इंदौर। दो दिन लगातार हुई बारिश में इंदौर शहर (Indore City) के ड्रैनेज सिस्टम (Drainage System) की पोल खोलकर रख दी। पूरा शहर जलमग्न हो गया। कई निचले इलाको में पानी भर गया। लोगों को अपने घरों में कैद रहना पड़ा तो कई घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए गए। वाहनों की लंबी कतारें और सड़क पर तिनके की तरह बहते बाइक और ऑटो के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। लेकिन शहर के ये हालात आखिर बने क्यों इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं गया। 70-80 के दशक में नदियों के जरिए बरसात का पानी शहर से बाहर होता था। पहले नगर निगम और जिला प्रशासन ने इन नदियों को नाला घोषित किया उसके बाद 90 लीटर प्रति व्यक्ति के मान से पाइप लाइन डाली गई जबकि इंदौर में प्रति व्यक्ति खपत 235 लीटर से अधिक है। इसके बाद कुछ लोगों ने सांठगांठ कर नाला टैपिंग करते हुए अतिक्रमण कर लिया और शहर का ड्रैनेज सिस्टम (Drainage System) बुरी तरह से प्रभावित हो गया। ये आरोप शहर के सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने लगाए हैं। उन्हें मय प्रमाण शहर का नक्शा जारी करते हुए उक्त बातें कही।
इसके पहले शहर में कई इलाकों में उपजे बाढ़ से हालात को लेकर कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि नाला टेपिंग में करोड़ों रुपए बर्बाद करने के बाद शहर का यह हाल है। कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि वो तो भला हो देवराज इंद्र का जिन्होंने रुक-रुक कर बारिश करवाई, नहीं तो हालात भयावह होते।
शहर में विगत दो दिनों से रुक-रुक कर हो रही बारिश ने ही नगर निगम इंदौर द्वारा शहर में स्थापित ड्रेनेज सिस्टम और पानी निकासी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। कांग्रेस प्रवक्ता संजय बाकलीवाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि आंकड़ों पर गौर करें तो नगर निगम के अमले में 110 इंजीनियर, 200 से अधिक अधिकारी और सैकड़ों कर्मचारियों की फौज है, जो हर महीने करोड़ों रुपए लोकधन की पगार लेती है। वहीं इसके विपरित इनके द्वारा किए गए कार्यों पर नजर दौड़ाएं तो सामने आता है कि जनता की गाड़ी कमाई के 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा तो सिर्फ नाला टेपिंग पर ही खर्च कर दिया है, जिसका नतीजा सिफर रहा है।
इसके साथ ही बीआरटीएस पर स्टार्म वाटर लाइन डालने के लिए 280 करोड़ खर्च किए, मगर उसका भी परिणाम सबके सामने है, आज बीआरटीएस तालाबों की तरह लबालब भरा गया। बाकलीवाल के अनुसार शहर में बारिश रुक-रुक कर हो रही है यदि यह अनवरत जारी रहती तो शहर का नजारा ही कुछ और होता।
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