इन्दौर। कांग्रेस मुक्त हो गया इंदौर… अद्भुत परिणाम… चौंकाने वाले नतीजे… जो सोचा नहीं था, वो जनता ने कर दिखाया… हर प्रत्याशी को भारी बहुमत से जिताया… यह कामयाबी थी, उस रणनीति की जिसने मालवा-निमाड़ की सुस्त फिजाओं में ऊर्जा भरने के लिए प्रदेश के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की उम्मीदवारी तय कर कार्यकर्ताओं में चेतना के ऐसे प्राण फूंके कि हर सिपाही जीत की जंग में कूद गया… इधर विजयवर्गीय आसपास की सभी सीटों पर दौड़-भागकर मोदी की ग्यारंटी, सरकार की योजना और विकास के वादे की गूंज गुंजाते रहे और परिणाम में पहली बार भाजपा ने अंचल की 66 में से 50 सीटों पर कब्जा कर प्रदेश के राजतिलक में अंचल का कंकू भेंट डाला… विजयवर्गीय के सत्ता से संगठन में पदार्पण से अंचल में गूंजती जनता की आवाज खामोश सी गई थी… इंदौर का नेतृत्व अधिकारियों के भरोसे की भेंट चढ़ गया था… न कोई सुनने वाला था… न समझने वाला… दिवाली पर घर तोड़ दिए जाते थे… लोगों से सडक़ों के चौड़ीकरण के लिए कुर्बानी तो ली, लेकिन टीडीआर देने की योजना शहर में ही दम तोड़ गई… इंदौर में नाइट कल्चर तो शुरू हुआ, लेकिन फाइट कल्चर बढ़ गया.. सराफा की चौपाटियां जैसे-तैसे बचीं तो सडक़ों पर वाहनों का अंबार लग गया… राजबाड़ा वसूली करने वालों की भेंट चढक़र पैदल चलने तक से दूभर हो गया… सफाई के तमगे लगे जा रहे हैं और गंदगियां बढ़ रही हैं… सडक़ों पर जलजमाव हो रहा है… घरों में पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा है… व्यापारी जीएसटी वालों से भिड़ रहा है तो बिल्डर-कालोनाइजर अफसरों से डर रहा है… सडकें यातायात से जूझ रही हैं और दस मिनट की दूरी घंटेभर में तय हो रही है… यकीन मानिए शहर के हालात ठीक नहीं हैं… शहर कांग्रेस मुक्त तो हो गया, लेकिन अब समस्यामुक्त होना चाहिए…और इस बात की ग्यारंटी भाजपाइयों को लेेना चाहिए…
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