इंदौर। कोरोना वायरस महामारी (Corona virus epidemic) ने कई परिवारों को कभी न भूल पाने वाले जख्म दिए हैं। हंसते-खेलते परिवारों में मातम पसरा हुआ है। किसी के सिर से माता-पिता (parents) का साया उठ गया है तो किसी ने पति को खो दिया है। एक ही परिवार के कई लोगों की अर्थियां कुछ ही दिनों के अंतराल में उठी हैं। हालात ये हैं कि मातम करते-करते अब लोगों की आंखों में पानी भी नहीं बचा है, लेकिन अभी भी इंसानियत जिंदा है और ऐसे अनाथ हुए बच्चों और कई परिवारों की मदद के लिए सैकड़ों हाथ आगे आए हैं।
ऐसा ही एक हादसा इंजीनियरिंग ( engineering) की पढ़ाई कर रही इंदौर की एक युवती के साथ हुआ है। कोरोना (Corona) के कारण 24 घंटे में उसने अपने माता और पिता दोनों को खो दिया। पहले मां को कोरोना हुआ तो निजी अस्पताल में इलाज करवाया, लेकिन कुछ ही दिन में पिता भी संक्रमित हो गए और उन्हें भी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बड़ी मुश्किल से बेड मिले। दोनों की देखभाल और दवाइयों का इंतजाम करना उसके लिए एक बड़ी चुनौती थी। महंगा इलाज करवाया, इंजेक्शन खरीदे, लेकिन दोनों को ही वह बचा नहीं सकी। मां को घर लेकर आई, लेकिन फिर तबीयत बिगड़ गई और इलाज के लिए वह दूसरे शहर ले जा रही थी, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। कुछ ही घंटों बाद पिता के भी गुजरने की खबर मिली। पिता को तो अंतिम समय में देख भी नहीं सकी।
भौतिक शास्त्री ग्रुप ने बढ़ाया हाथ…लाखों रुपए की मदद की
युवती के पिता एक निजी स्कूल में फिजिक्स टीचर थे और मां गृहणी। पिता की मृत्यु के कुछ दिनों बाद युवती ने पिता के मोबाइल पर बने भौतिक शास्त्री ग्रुप (physicist group) पर एक मैसेज डाला कि मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई है। ग्रुप के सूर्यप्रकाश जायसवाल व मुकेश बागड़ी ने ग्रुप के सदस्यों से मदद की गुहार लगाई और बालिका के खाते में सहयोग राशि जमा करने का निवेदन किया। कुछ ही दिनों में लाखों रुपए उसके खाते में पहुंच गए। उसके कॉलेज की फीस और अन्य जरूरतों के लिए राशि एकत्र की गई। यह सिलसिला अभी भी जारी है। युुवती अपनी मौसी के पास रहती है। ग्रुप का कोई सदस्य उस बालिका से कभी नहीं मिला और उसके पिता से भी काफी कम ही लोग सीधे तौर पर परिचित थे, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी कई लोगों ने मदद की। इससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिली, जिससे कई और दूसरे लोग भी आगे आए।
निजी स्कूल टीचर के पति की हुई मृत्यु, साथी टीचरों ने की मदद
ऐसा ही एक अन्य मामला एक निजी स्कूल (private school) की टीचर का रहा। टीचर के पति की मृत्यु कोरोना (death corona) के कारण हुई। टीचर भी संक्रमित होकर काफी दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही। महिला टीचर की मदद के लिए स्कूल के स्टाफ ने हाथ बढ़ाया और कुछ ही दिनों में एक बड़ी राशि उनके खाते में जमा करवाई। महिला टीचर की एक बालिका है। विषम परिस्थितियों में भी लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं, यह समाज के लिए काफी सुखद पहलू है। आज जहां कुछ लोग आपदा में भी अवसर तलाश रहे हैं और कालाबाजारी कर अपनी जेब भर रहे हैं, ऐसे में थोड़ी सी सैलरी में भी अपनों के लिए मदद करने में लोग पीछे नहीं हट रहे हैं। इसलिए इंसानियत अभी जिंदा है…
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved