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    योग के जरिये भारत की गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता को मिल रहा एक नया आयाम

    June 21, 2021
    धर्मपाल सिंह
    भारत में योग को लगभग 5,000 हजार वर्ष पुरानी एक मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक परंपरा के रूप में देखा गया है। योग की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुयी थी जब लोग अपने शरीर और दिमाग में बदलाव के लिये तथा दोनों में संतुलन के लिए योग-ध्यान किया करते थे। भागवत गीता में कहा भी गया है- समत्त्वं योग उच्यते अर्थात समता ही योग कहलाती है । भारतीय धर्म एवं दर्शन में योग का बेहद ख़ास महत्त्व है।आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ ही शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग के महत्व को सभी धर्मों तथा सम्प्रदायों में खुले मन से स्वीकार किया गया है।
    दरअसल योग एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जो लोगों को शांति, आत्मविश्वास और ताकत तो देता ही है और साथ में लोगों को प्रकृति के साथ भी जोड़ता है। योग का मतलब ही है जुड़ना। योग कई प्रकार का होता है जैसे- कर्म योग, राज योग, भक्ति योग, जन योग और हस्त योग। भारत में हस्त योग का अभ्यास कई आसनों के रूप में किया जाता है।योग दिवस का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। भारत हमेशा से योग का प्रचार-प्रसार दुनिया भर में करता रहा है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर बाद के सभी प्रधानमंत्रियों ने योग को बढ़ावा देने  के लिये व्यापक नीतियों और कार्यक्रमों पर जोर दिया।
    योग के इस प्रचार-प्रसार की वैश्विक स्तर पर पहचान तब पुख्ता हुई जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर दिसंबर  2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का ऐलान किया। पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 में पूरे विश्व में मनाया गया।इस अवसर पर 193 देशों में योग का आयोजन किया गया ।और आज इसका फायदा पूरा विश्व उठा रहा है।
    योग के जरिये भारत की गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता को एक नया आयाम मिल रहा है। दुनिया भर के तमाम देशों की भागीदारी से यह सुनिश्चित है कि भविष्य में योग वैश्विक  समरसता, शांति और सौहार्द का महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है। इस साल विश्व सातवां योग दिवस मना रहा है और दिनोंदिन योग का प्रभाव-प्रसार विश्व में देखने को मिल रहा है। बीते वर्ष अमेरिका के लॉस एंजेल्स में योग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तथा इसका नाम विवेकानंद योग यूनिवर्सिटी रखा गया। यह भारत के बाहर स्थापित होने वाला प्रथम योग विश्वविद्यालय है। आजादी के आंदोलन के दौरान महर्षि अरविंद और  स्वामी विवेकानंद ने पीड़ा से जूझते संसार को अध्यात्म और योग के मंत्र के साथ विश्व शांति का संदेश दिया। कोरोना काल में योग की उपयोगिता पहले से काफी बढ़ गई है। कोविड रिकवरी के बाद भी कई लोगों को योग से काफी फायदा मिला  है। 

