दानदाताओं की मदद के बिना …बड़े अस्पताल में नही होता बड़ी बीमारियों का मुफ्त इलाज
इंदौर, प्रदीप मिश्रा ।
शहर (city) सहित सारे प्रदेश (state) में एम वॉय हॉस्पिटल (MY hospital) को बड़े अस्प्ताल के नाम से भी जाना और माना जाता है। मगर कई मामलों में यह सिर्फ नाम का ही बड़ा अस्प्ताल है । कहने को तो इस सरकारी अस्पताल (government hospital) में हर रोज लगभग 1500 मरीजो का मुफ्त में इलाज किया जाता है ,मगर यह अधूरा सच है , दरअसल जबकि वास्तविकता कुछ औऱ ही है । हकीकत तो यह है कि इस अस्पताल में ज्यादातर सर्दी खांसी बुखार (cough-fever) जैसी मौसमी (seasonal) या अन्य साधारण बीमारियों का ही इलाज मुफ्त में हो पाता है । गम्भीर बीमारीयो से पीडि़त मरीजो का इलाज सिर्फ दानदाताओं (donors) के भरोसे ही हो पाता है। यदि दानदाताओ (donors) की मदद न मिले तो फिर मरीज जिये या मरे इससे एम वॉय प्रशासन कोई फर्क नही पड़ता ।
दानदाताओं (donors) से अगर हर रोज मदद न मिले तो यंहा पर भर्ती गम्भीर बीमारियों से पीडि़त कई मरीज समय पर इलाज नही मिलने के कारण मौत के मुंह मे चले जाते है । एम वॉय प्रशासन को जैसे ही लगता है कि मरीज के बचने की कोई उम्मीद नही है ,तो अस्पताल से उसकी जबरन छुट्टी कर दी जाती है। इस वजह से गम्भीर बीमारी से पीडि़त मरीज के मृत्यु की जानकारी एमवॉय के रिकार्ड में शामिल नही हो पाती। कुल मिला कर बड़े अस्पताल में बड़ी यानी गम्भीर बीमारियो वाले मरीजो की जिंदगी दानदाताओं (donors) के दान पुण्य अथवा रहमोकरम पर निर्भर है। आयुष्मान भारत योजना के बावजूद सेंकडो मरीज इसलिए बिना इलाज के दम तोड़ देते है क्योंकि जरूरतमंद व योग्य होने के बावजूद उनका नाम आयुषमान पोर्टल में नही मिल पाता ।
आयुष्मान भारत योजना भी फैल
इस सारे मामले में एम वॉय प्रशासन का कहना है उनके यंहा गम्भीर बीमारियों (critical illnesses) से पीडि़त मरीजो (patients) का इलाज आयुष्मान भारत योजना (ayushman bharat yojana) के अंतर्गत मुफ्त में किया जाता है। इसके लिए हॉस्पिटल में ही आयुष्मान भारत योजना के कार्ड बनाने का काउंटर सुबह से शाम तक चालू रहता है। साल भर में लगभग 14 हजार मरीजो का इलाज आयुष्मान कार्ड के जरिये किया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि साल भर में यंहा लगभग दो से ढाई लाख मरीज इलाज कराने आते है इनमे से लगभग 60 हजार मरीज गम्भीर बीमारियों से पीडि़त होते है। इनमे हजारो मरीजो के पास बीपीएल कार्ड राशनकार्ड खाद्यान्न पर्ची मतदाता परिचय पत्र आधार कार्ड होने के बबाजूद उनका आयुष्मान कार्ड इसलिए नही बन पाता क्योकि उनका नाम आयुष्मान भारत पोर्टल में दर्ज नही होता।
दानदाताओं के भरोसे मुफ्त इलाज
