नई दिल्ली । भारत में लिंगानुपात (Sex ratio in India)2011 के प्रति एक हजार पुरुषों(Men) पर 943 महिलाएं(Women) के स्तर से बढ़कर 2036 में प्रति 1000 पुरुषों पर 952 महिलाएं होने की उम्मीद (Hope)है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation)द्वारा सोमवार को जारी ‘भारत में महिला एवं पुरुष 2023’ रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि 2036 में भारत की जनसंख्या में 2011 की जनसंख्या की तुलना में स्त्रियों की संख्या अधिक होने की संभावना है, जैसा कि लिंगानुपात में परिलक्षित होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2011 में प्रत्येक एक हजार पुरुषों पर 943 महिलाएं थी जो बढ़कर 2036 तक प्रति एक हजार पुरुषों पर 952 हो जाने का अनुमान है, जो लैंगिक समानता में सकारात्मक चलन को दर्शाता है। रिपोर्ट के मुताबिक 2036 तक भारत की जनसंख्या 152.2 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें महिलाओं का प्रतिशत 2011 के 48.5 प्रतिशत की तुलना में थोड़ा बढ़कर 48.8 प्रतिशत हो जाएगा। इसमें कहा गया कि 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का अनुपात 2011 से 2036 तक घटने का अनुमान है, जिसका कारण संभवतः प्रजनन दर में कमी आना है।
इसके विपरीत, इस अवधि के दौरान 60 वर्ष और उससे अधिक आयु की जनसंख्या के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया गया है। यह स्पष्ट है कि 2016 से 2020 तक 20-24 और 25-29 आयु वर्ग में आयु विशिष्ट प्रजनन दर (एएसएफआर) क्रमशः 135.4 और 166.0 से घटकर 113.6 और 139.6 रह गई है। इस अवधि के लिए 35-39 वर्ष की आयु के लिए एएसएफआर 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गया है, जो दर्शाता है कि जीवन में व्यवस्थित होने के बाद, महिलाएं परिवार बढ़ाने के बारे में सोच रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में किशोर प्रजनन दर निरक्षर आबादी में 33.9 थी जबकि साक्षर आबादी में यह 11.0 थी। यह दर उन महिलाओं के लिए भी काफी कम है जो साक्षर हैं लेकिन बिना किसी औपचारिक शिक्षा के हैं (20.0), अशिक्षित महिलाओं की तुलना में, जो महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने के महत्व के बार फिर उजागर होता है। आयु आधारित प्रजनन दर को एक विशिष्ट आयु वर्ग की महिलाओं में उस आयु वर्ग की प्रति हजार महिला जनसंख्या पर जन्मे एवं जीवित बच्चों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें कहा गया है कि मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के संकेतकों में से एक है और इसे 2030 तक 70 तक लाने का लक्ष्य स्पष्ट रूप से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) ढांचे में रखा गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, भारत ने समय रहते एमएमआर (2018-20 में 97/लाख जीवित जन्म) को कम करने का प्रमुख मील का पत्थर सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है, और एसडीजी लक्ष्य को भी हासिल करना संभव होना चाहिए। मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) से तात्पर्य किसी वर्ष में प्रति 100,000 जन्म पर गर्भावस्था या प्रसव संबंधी जटिलताओं के परिणामस्वरूप मरने वाली महिलाओं की संख्या से है।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में बालक और बालिका दोनों में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर)में कमी आई है। आईएमआर हमेशा बालकों की तुलना में बलिकाओं की अधिक रही है, लेकिन 2020 में, दोनों प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 28 शिशुओं के स्तर पर बराबर थे। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों से पता चलता है कि यह 2015 में 43 से घटकर 2020 में 32 रह गई है। यही स्थिति लड़के और लड़कियों दोनों के लिए है और लड़के और लड़कियों के बीच का अंतर भी कम हो गया है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की श्रम बल भागीदारी दर पुरुष और महिला दोनों की 2017-18 से बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक 15वें आम चुनाव (1999) तक, 60 प्रतिशत से भी कम महिला मतदाताओं ने भाग लिया, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत उनसे आठ प्रतिशत अधिक था। हालांकि, 2014 के चुनावों में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया, जिसमें महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 65.6 प्रतिशत हो गई, और 2019 के चुनावों में यह और बढ़कर 67.2 प्रतिशत हो गई। पहली बार, महिलाओं के लिए मतदान प्रतिशत थोड़ा अधिक था, जो महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और राजनीतिक जागरूकता के प्रभाव को दर्शाता है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने जनवरी 2016 में अपनी स्थापना के बाद से दिसंबर 2023 तक कुल 1,17,254 स्टार्ट-अप को मान्यता दी है। इनमें से 55,816 स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो कुल मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप का 47.6 प्रतिशत है। यह महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व भारत के स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी में महिला उद्यमियों के बढ़ते प्रभाव और योगदान को रेखांकित करता है।
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