इंदौर न्यूज़ (Indore News) मध्‍यप्रदेश

इंदौर: योजना 140 के 6 साल पुराने 97 भूखंडों के टेंडर किए निरस्त, 4 गुना बढ़ गए रेट

लगभग 400 करोड़ ज्यादा कमाएगा प्राधिकरण

अग्निबाण ब्रेकिंग… पूर्व में प्रकाशित खबरों पर भी लगी सत्यता की मोहर, प्रशासनिक बोर्ड ने महाधिवक्ता की अनुशंसा को दरकिनार कर लिया महत्वपूर्ण फैसला, अन्यथा जांच का सामना करना पड़ता

इंदौर, राजेश ज्वेल
प्राधिकरण (IDA) की सबसे चर्चित और महंगी योजना 140 (Scheme 140) में भूखंडों (plots) के भाव आसमान पर पहुंच गए हैं। पिछले 4-5 साल में ही तीन से चार गुना तक रेट बढ़ गए। 2018 में प्राधिकरण ने आवासीय (Residential) उपयोग के 192 भूखंडों को टेंडर के जरिए बेचने की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें से 122 भूखंडों पर उच्चतम यानी अधिक राशि के टेंडर प्राप्त हुए। वहीं 24 टेंडरदाताओं (Tenderers) ने अपनी राशि वापस भी ले ली, मगर 98 टेंडरदाता बच गए। दरअसल प्राधिकरण ने जब टेंडर बुलाए उसी वक्त हाईकोर्ट ने भू-अर्जन के प्रकरणों में विचाराधीन याचिका के मद्देनजर इन भूखंडों के टेंडरों पर रोक लगा दी, जिसके चलते प्राधिकरण न तो टेंडर खोल पाया और ना ही आबंटन व उसके बाद की प्रक्रिया की जा सकी। अब प्राधिकरण के प्रशासनिक बोर्ड ने पिछली बैठक में इनमें से 97 भूखंडों के टेंडर निरस्त कर दिए हैं।


अग्रिबाण ने लगातार इन भूखंडों के टेंडर और उसको मंजूर करवाए जाने के खेल को उजागर किया था, जिसमें शहर के रसूखदारों से लेकर प्राधिकरण के राजनीतिक बोर्ड में शामिल रहे लोगों की भी मंशा थी कि 2018 के रेट पर ही इन भूखंंडों का आबंटन कर दिया जाए। इतना ही नहीं, सालभर पहले प्रदेश के महाधिवक्ता से भी यह अभिमत ले लिया कि ब्याज की राशि लेकर प्राधिकरण इन भूखंडों का आबंटन कर सकता है। जबकि हकीकत यह है कि प्राधिकरण अगर 6 साल पुराने रेट पर इन बेशकीमती 98 भूखंडों का आबंटन करता है तो उसे 300 से 400 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता, क्योंकि 6 वर्षों में इन भूखंडों की कीमत 3 से 4 गुना बढ़ चुकी है। खुद प्राधिकरण ने योजना 140 के गत वर्ष तक प्राप्त टेंडरों के आधार पर गणना कर 300 करोड़ रुपए की हानि होने की बात स्वीकार की थी। दरअसल जब प्राधिकरण ने ये टेंडर बुलाए थे उसी वक्त भू-अर्जन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली और 20 फीसदी विकसित भूखंड हासिल करने की याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की थी। हालांकि अब ये सभी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट चली गई हैं। मगर इन याचिकाओं के चलते तत्समय हाईकोर्ट ने प्राधिकरण के इन टेंडरों पर रोक लगा दी थी, जिसके चलते प्राधिकरण ना तो इन टेंडरों को खोल पाया और ना ही टेंडरदाताओं द्वारा जमा की गई ड्राफ्ट की राशि को अपने खाते में जमा कर सका। यानी प्राधिकरण ने इन टेंडरों पर किसी तरह का कोई निर्णय नहीं लिया था। जबकि जिन लोगों ने ये टेंडर भरे वे प्राधिकरण पर दबाव बनाते रहे कि उनके टेंडरों को मंजूरी दे दी जाए। अग्रिबाण ने इस बारे में जो खबरों का प्रकाशन किया उस पर सत्यता की मोहर भी लग गई और अभी प्राधिकरण बोर्ड की 19.06.2024 को हुई बोर्ड बैठक में संकल्प पारित करते हुए 97 भूखंडों के टेंडर निरस्त कर दिए। सिर्फ एक भूखंड पर चूंकि हाईकोर्ट ने स्टे दे रखा है। लिहाजा उसे छोड़ा गया है। मगर उसके खिलाफ भी हाईकोर्ट में अपील कर दी गई है। दरअसल प्राधिकरण पर लगातार दबाव बनाया जाता रहा कि इन 98 भूखंडों को उसी रेट पर आबंटित कर दिया जाए या अधिक से अधिक ब्याज ले ले। मगर दूसरी तरफ प्राधिकरण का खुद का मानना है कि इस निर्णय से उसके आर्थिक हितों पर तगड़ी चोंट पड़ेगी, क्योंकि अब इन भूखंडों की कीमत 3 से 4 गुना बढ़ गई है, जिससे सीधे-सीधे लगभग 400 करोड़ रुपए की चपत पड़ सकती है और लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू में शिकायत तथा जांच की तलवार अलग लटकी रहेगी। चूंकि प्राधिकरण में अभी प्रशासकीय बोर्ड है, लिहाजा संभागायुक्त और अध्यक्ष दीपक सिंह, कलेक्टर आशीष सिंह तथा प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार सहित अन्य ने यही निर्णय लिया कि इन 97 भूखंडों के टेंडर निरस्त किए जाएं और नए सिरे से इनके टेंडर जारी हों। अभी पिछले दिनों हुई बोर्ड बैठक में अतिरिक्त विषय के रूप में इसका प्रस्ताव रखा गया था, जिसे मंजूर कर लिया गया और बकायदा संकल्प भी पारित कर 97 भूखंडों के टेंडर निरस्त कर दिए हैं। सिर्फ एक भूखंड क्र.-7 सीबी, जिसमें आयुष गर्ग का टेंडर है उस पर हाईकोर्ट ने पिछले दिनों 16.05.24 को पुनर्विचार करने के निर्देश प्राधिकरण को दिए हैं, जिसके चलते प्राधिकरण बोर्ड ने फिलहाल इस भूखंड का टेंडर निरस्त नहीं किया, लेकिन हाईकोर्ट आदेश के खिलाफ अपील अवश्य कर दी है।

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