इंदौर। सिंहस्थ महापर्व (Simhastha Mahaparva) को देखते हुए प्रस्तावित किए गए अहिल्या पथ (Ahilya Path) में शामिल 8 गांवों (8 villages) के किसान (farmers ) आखिरकार खाली हाथ रहेंगे। इन किसानों को न तो उनकी अधिगृहीत की जाने वाली जमीन के एवज में चार गुना मुआवजा दिया जाएगा और न ही लैंड पूलिंग एक्ट के तहत इन किसानों को 60 फीसदी विकसित भूखंड दिए जाएंगे।
ऐसा ही विरोध मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम (एमपीआईडीसी) द्वारा इंदौर से पीथमपुर तक प्रस्तावित किए गए इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई में भी किया जा रहा था। हाल ही में राज्य सरकार ने किसानों के इस विरोध को रोकने के लिए फैसला लिया है कि लैंड पूलिंग एक्ट के तहत इन किसानों से जमीन ली जाएगी। अब तक किसानों से कहा जा रहा था कि उन्हें उनकी जमीन के विकसित क्षेत्र में से 50 फीसदी जमीन दी जाएगी। अब राज्य सरकार ने किसानों के विरोध को देखते हुए उन्हें विकसित क्षेत्र में से 60 फीसदी जमीन देने का फैसला लिया है।
इस संदर्भ में जब संभाग आयुक्त दीपक सिंह से पूछा गया तो उनका कहना है कि अहिल्या पथ योजना की परिधि में आ रहे गांवों में किसानों को मुआवजे के रूप में जमीन की बाजार कीमत से चार गुना राशि देने का कोई प्रस्ताव नहीं है। हम इन किसानों से जमीन लैंड पूलिंग एक्ट के तहत लेंगे। इस एक्ट के तहत इन किसानों को उनकी जमीन के विकसित क्षेत्र की 50 फीसदी जमीन दी जाएगी। जब उनसे पूछा गया कि क्या राज्य सरकार द्वारा इकोनॉमिक कॉरिडोर पर लिए गए फैसले के अनुसार यहां भी किसानों को 60 फीसदी जमीन दी जा सकती है तो उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है।
दीपक सिंह ने स्पष्ट किया कि किसी भी क्षेत्र में यदि औद्योगिक विकास हो रहा है तो वहां जो प्लाट तैयार किया जाता है उसका आकार बड़ा होता है। वहां कम सडक़ें बनाई जाती हैं और अधोसंरचना के विकास पर होने वाला खर्च भी कम रहता है। इसके विपरीत जब आवासीय योजना तैयार की जाती है तो प्लाट का आकार छोटा होता है। बहुत ज्यादा सडक़ों का निर्माण करना होता है। ऐसे में अधोसंरचना का खर्च भी ज्यादा होता है। ऐसी स्थिति में अहिल्या पथ योजना में किसानों को 60 फीसदी भूखंड दे पाना संभव नहीं है।
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