उज्जैन। रंग, गुलाल और पिचकारी बाजार में सब स्वदेशी है। चाइना का नाम भर बचा है। होली के त्योहार नजदीक आते ही दुकानें सज चुकी है। ग्राहक भी रंग, गुलाल, नए नए डिजाइन की पिचकारी खरीद रहे हैं। लेकिन इस बार बाजार में चाइना का कोई सामान बिकने के लिए नहीं आया। कारण चाइना से सस्ता स्वदेशी सामान है और गुणवत्ता भी बेहतर है। इसलिए दुकानदारों ने भी अब चाइना के सामान से किनारा कर लिया है। पुराने शहर में रंग, गुलाल व पिचकारी का थोक बाजार है। जहां पर दुकानदार दिल्ली से थोक में सामान लाकर छोटे दुकानदारों को थोक में बेचते हैं। लेकिन इस बार इन दुकानदारों पर नए नए डिजाइन की पिचकारियां है तो रंग में कैमिकल युक्त रंग के अलावा हर्बल रंग भी मौजूद हैं। जिनकी कीमत कैमिकल युक्त रंग से कहीं अधिक है। हर्बल रंग हाथरस से आता है जबकि कैमिकल युक्त रंग स्थानीय स्तर पर तैयार किए जाते हैं। कैमिकलयुक्त रंग नुकसान पहुंचा सकते हैं।
गांवों में पंप व शहर में टंकी वाली पिचकारी की मांग
गांवों में सर्वाधिक मांग छोटी पिचकारी व पंप की होती है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले ग्राहक पिचकारी में पंप अलग-अलग डिजाइन में खरीदकर ले जाते हैं। जबकि शहरी में क्षेत्र में 50 रुपये से लेकर हजार रुपये तक की पिचकारी खरीदते हैं। जिसमें बच्चे टंकी वाली पिचकारी लेना अधिक पसंद करते हैं,क्योंकि उस पर कार्टून बने होते हैं और पीठ पर टंकी लद जाती है। इस तरह की पिचकािरयों की भरमान शहर की दुकानों पर देखने मिल रही है। व्यापारियों का कहना है कि एक्साइज ड्यूटी बढऩे के बाद चाइना का सामान महंगा हो गया है। अब चाइना से सस्ता सामान दिल्ली में उपलब्ध है जो स्थानीय स्तर पर तैयार किया जाता है। जिसकी गुणवत्ता भी अच्छी है और चाइना से सस्ता भी पड़ रहा है। इसलिए अब चाइना का सामान खरीदकर लाना समझदारी नहीं है।
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