इंदौर। अग्रिबाण ही एकमात्र ऐसा अखबार रहा जिसने यह स्पष्ट लिखा था कि मेट्रो का अंडरग्राउंड रुट नहीं बदल सकता, क्योंकि केन्द्र सरकार ने जहां इसकी मंजूरी दी, वहीं गजट नोटिफिकेशन भी कर दिया है और अंतत: हुआ भी यही। पिछले दिनों मेट्रो कॉर्पोरेशन ने इंदौर के पुराने तय किए गए अंडरग्राउंड रुट के ही टेंडर आमंत्रित किए और अभी तकनीकी मंजूरी भी दी जा रही है। 6 कम्पनियों ने ये टेंडर जमा किए हैं और ढाई हजार करोड़ रुपए से अधिक का यह काम होना है। एमजी रोड हाईकोर्ट से राजवाड़ा, बड़ा गणपति होते हुए एयरपोर्ट तक यह अंडरग्राउंड ट्रैक निर्मित होगा। बीते कई महीनों से डाले गए अड़ंगे के कारण टेंडर मंजूरी की प्रक्रिया ठप पड़ी रही और इससे भी करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।
इंदौर मेट्रो के अंडरग्राउंड रुट को लेकर जनप्रतिनिधियों और मीडिया ने कुछ समय पूर्व हल्ला मचाया और यह भी घोषित कर दिया कि अंडरग्राउंड रुट बदल गया है और अब एमजी रोड की बजाय खजराना या बंगाली चौराहा से मेट्रो अंडरग्राउंड रहेगी। जबकि अग्रिबाण ने उस वक्त भी यह स्पष्ट लिखा था कि 1600 करोड़ रुपए की राशि रुट बदलने के एवज में जो अतिरिक्त खर्च होगी उसका भुगतान कौन करेगा और इंदौर के सारे जनप्रतिनिधि झूठे हैं, जो पहले अंडरग्राउंड ट्रैक को मंजूरी देकर विभागीय मंत्री के सामने पलट गए और अफसर भी उस बैठक में खामोश रहे। इंदौर मेट्रो के 32 किलोमीटर के पहले चरण में अभी गांधी नगर से लेकर सुपर कॉरिडोर, एमआर-10, विजय नगर, रेडिसन से लेकर रोबोट चौराहा तक साढ़े 17 किलोमीटर का एलिवेटेड कॉरिडोर निर्मित किया जा रहा है और रोबोट से लेकर पलासिया, एमजी रोड तक के एलिवेटेड कॉरिडोर का भी ठेका मेट्रो कॉर्पोरेशन ने कई माह पूर्व ही दे दिया, जिसके चलते अभी खजराना चौराहा तक काम शुरू भी हो गया है। उसके बाद का काम कुछ लोगों द्वारा लगाए गए अड़ंगे के चलते रुका पड़ा है और दूसरी तरफ अंडरग्राउंट रुट के बुलवाए टेंडरों की मंजूरी भी अटक गई।
मजे की बात य ह है कि इंदौर हाईकोर्ट पहले ही जनहित याचिका इस मामले में खारिज कर चुका है और यहां तक कि हाईकोर्ट ने अपनी खुद की जमीन अंडरग्राउंड ट्रैक का काम शुरू करने के लिए मेट्रो कॉर्पोरेशन को देने के लिए एमओयू भी साइन किया है और अब फिर एक तथाकथित बुद्धिजीवी ने नए सिरे से जनहित याचिका लगाने का दावा किया है, तो दूसरी तरफ कुछ अन्य अड़ंगेबाज, जो इस तरह के हर काम में दखल देते हैं। जबकि मेट्रो जैसा विषय तकनीकी जानकारों और इंजीनियरों का है, उसमें भी फिजुल की राय देकर काम उलझाते हैं। अभी भी अंडरग्राउंड रुट को लेकर ये सारे तत्व फिर सक्रिय हो गए और नित नई अफवाहें भी फैला रहे हैं। दूसरी तरफ मेट्रो कॉर्पोरेशन ने पिछले दिनों अंडरग्राउंड रुट की टेंडर प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी और 6 कम्पनियों के टेंडर मिल भी गए, जिसमें एफ्कॉन्स इन्फ्रा और सैम इंडिया जेवी के अलावा जयकुमार इन्फ्रा प्रोजेक्ट लि., एचसीसी लि. और टाटा प्रोजेक्ट लि. जेवी, कुलेर माक, एजीर सानाई इन्सॉट, वेतहालुट एएस, एलएनटी लि. और आईटीडी सीमेंटेशन इंडिया लि. ने ये टेंडर प्रस्तुत किए हैं, जिसकी तकनीकी मंजूरी भी जल्द हो जाएगी और उसके बाद फिर फाइनेंशियल टेंडर खोले जाएंगे। मेट्रो प्रोजेक्ट के सूत्रों का कहना है कि अब अंडरग्राउंड रुट में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं बची है और शासन ने अभी तक इसे मंजूरी नहीं दी है। वैसे भी केन्द्र सरकार से मंजूरी लेना और उसके बाद फिर विश्व बैंक से मंजूरी लेना आसान नहीं है और जो कॉस्ट यानी कीमत बढ़ेगी वो 1600 करोड़ रुपए से अधिक रहेगी और उसका भुगतान कौन करेगा, अभी टेंडर विलंब के चलते ही लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है।
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