नई दिल्ली । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defense Minister Rajnath Singh) ने कहा कि इंडो पैसिफिक अब एक समुद्री निर्माण नहीं (Indo Pacific is no longer A Maritime Construct), बल्कि एक पूर्ण भू-रणनीतिक निर्माण है (But A Complete Geo-strategic Construct) । उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र सीमा विवादों और समुद्री डकैती सहित सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
13वें इंडो-पैसिफिक सेना प्रमुख सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में मंत्री ने सुरक्षा और समृद्धि की खोज में स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए भारत के रुख को दोहराया। उन्होंने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ को प्राचीन काल से भारत की संस्कृति की आधारशिला के रूप में परिभाषित किया। इस क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण उसकी ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ द्वारा परिभाषित होता है। राजनाथ सिंह ने कहा कि मित्र देशों के साथ मजबूत सैन्य साझेदारी बनाने की दिशा में भारत के प्रयास न केवल राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, बल्कि सभी के सामने आने वाली वैश्विक चुनौतियों का भी समाधान करते हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि तीन दिवसीय कार्यक्रम में एचएडीआर संचालन के दौरान अंतर-संचालनीयता बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की जाए। उन्होंने कहा कि चरम मौसम की घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं अपवाद होने की बजाय एक नई सामान्य बात बन गई हैं और हमारे क्षेत्र में बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा, ”यह हमारी जिम्मेदारी है कि इंडो पैसिफिक के छोटे द्वीप देशों की जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं को वह महत्व दिया जाए, जिसके वे हकदार हैं, क्योंकि ये जलवायु परिवर्तन का खामियाजा अस्तित्वगत संकट के रूप में भुगत रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन से उनकी आर्थिक सुरक्षा को भी खतरा है। जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम का आर्थिक प्रभाव जलवायु लचीले और पर्यावरण-अनुकूल बुनियादी ढांचे की मांग पैदा करता है। हमारे सभी साझेदार देशों की मजबूरियों और दृष्टिकोणों को समझने के साथ-साथ विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करने की भी आवश्यकता है।”
राजनाथ सिंह ने कहा कि हालांकि एक बड़े समूह में सर्वसम्मति की कार्य योजना पर पहुंचना एक कठिन काम है, हालांकि दृढ़ संकल्प और सहानुभूति के साथ यह असंभव नहीं है। उन्होंने हाल ही में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन का जिक्र किया और कहा कि देशों के समूह ने सभी विकासात्मक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर सर्वसम्मति के साथ नई दिल्ली नेताओं की घोषणा को अपनाया, जिससे यह ऐतिहासिक और अग्रणी बन गया।
इस मॉडल को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में लागू करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा, “ऐसे उदाहरण हो सकते हैं, जब विभिन्न देशों की ‘सर्कल ऑफ कंसर्न’ एक-दूसरे के साथ ओवरलैप होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्ग विशेष आर्थिक क्षेत्रों से परे, ऊंचे समुद्रों से होकर गुजरते हैं। इससे या तो राष्ट्रों के बीच संघर्ष हो सकता है या वे पारस्परिक रूप से जुड़ाव के नियमों को तय करके सह-अस्तित्व का निर्णय ले सकते हैं।” इन सर्किलों की अवधारणा रणनीतिक सोच और प्राथमिकता के महत्व को रेखांकित करती है।
सिंह ने आईपीएसीसी, इंडो-पैसिफिक आर्मीज मैनेजमेंट सेमिनार (आईपीएएमएस) और सीनियर एनलिस्टेड लीडर्स फोरम (एसईएलएफ) को क्षेत्र में भूमि बलों की “सबसे बड़ी विचार-मंथन घटनाओं में से एक” करार दिया। उन्होंने कहा, ये आयोजन एक साझा दृष्टिकोण के प्रति सामान्य दृष्टिकोण बनाने और सभी के लिए सहयोगात्मक सुरक्षा की भावना को मजबूत करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं।
इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे और 35 देशों की सेनाओं के प्रमुख और प्रतिनिधि उपस्थित थे। राजनाथ सिंह ने अमेरिकी लेखक और वक्ता स्टीफन आर. कोवे के एक सैद्धांतिक मॉडल के माध्यम से अपने दृष्टिकोण को समझाया जो दो सर्किलों ‘सर्कल ऑफ कंसर्न’ और ‘सर्कल ऑफ इन्फ्लुएंस’ पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘सर्कल ऑफ कंसर्न’ उन सभी चीजों को शामिल करता है, जिनकी व्यक्ति परवाह करता है, जिनमें वे चीजें भी शामिल हैं, जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है और वे चीजें जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इसमें बाहरी कारकों और मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है जैसे वैश्विक घटनाएं, आर्थिक स्थिति, अन्य लोगों की राय, मौसम और जीवन के कई अन्य पहलू। ‘सर्कल ऑफ इन्फ्लुएंस’ में वे चीजें शामिल होती हैं, जिन पर किसी का सीधा नियंत्रण होता है या कुछ हद तक प्रभाव डाल सकता है। इसमें आपके दृष्टिकोण, व्यवहार, निर्णय, रिश्ते और कार्य शामिल हो सकते हैं।
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