एमवॉयएच में हर रोज सेंकडो गम्भीर मरीजो (patients) की महंगी जाँचे औऱ इलाज सामाजिक संस्थाओं से जुड़े दानदाताओं के माध्यम से सम्भव हो पाता है । एम वॉय हॉस्पिटल परिसर में पुलिस चौकी के पास, पुराने कैजुअल्टी वार्ड के नीचे सामाजिक संस्थाओं के कार्यालय है। जंहा पर हर रोज मदद के इंतज़ार में गम्भीर मरीजो के परिजनों की भीड़ लगी रहती है। सामाजिक संस्थाओं के प्रयास से हर रोज शहर के कई दानदाता इन गरीब लाचार बेसहारा मरीजो की महंगी जाँचे व इलाज कराने की जिम्मेदारी उठाते है। मदद करने वालो में कई ऐसे परिवार भी है जो अपने परीजनो के जन्मदिन ,पुण्यतिथि वैवाहिक वर्षगांठ पर गरीबो मरीजो के इलाज का खर्चा खुद वहन करते है। इस तरह दानदाताओं के जरिये होने वाले इलाज का प्रचार प्रसार इस तरह किया जाता है कि एम वॉय में मरीजो का मुफ्त में इलाज किया जाता है।
दान-पुण्य के मामले भी नम्बर वन है इंदौर
एम वॉय हॉस्पिटल (MY hospital) में भर्ती गम्भीर बीमारियों से पीडि़त मरीजो की सहायता के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था परपीड़ाहर केंद्र संस्था के राधेश्याम साबू बताते है कि इंदौर के दानदाता दान पुण्य के मामले भी नंबर वन है। अकेली उनकी संस्था के माध्यम से हर साल हजारो गरीब बेबस मरीजो का इलाज व महंगी मेडिकल जाँचे कराने के लिए दानदाता लगभग 1 करोड़ रुपये की मदद करते है। पाकीजा फर्म जैसी अन्य संस्थाए भी सुबह से शाम तक ऐसे मरीजो को चिन्हित कर उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगा कर उनकी मदद करती आ रही है। सोशल मीडिया के जरिये हर दिन हम इन मरीजो की जानकारी दानदाताओं तक पहुंचाते है । मदद करने वालो में इंदौर के कई ऐसे परिवार भी है। इस तरह एम वॉय हॉस्पिटल में भर्ती मरीजो के लिए साल भर में लगभग 3 करोड़ रुपये की मदद समाजिक संस्थाओं व दानदाताओं के माध्यम से की जाती है।
इस हफ्ते भर्ती इन मरीजों को मदद का इंतजार
– 6 साल के आयुष को झटके के बार – बार दौरे पड़ रहे हैं । जांच औऱ इलाज के लिए 9600 की रुपये की जरूरत है।
– रुखसार की 22 दिन की नवजात बच्ची है। डाक्टरो ने इस बच्ची को पीलिया एवं शुगर की बीमारी बताई है। बीमारी के कारण का पता लगाने के लिए 2950 रुपये की जाँचे जरूरी है।
– मास्टर रियाज उम्र महज दो साल। पिताजी नहीं है। वृद्ध दादा जैसे तैसे पाल औऱ सम्हाल रहे है। एमआरआई के लिए 5200 रुपये की जरूरत है।
– 53वर्षीय सुंदर बाई को मुंह का कैंसर है जिसकी जांच के लिए सीटी स्कैन होना है । मदद के इंतज़ार में है।
– 28 वर्षीय आवेग की ,एमआरआई की जांच होनी है । यह भी दानदाताओं के भरोसे
– 20 साल के किशोर की किडनी सिकुड़ गई लगभग एक साल से डायलिसिस पर है । पिता की गार्ड की नौकरी है। हर सप्ताह में दो बार डायलिसिस जरूरी है। इसके अलावा दवाई औऱ इंजेक्शन का खर्च अलग से ।कुल मिलाकर लगभग 10 से 11000 रुपये का खर्च होता है। इसकी मदद के लिए सामाजिक संस्था दानदाताओं से लगातार सम्पर्क में है।
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