इंदौर कमलेश्वर सिंह सिसोदिया। केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Union Road Transport Minister Nitin Gadkari) ने पिछले दिनों मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की योजना को 9 हजार करोड़ की सौगातों से नवाजा था। इसमें सबसे अहम योजना पश्चिमी रिंग रोड थी, लेकिन केंद्रीय मंत्री गडकरी ने योजना पर सहमति तो प्रदान की, मगर उन्होंने इस योजना को नए सिरे से रिव्यू (Review) किए जाने को भी कहा है।
बहरहाल बीते तीन दशक से उम्मीदों पर जिंदा पश्चिमी रिंग रोड के अवरूध्द हिस्से को नए सिरे से रिव्यू किया जाता है तो पुरानी के साथ नई समस्याएं भी सामने आएंगी। इस संभावित समस्याओं को देख लगता नहीं कि योजना को यथार्थ का धरातल नसीब हो सके। वैसे आईडीए (IDA) इस योजना का डिजाइन परिवर्तित करता है तो शायद कुछ उम्मीद लगाई जा सकती है। इसके लिए उसे अपनी एयरपोर्ट कॉरिडोर (Airport-Corridor) यानी एयरपोर्ट (Airport) से पीथमपुर प्रोजेक्ट (Pithampur Project) को दोबारा जिंदा करना होगा। आईडीए (IDA) ने तीस साल पहले चंदननगर से आगे पश्चिमी रिंग रोड (Eastern Ring Road) को एयरपोर्ट से उज्जैन रोड तक का हिस्सा जोडऩे के पश्चिमी रिंग रोड योजना लागू की थी। सिरपुर, गाडऱाखेड़ी और छोटा बांगड़दा (Sirpur, Gadakhedi, Chhota Bangarda) की जमीनों को शामिल कर 1987 में लाई गई इस योजना को स्कीम नंबर 122 नाम दिया गया। सघन अवैध बसाहट को हटाने और जमीन अधिग्रहण और मुआवजे के नाम पर योजना गति नहीं पकड़ पाई। इसके बाद इस योजना को स्कीम नंबर 161 नाम दे दिया गया। इसके साथ ही इस योजना का दोबारा सर्वे भी शुरू करवाया गया। इससे आगे बात नहीं बनी। वैसे इस योजना की समयसीमा खत्म हो चुकी है। अगर आईडीए इस पर काम शुरू भी करता है तो पहले नए नाम से योजना लागू करना पड़ेगी। खास बात यह है कि 1987 में इस मार्ग में जो बाधाएं थीं, वह तो यथावत ही है। इसके अलावा बीते तीस सालों में वैध-अवैध कब्जे और कालोनाइजेशन भी बड़े स्तर पर हो चुका है।
दो योजनाओं को मिलाकर बन पाएगा रिंग रोड
पश्चिमी रिंग रोड (Eastern Ring Road) इंदौर के लिए अत्यंत जरूरी प्रोजेक्ट है। इसके आधे हिस्से के बन जाने से ही काफी कुछ राहत शहर को मिली, वहीं प्रोजेक्ट अधूरा रह जाने का खामियाजा भी तीन दशक से उठाना पड़ रहा है। एक बार फिर शहर के केंद्र की मदद की दरकार है। योजना पर चर्चा शुरू हुई है तो उम्मीद भी की जाना चाहिए कि शहर के लिए अहम माने जाने वाले इस प्रोजेक्ट को गति मिले। भारी मुआवजा और निम्न मध्यमवर्गीय इलाके में होने वाली बड़ी तोडफ़ोड़ से बचने के लिए एयरपोर्ट कॉरिडोर जैसी मृत योजना को फिर से अस्तित्व में लाकर पश्चिमी रिंग रोड योजना में समाहित कर लिया जाए।
मुआवजा भारी पड़ गया एयरपोर्ट कारिडोर प्रोजेक्ट पर
एयरपोर्ट से पीथमपुर तक के 19 किलोमीटर लंबे कारिडोर की जद में 15 गांवों की जमीनें आ रही हैं। मुख्यमंत्री ने ग्लोबल समिट (Global Summit) के दौरान जोरशोर से इस योजना की घोषणा तो कर दी, मगर जब आईडीए ने फिजिबलिटी सर्वे करवा लिया। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक करीब 19 किलोमीटर की फोरलेन सडक़ निर्माण में 15 गांवों की जमीन आ रही है। इन गांवों की जमीन का कुल एरिया 1290 . 42 हेक्टेयर है। अगर इन जमीनों का अधिग्रहण किया जाए तो सरकार को लगभग 1283.82 करोड़ रुपए का भारी भरकम मुआवजा देना पड़ेगा, जबकि कारिडोर निर्माण की लागत महज 20 करोड़ ही आ रही है। सोने से घड़ावन महंगी वाली बात जब सामने आई तो सरकार के हाथ-पांव फूल गए।
सडक़ निर्माण में आने वाले गांव और जमीनों का रकबा
नैनोद – 179.195 हैक्टेयर जमीन, रिंजलाय – 53.384, बिसनावदा – 106.447, नावदा पंथ 118.932, श्रीराम तलावाली – 85.054, सिंदोडा – 71.202, सिंदोड़ी – 45.207, नरालाय 2.583, शिवखेड़ी – 60.804, मोकलाय – 143.435, सोनवाय – 61.273, भैेसलाय – 225.349, बगोदा – 1.544, धन्नड – 76.815, भाटखेड़ी – 9.200, सिलोटिया – 49.995 – कुल एरिया – 1290 . 42 हैक्टेयर जमीन है।
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