कलेक्टर का चला डंडा तो 50 प्रतिशत निराकरण कर इठलाने लगे अधिकारी, विवादित प्रकरणों को निपटने में ज्यादा रुचि
इंदौर। विभागीय कार्रवाई, वेतनवृद्धि रोकने, वेतन काटने,पद से हटाने जैसे कड़े कदमों ने इंदौर (Indore) जिले को एक बार फिर उसकी साख (credit) लौटा दी है। राजस्व प्रकरणों (revenue cases) में 55 जिलों में से 54वें नंबर पर गिरकर इंदौर ने नाक कटा ली थी, लेकिन कलेक्टर (Collector) की डांट और फटकार रंग लाई। प्रकरणों को अधिकारियों ने इतनी तेजी से निपटाया कि आवेदक भी हक्के-बक्के रह गए। हालांकि विवादित मामलों से ज्यादा विवादित प्रकरण में रुचि नजर आ रही है।
डंडे के दम पर 50 प्रतिशत काम निपटाए हैं
शांत और सरल छवि रखने वाले कलेक्टर आशीष सिंह को भी इंदौर के नवीन पद स्थापित एसडीएम और तहसीलदारों से सख्ती से काम करवाना पड़ा। नामांतरण के प्रकरण में अविवादित 72.3 प्रतिशत मामलों का निपटान किया गया है, वहीं नामांतरण में विवादित प्रकरणों की संख्या 59.31 प्रतिशत ही कर पाए हैं। बंटवारे को लेकर सभी राजस्व अधिकारी 50 फीसदी कम कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। अविवादित बंटवारा 49 प्रतिशत व विवादित प्रकरणों में 54.6 प्रतिशत ही आंकड़ा रहा। सीमांकन को लेकर अब भी जिला पिछड़ता जा रहा है। 50.02 फीसदी काम ही इस महीने पूरा किया गया है।
विवादित प्रकरणों में ज्यादा रुचि
दर्ज हुए प्रकरणों पर नजर दौड़ाई जाए तो नामांतरण के अविवादित 23031प्रकरण दर्ज हुए, जिनमें सिर्फ 16644 ही निराकृत हुए हैं, जबकि नामांतरण के मामलों में तेजी लाने के लिए साइबर तहसील की व्यवस्था भी चालू की गई है, लेकिन यहां भी सिर्फ अपील पर अपील दायर हो रही है। दूसरी तरफ विवादित नामांतरण के मामलों में 1871 प्रकरण दर्ज तो हुए, लेकिन इनमें 1109 को निराकृत भी कर दिया गया । इन आंकड़ों से अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर अविवादित मामलों में निराकरण देरी से क्यों हो रहे हैं। अविवादित बंटवारों में भी प्रशासन के अधिकारी 50 फीसदी काम कर पाए हैं। दर्ज हुए 1444 प्रकरणों में से सिर्फ 707 ही निराकृत हुए हैं, जबकि विवादित 13 दर्ज प्रकरणों में से 11 का निराकरण हो चुका है। सीमांकन में भी 8147 दर्ज प्रकरणों में से आधा काम करते हुए 4092 का आंकड़ा ही पूरा हो पाया है।
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