इंदौर, तेजकुमार सेन। एक फूड इंस्पेक्टर को करीब 26 साल पहले रिश्वत के मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई थी, जिसके खिलाफ उसने तभी हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील दायर की थी। वर्षों से अपील लंबित थी। इस बीच कुछ साल पहले अपीलार्थी की मौत हो गई तो उसके परिजनों ने अपने वकील के माध्यम से जिरह जारी रखी, लेकिन लगभग ढाई दशक गुजर जाने के बाद आए फैसले में अपीलार्थी पर लगा रिश्वत का कलंक धुल नहीं पाया। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपील खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।
मामला इस प्रकार है कि करीब 33 साल पहले 9 अक्टूबर 1991 को फूड एंड सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन के फूड इंस्पेक्टर शिवदर्शन ने पान मसाला फैक्ट्री में बनाए गए मिलावट के केस में शिकायतकर्ता अनिल की पत्नी का नाम हटाने के नाम पर एक हजार रुपए रिश्वत मांगी थी। इसकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस इंदौर में की गई। इस पर लोकायुक्त टीम ने डेंटल कॉलेज के पास कैंटीन में आरोपी फूड इंस्पेक्टर को रिश्वत लेते रंगेहाथों गिरफ्तार किया।
30 अक्टूबर 1999 को ट्रायल कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दोषी पाए जाने पर आरोपी को एक साल के कठोर कारावास और एक हजार रुपए अर्थदंड से दंडित किया गया। इस निर्णय के विरुद्ध फूड इंस्पेक्टर द्वारा हाईकोर्ट में उसी साल 1999 में क्रिमिनल अपील दायर की गई। तब से यह अपील लंबित चली आ रही थी। इस बीच कुछ साल पहले अपीलकर्ता की मौत हो गई। इसके बाद उसके परिजनों ने अपने वकील के माध्यम से अपील पर जिरह जारी रखी। तीन दिन पहले सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच ने अपील निरस्त कर दी। लोकायुक्त पुलिस की ओर से अधिवक्ता राघवेंद्रसिंह रघुवंशी ने तर्क रखे।
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