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    इंदौर प्राधिकरण ने ही अब तक बचाई जनता की जमीन

  • November 13, 2024

    • योजना 171 की संस्थाओं पर भूमाफिया ने डाली डकैतियां… अगर जमीनें पहले छूट जाती तो किसी पीडि़त को नहीं मिलते भूखंड और तन जाते होटल-हॉस्पिटल के साथ शॉपिंग मॉल
    • प्राधिकरण से एनओसी न मिलने के कारण ही मंजूर नहीं हो सके अभिन्यास, जेबी संस्थाओं का भी किया इस्तेमाल, कई जमीनें प्रशासन ने सरेंडर भी करवार्इं

    इंदौर, राजेश ज्वेल। प्राधिकरण की योजना 171 में शामिल गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों के मुक्त होने की प्रक्रिया पर जहां भूखंडधारकों ने खुशियां मनाईं, वहीं यह भी कहा कि उनका 25-30 साल का संघर्ष अब जाकर पूरा हुआ और दीपावली मन गई। वहीं मीडिया के एक वर्ग ने भी कहा कि प्राधिकरण इतने सालों तक इन जमीनों पर कुंडली मारे बैठा रहा, जबकि हकीकत इसके ठीक विपरीत है। अग्रिबाण की बदौलत ही ये जमीनें आज तक बच सकीं, अन्यथा भूमाफियाओं ने संस्थाओं की अधिकांश जमीनों पर डकैतियां डाल दीं और पीडि़तों की जमीनों को एकमुश्त बेच भी डाला। अगर योजना से ये जमीनें सालों पहले छूट जातीं तो वर्तमान में इन पर होटल, हॉस्पिटल और शॉपिंग मॉल तने नजर आते और एक भी पीडि़त को भूखंड नसीब नहीं होता।

    इंदौर की 100 से अधिक गृह निर्माण संस्थाओं पर लगभग 20 साल पहले जमीनी जादूगरों की निगाह पड़ी और उनकी जमीनों को संस्थाओं पर कब्जे करवाकर ठिकाने लगाना शुरू किया। 2008-09 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पहला ऑपरेशन भूमाफिया चलवाया, उस वक्त देवी अहिल्या गृह निर्माण सहित अन्य संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं पर एफआईआर हुई और कुछ चर्चित भूमाफिया जेल भी गए तो दीपक मद्दा जैसे जमानत का लाभ लेकर बचते भी रहे। उसके बाद कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने भी इसी तरह की कार्रवाई शुरू करवाई और उस वक्त भी कई चर्चित जमीनी जादूगरों के खिलाफ एफआईआर हुई और फिर तीसरा ऑपरेशन भूमाफिया 2021 में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने शुरू किया और तत्कालीन कलेक्टर मनीषसिंह ने देवी अहिल्या की कॉलोनी अयोध्यापुरी से लेकर योजना 171 में शामिल मजदूर पंचायत की पुष्प विहार, श्रीमहालक्ष्मी नगर सहित अन्य कॉलोनियों में भी सैकड़ों पीडि़तों को शिविरों के माध्यम से भूखंडों के कब्जे दिलवाए और भूमाफियाओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई, जिसके चलते दीपक मद्दा भी गिरफ्तार हुआ और फिर ईडी ने भी अपनी कार्रवाई शुरू की।


    योजना 171, जो कि पहले योजना 132 थी, पर 13 गृह निर्माण संस्थाएं काबिज हैं और इन सभी पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर इनकी जमीनों को बड़े-बड़े टुकड़ों में बेच डाला, जिनमें से कुछ जमीनों को पुलिस प्रशासन की मदद से सरेंडर भी करवाया गया। जब पूर्व में ऑपरेशन भूमाफिया चला, तब भी योजना 133 की तरह योजना 132 को छोडऩे की आवाजें उठीं और कुछ वर्ष पूर्व एक आला अफसर की इस मामले में जमीनी जादूगरों के साथ सेटिंग भी हो गई, मगर जिले के तत्कालीन मुखिया को जब अग्रिबाण ने भूमाफियाओं की हकीकत बताई तो उन्होंने प्राधिकरण बोर्ड बैठक में न सिर्फ विरोध दर्ज करवाया, बल्कि पारित संकल्प में भी इसका विशेष रूप से उल्लेख किया। जिले के मुखिया पहले मुख्यमंत्री कार्यालय और अब महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यानी अगर 10 से 15 साल पहले योजना 171 की जमीनें छूट जातीं तो इन पर होटल, हॉस्पिटल, शॉपिंग मॉल या अन्य बहुमंजिला इमारतें तन जातीं, क्योंकि संस्थाओं की इन जमीनों पर चर्चित भूमाफियाओं ने ही डकैतियां डाल दी थीं और प्राधिकरण से एनओसी लेकर ये भूमाफिया अभिन्यास मंजूर करवाकर बिल्डिंगें तनवा देते और बाद में किसी पीडि़त को एक भी भूखंड नहीं मिलता। सालों तक ये जमीन चूंकि प्राधिकरण की योजना में फंसी रही, इसलिए भले ही पीडि़तों को पुलिस, प्रशासन, सहकारिता और प्राधिकरण के चक्कर काटना पड़े हों, मगर योजना में शामिल रहने के चलते भूमाफिया भी इन जमीनों का सौदा करने के बावजूद इनका उपयोग नहीं कर पाए, अन्यथा अभिन्यास मंजूर करवाकर बिल्डिंगें तनाव देते। ऑपरेशन भूमाफिया के दौरान इन्हीं जमीनों पर शिविर लगाकर पीडि़तों को कब्जे भी दिलवाए गए।

