नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता जैसे हालात हैं। श्रीलंका में आर्थिक संकट, मालदीव में इंडिया आउट कैम्पेन, म्यांमार में इमरजेंसी जैसे हालात, पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, चीन बॉर्डर पर स्टैंड ऑफ और अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के होने से भारत की सिरदर्दी बढ़ती जा रही है। एक्सपर्ट्स नेपाल के राजनीतिक हालात को भी बहुत स्थिर नहीं मान रहे हैं। इस मसलों के साथ ही नई दिल्ली रूस-यूक्रेन युद्ध में पहले से ही व्यस्त है।
दी प्रिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि भारत ने अपने पड़ोसी देशों पर फोकस बढ़ा दिया है। विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पीएम मोदी को हर घटनाक्रम के बारे में बताया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो नई दिल्ली इस बात से पूरी तरह से वाकिफ है कि उसे मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाना है लेकिन ‘हस्तक्षेप’ के आरोप को लेकर ‘अतिरिक्त भूमिका’ निभाने से बचता नजर आ रहा है।
श्रीलंका भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। भारत श्रीलंका की हर संभव मदद कर रहा है। समुद्री सुरक्षा के लिहाज से श्रीलंका भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भारत श्रीलंका से शरणार्थी संकट की आशंका को लेकर भी चिंतित है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत ने अब तक श्रीलंका को 2.5 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी है। इसके साथ ही भारत चावल, फ्यूल और दवाइयों से भी मदद की योजना पर काम कर रहा है। श्रीलंका में भारत कई अहम प्रोजेक्ट्स पर काम रहा है और ऐसे हालात में इन प्रोजेक्ट्स में देरी हो सकती है।
अस्थिर पड़ोसी देश का सीधा प्रभाव भारत पर
श्रीलंका एक द्वीप देश ही और वहां किसी भी तरह की अस्थिरता का असर सीधे भारत पर होगा। शरणार्थी संकट का बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जो सुरक्षा नजरिए से भारत के लिए ठीक नहीं है। दी प्रिंट से बात करते हुए नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन के सीनियर फेलो सरबजीत सिंह परमार ने कहा है कि किसी भी पड़ोसी देश में अस्थिरता का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
लिट्टे को कुचलने के बाद श्रीलंका प्रगति कर रहा था लेकिन मौजूदा संकट उनके आंतरिक राजनीतिक कारणों की वजह से हैं। उन्होंने आगे बताया है कि भारत को श्रीलंका में एक दोस्ताना शासन की जरूरत है। ऐसे हालात में अगर कोई और राजनीतिक पार्टी सत्ता में आती है तो भारत के लिए चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। श्रीलंका के ऐसे ही हालात रहे तो भारत-मालदीव-श्रीलंका त्रिपक्षीय सुरक्षा वार्ता जैसे सुरक्षा ढांचे के पटरी से उतरने का भी खतरा है।
चीन सबसे बड़ा खतरा?
सीनियर राजनयिक शरत सभरवाल ने प्रिंट को बताया है कि पड़ोस में अस्थिरता स्वाभाविक रूप से हमें चिंतित करती है लेकिन चीन सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। बॉर्डर पर करीब दो सालों से गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। दोनों देशों के बीच 15 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन मसले को सुलझाया नहीं जा सका है।
आतंकवाद में बढ़ोतरी का खतरा
पाकिस्तान एक बार फिर नागरिक और सैन्य शक्तियों के बीच फंसा हुआ नजर आ रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंध सामान्य नहीं है लेकिन भारत इस्लामाबाद के हर घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है।
नई दिल्ली ने इस बात को माना है कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद से आतंकवाद भारत के लिए गंभीर खतरा बना गया है। एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि पाकिस्तान के ताजा हालात और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे विवाद के बीच भारत को एक बार फिर अफगानिस्तान में एक्टिव होना चाहिए।
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