    योग को लेकर लोगों में  जागरूकता फैलाने के लिए हर साल एक थीम भी तय की जाती है।  इस साल सातवें योग दिवस की थीम है- ‘बी विद योगा, बी एट होम’ (Be with Yoga, Be at Home)  यानी ‘योग के साथ रहें, घर पर रहें।’  पिछले साल 2020 की थीम थी- ‘घर में रहकर योग करें।’ सिंतबर 2014 को अपने भाषण के दौरान नरेन्द्र मोदी ने योग पर बहुत जोर दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि “योग भारतीय परंपरा का एक अनमोल उपहार है” ये मस्तिष्क और शरीर की एकता को संगठित करता है; विचार और कार्य; अंकुश और सिद्धि; मानव और प्रकृति के बीच सौहार्द; स्वास्थ्य और अच्छे के लिये एक पूर्णतावादी दृष्टिकोण है। ये केवल व्यायाम के बारे में ही नहीं बल्कि विश्व और प्रकृति के साथ स्वयं एकात्मकता की समझ को खोजने के लिये भी है। अपनी जीवनशैली को बदलने और चेतना को उत्पन्न करने के द्वारा ये जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने में मदद कर सकता है।  
    भारतीय संस्कृति के अनुसार, ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य जल्दी उदय होता है और देर से ढलता है।योग में इस घटना को संक्रमण काल कहते हैं। संक्रमण काल के समय योग करने से शरीर को बहुत लाभ मिलता है। इसीलिए ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित होने के बाद, योग सरकार के एजेंडे में प्रमुखता से  शामिल हो गया। साल 2015 में शिक्षा मंत्रालय ने एनसीईआरटी के पाठ्यक्रमों में योग को शामिल किया। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी योग विभाग खोलने की घोषणा की गई । 
    भारत में योग पर्यटन को भी बढ़ावा देता है।विश्व भर के सैलानी योग सीखने के लिए भारत का रुख करते हैं ।भारत की संस्कृति यदि खूबियों की खान है तो योग इसकी सबसे बड़ी और सशक्त पहचान है।योग केवल शरीर के क्रियाकलापों और श्वास लेने के सही तरीकों का नियमित अभ्यास करने की प्रकिया ही नहीं बल्कि यह शरीर के तीन मुख्य तत्वों; शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के बीच संपर्क को नियमित करना है। यह शरीर के सभी अंगों के कार्यकलाप को नियमित करता है और कुछ बुरी परिस्थितियों और अस्वास्थ्यकर जीवन-शैली के कारण शरीर और मस्तिष्क को परेशानियों से बचाव करता है। यह स्वास्थ्य, ज्ञान और आन्तरिक शान्ति को बनाए रखने में मदद करता है। अच्छे स्वास्थ्य प्रदान करने के द्वारा यह हमारी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है, ज्ञान के माध्यम से यह मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और आन्तरिक शान्ति के माध्यम से यह आत्मिक आवश्यकता को पूरा करता है, इस प्रकार यह हम सभी के बीच सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। सुबह योग का नियमित अभ्यास हमें अनगिनत शारीरिक और मानसिक तत्वों से होने वाली परेशानियों को दूर रखने के द्वारा बाहरी और आन्तरिक राहत प्रदान करता है।
    योग के विभिन्न आसन मानसिक और शारीरिक मजबूती के साथ ही अच्छाई की भावना का निर्माण करते हैं।यह मानव मस्तिष्क को तेज करता है, बौद्धिक स्तर को सुधारता है और भावनाओं को स्थिर रखकर उच्च स्तर की एकाग्रता में मदद करता है।अच्छाई की भावना मनुष्य में सहायता की प्रकृति के निर्माण करती है और इस प्रकार, सामाजिक भलाई को बढ़ावा देती है। महोपनिषद् में कहा गया है  -”मनः प्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते”  अर्थात् मन के प्रशमन के उपाय को योग कहते हैं।योग प्रयोग किया गया दर्शन है, जो नियमित अभ्यास के माध्यम से स्व-अनुशासन और आत्म जागरुकता को विकसित करता है।इस सूचना एवं प्रौद्योगिकी के दौर ने जहाँ एक तरफ आम जन मानस के जीवन को आसान बनाया है वहीं दूसरी तरफ  बदलते खान -पान, रहन-सहन के चलते ब्लड प्रेशर, शुगर, दिल का दौरा, अवसाद जैसी बीमारियों को आम हो गयी है। इसलिए आज जरूरी है कि सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया की कामना करते हुए  हम सभी योग-प्रणायाम को अपने रोज के निजी  जीवन का हिस्सा बनाये और प्रतिदिन अभ्यास करें।
    (लेखक झारखंड भाजपा के संगठन महामंत्री हैं।)

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