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    इंदौर वन विभाग सागवान के 15 लाख पेड़ तैयार करेगा

  • June 19, 2024

    • बारिश शुरू होते ही इंदौर सहित महू, मानपुर, चोरल के जंगलों में
    • क्रोबार प्लांटिंग तकनीक से रूटसूट लगाकर तैयार करेंगे पेड़

    इंदौर। बारिश के पानी से जमीन की प्यास बुझते ही वन विभाग अपने सभी 4 फॉरेस्ट रेंज वाले इंदौर, महू, मानपुर, चोरल के जंगलों की वनभूमि पर 15 लाख सागवान के पेड़ तैयार करेगा। यह पेड़ तैयार करने के लिए वन विभाग क्रोबार प्लांटिंग तकनीक का इस्तेमाल करेगा। वन विभाग के यह 15 लाख पेड़ तैयार होने में शुरुआत में लगभग 7 साल का समय लगेगा। सागवान के 15 लाख पेड़ तैयार करने के लिए इंदौर वन विभाग विभागीय और लोक सामाजिक वानिकी की नर्सरी से लगभग 12 से 15 इंच के पौधे लेगा। इसके बाद इसके रूटसूट तैयार करवाकर क्रोबार तकनीक से पेड़ तैयार करेगा। 15 लाख पेड़ के लिए इंदौर, चोरल, महू, मानपुर फॉरेस्ट रेंज को अपनी-अपनी वनभूमि पर 3 लाख 50 सागवान के पेड़ तैयार करने का टारगेट दिया गया है। इस तरह इंदौर वन विभाग की चारों फारेस्ट रेंज मिलकर अपनी वनभूमियों पर सागवान के रूटसूट लगाकर 15 लाख पेड़ तैयार करेंगी।

    1 पेड़ तैयार करने में तीन साल तक 50 रुपए खर्च
    एसडीओ महू वन विभाग कैलाश जोशी के अनुसार सागवान का पेड़ तैयार करने में 3 साल में न्यूनतम यानी कम से कम 50 से 60 रुपए खर्च होते हैं। इस खर्च में पौधे की कीमत, उसकी देखरेख, सुरक्षा, निगरानी, कीटनाशक दवाइयों का खर्च शामिल है।
    शहर सहित जिले में 51 लाख पौधे लगाने के अभियान में सागवान के 15 लाख पेड़ तैयार करने की योजना को शामिल किया गया है। इसके लिए वन विभाग ने टेंडर निकालकर विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया है। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का आदेश मिलते ही बारिश के दौरान सागवान की क्रोबार प्लांटिंग शुरू कर दी जाएगी।


    महेंद्रसिंह सोलंकी, डीएफओ, वन विभाग, इंदौर
    क्रोबार तकनीक से पौधे से इस तरह बनते हंै पेड़
    वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार पहले नर्सरी में 12 से 15 इंच का सागवान का पौधा तैयार किया जाता है। इसके बाद इस पौधे की जड़ और तने को छीलकर रूटसूट तैयार किया जाता है। इसके बाद बारिश के दौरान गीली वनभूमि पर क्रोबार तकनीक से जमीन के अंदर 16 एमएम के टीनुमा नुकीले सरिए से जमीन में लगभग 9 इंच का छेद करके उसमें सागवान के रूटसूट को लगाया जाता है। लगभग 9 इंच जड़ जमीन के अंदर और लगभग 2 से 3 इंच तना जमीन के ऊपर रखा जाता है। इसके बाद इसकी 3 साल तक अच्छी तरह से देखभाल की जाती है।

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