जहां तक एफडी की बात है तो इसकी ब्याज दर भी उसी अनुपात में बढऩा चाहिए। ग्वालियर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष जगदीश मित्तल का कहना है कि यदि हमारा पैसा बैंकों में जमा है तो उस पर भी रेट बढ़ाना चाहिए। सिडबी को इस बारे में बताया, पर अफसर मानने को तैयार नहीं हैं। सरकार लोन देने और लेने में दो नियम लगा रही है।

 

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