    लिहाजा भूखंड पीडि़तों को प्राधिकरण को कोसने के बजाय धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि उसी की बदौलत ये जमीनें बच सकीं। अभी भी योजना 171 में छूटने वाली संस्थाओं की काफी जमीनें इन भूमाफियाओं के कब्जे में ही हैं, जिसके लिए उन्होंने जेबी संस्थाओं का इस्तेमाल किया है। अग्रिबाण ने लगातार इन संस्थाओं की जमीनों पर हुई डकैतियों का खुलासा किया है। अभी 20 हजार करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीनें मात्र 5 रुपए स्क्वेयर फीट पर योजना से मुक्त की जा रही हैं। भूखंड पीडि़तों की आड़ में भूमाफिया की दीपावली न मन जाए इसके लिए भी प्रशासन, प्राधिकरण और सहकारिता विभाग को निरंतर चौकन्ना रहना पड़ेगा, क्योंकि योजना में कई विवादित संस्थाओं के साथ-साथ जेबी संस्थाओं की भी जमीनें शामिल हैं। योजना में शामिल 151.553 हेक्टेयर में से 30 हेक्टेयर जमीन सरकारी है तो 120 हेक्टेयर, यानी लगभग 300 एकड़ जमीनें संस्थाओं के साथ निजी भी हैं। प्राधिकरण ने इस योजना पर 5 करोड़ 84 लाख रुपए की राशि खर्च की है, जिसकी वसूली के लिए वह संस्थाओं के साथ निजी जमीन मालिकों से उक्त राशि जमा करवा रहा है और 5 रुपए स्क्वेयर फीट में ही अरबों की जमीनें मुक्त हो जाएंगी। मजे की बात यह है कि जो 13 गृह निर्माण संस्थाएं इस योजना में शामिल हैं, उनमें से एक त्रिशला गृह निर्माण को प्रशासन तीन साल पहले सरकारी घोषित कर चुका है। यही कारण है कि इस सूची में त्रिशला गृह निर्माण का नाम नहीं है, क्योंकि राजस्व रिकॉर्ड में उक्त जमीन सरकारी दर्ज है। यहां तक कि देवी अहिल्या श्रमिक कामगार सहकारी संस्था की ही कई जमीनें अन्य संस्थाओं में शिफ्ट कर दी गई हैं, जिनमें श्रीकृपा गृह निर्माण, रजत गृह निर्माण सहित अन्य संस्थाएं शामिल हैं। यहां तक कि संजना गृह निर्माण, जिसकी जमीन पर हवाई जहाज रेस्टोरेंट बना और इसका पूर्ण व्यवसायिक उपयोग किया गया, उसकी भी जमीन इस योजना में शामिल है। हालांकि प्रशासन और सहकारिता विभाग का स्पष्ट कहना है कि डिनोटिफाइड की प्रक्रिया के बावजूद संस्थाओं की जमीनें पूरी तरह से निगरानी में रहेंगी और सभी का ऑडिट करवाने के साथ सदस्यता सूची का सत्यापन भी होगा और किसी भी भूमाफिया को इन जमीनों को हासिल नहीं करने दिया जाएगा। यहां तक कि महिराज, सूर्या, सनी को-ऑपरेटिव, रजत सहित अन्य संस्थाएं भी बोगस, यानी कागजी ही हैं और लक्ष्मण गृह निर्माण में भी कई फर्जीवाड़े हुए हैं।

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