डेढ़ वर्ष का अनोखा सफर… बच्चों के लिए तरसते दम्पति ने लावारिस बच्चों को गोद लिया तो असली मां ने अदालत जाकर बच्चों को छीन लिया
इंदौर। यह डेढ़ वर्ष का अनोखा सफर था… कहने को तो वे तीन बच्चे लावारिस थे… उनका कोई नहीं था… लेकिन भाग्य का ऐसा खेल था कि उन बच्चों (Children) को तो दो-दो मां-बाप मिल गए… लेकिन एक मां (mother) की गोद अपने बच्चों (Children) से आबाद हुई तो दूसरी मां की गोद सूनी हो गई… इंदौर से शुरू हुए इस अनोखी कहानी (unique story) के सफर ने उत्तरप्रदेश तक की यात्रा कर डाली… शहर की गलियों में लावारिस घूमते इन बच्चों (Children) को चाइल्ड लाइन (Child Line) की टीम ने ढाई साल पहले जिला जेल के पास लावारिस घूमते पाया था, जिन्हेें बाल संरक्षणगृह में भेज दिया गया और यहां से बच्चों के लिए तरसते उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के एक दम्पति ने तमाम कानूनी प्रक्रिया कर गोद ले लिया… इसी बीच इन बच्चों की असली मां (mother) सामने आ गई… लेकिन बच्चों को गोद लेने वाले दम्पति भी तब तक इन बच्चों से अपना दिल लगा चुके थे, इसलिए उन्होंने कानूनी तरीकों से गोद लिए बच्चों को देने से इनकार कर दिया… मामला अदालत में गया और न्याय का दिल भी असली मां की गुहार से पसीज गया… तीनों बच्चे लौटाने के आदेश से बच्चों को गोद लेने वाले दम्पति भी मजबूर थे… और अदालती आदेश के 31 दिन बाद उन बच्चों को तो अपनी असली मां मिल गई, लेकिन जिस मां ने उनका सालों पोषण किया उसकी गोद सूनी हो गई।
इन तीनों बच्चों (Children) कहानी भी बड़ी मार्मिक है। चाइल्ड लाइन की टीम ने लगभग डेढ़ साल पहले जिला जेल के पास तीनों को लावारिस हालत में घूमते हुए पाया और बाल संरक्षणगृह को सौंप दिया। इन बच्चों में सबसे बड़े भाई की उम्र 11, मंझले की 9 एवं छोटे की उम्र 7 साल थी। महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने सालभर तक बच्चों के मां-बाप सहित अन्य रिश्तेदारों को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कोई सामने नहीं आया। इसी दौरान इन तीनों बच्चों को उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर जिले के एक गांव के दम्पति ने गोद लेने की इच्छा जाहिर कर तमाम कानूनी कार्रवाई पूरी करते हुए तीनों को गोद ले लिया। बच्चे दम्पति के साथ गांव चले गए और वहां स्कूल में उनका दाखिला हो गया। हंसते-खेलते दिन गुजर रहे थे, इसी बीच बच्चों की खोज करती मां को पता चला कि उसके बच्चे बाल संरक्षणगृह में भेजे गए थे, जहां से वे किसी दम्पति को गोद दे दिए गए हैं। उमरिया जिले के एक गांव में रहने वाली मां ने अपने बच्चों की वापसी के लिए गुहार लगाई तो महिला बाल विकास विभाग हैरान रह गया, क्योंकि कानूनी तौर पर बच्चे गोद दिए जा चुके थे और उनकी वापसी भी कानूनी तरीके से ही हो सकती थी। लिहाजा महिला बाल विकास विभाग की ही मदद से न्यायालय में प्रकरण भिजवाया गया और अदालत ने 31 मार्च 2021 को दत्तक ग्रहण का मामला खारिज करते हुए तीनों बच्चों को उनकी असली मां को वापस दिलाए जाने के निर्देश दिए। गोद लेने वाले दम्पति भी अदालत के आदेश को मानते हुए बच्चे सौंपने को तैयार हो गए, लेकिन लॉकडाउन के चलते दम्पति ने बच्चों को इंदौर लाने में असमर्थता जाहिर की। जैसे ही लॉकडाउन से राहत मिली तुरंत दत्तक पिता बच्चों को लेकर इंदौर पहुंचा और कल शाम असली मां को सौंप दिया।
राजस्थान चली गई थी मां… पिता की हो चुकी है मौत
बताया जाता है कि तीनों बच्चे अपनी मां (mother) से बिछड़ गए थे। मां भी बच्चों को खोजती रही और बच्चे भी मां को ढूंढते रहे। जब दोनों एक-दूसरे से नहीं मिल पाए तो मां राजस्थान चली गई। लेकिन इस दौरान वह अपने बच्चों को खोजती रही और जब उसे बच्चों (Children) की जानकारी मिली तो राजस्थान से लौटकर इंदौर आई। बताया जा रहा है कि जब बच्चे छोटे थे, तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। कल जैसे ही बिछड़ी मां का बच्चों से मिलन हुआ खुशी से आंखें नम हो गईं, जिन्हें लेकर वह पीथमपुर रवाना हो गई।
जिनका कोई नहीं उनके लिए आश्रम में है आश्रय… 27 बच्चों को अब भी है माता-पिता का इंतजार
छावनी स्थित राजकीय बाल संरक्षण आश्रम में 27 बच्चे रहते हैं। इनमें से ज्यादातर शहर में इधर-उधर भटकते मिले हैं, जिन्हें चाइल्ड लाइन (Child Line) के जरिए इस आश्रम में लाकर आश्रय देकर परवरिश की जा रही है। इनमें से दो बहन और एक भाई ऐसे हैं, जो लॉकडाउन में मिले थे।
एक बच्चे के लालन-पालन का खर्च केवल 2162 रुपए देती है सरकार
किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों के अनुसार एक बच्चे के लालन-पालन का खर्च सरकार द्वारा मात्र 2162 रुपए दिया जाता है। इसी राशि के जरिए बच्चे की भोजन, कपड़े सहित अन्य सुविधाओं के साथ स्कूली शिक्षा भी शामिल होती है।
चार साल की बालिका बनी सबकी लाड़ली
यहीं पर एक चार साल की बालिका भी है, जो सभी बच्चों के लिए लाड़ली बन गई है। यह बच्ची इंदौर में ही कहीं भटकते हुए मिल गई थी। सभी बच्चे इस बालिका के साथ खेलते रहते हैं। वहीं अधिकारी व कर्मचारी भी आते हैं तो बालिका को दुलारना नहीं भूलते हैं।
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