नई दिल्ली: झारखंड (Jharkhand) में हिंदुस्तान की ऐसी पहली मस्जिद (India’s first such mosque) का निर्माण कराया जा रहा है जिसमें सिर्फ महिलाओं की एंट्री होगी. जमशेदपुर से सटे कपाली के ताजनगर (Tajnagar of Kapali adjacent to Jamshedpur) में इसका काम जोरों से चल रहा है. मस्जिद का नाम सैय्यदा जहरा बीबी फातिमा (Syeda Zahra Bibi Fatima) रखा गया है. जिसके इसी साल के अंत तक पूरा होने की संभावना जताई जा रही है. ताजनगर में महिलाओं के लिए बन रही देश की पहली मस्जिद को स्थानीय समाजसेवी नूरजमां बनवा रहे हैं. यह पहले भी महिलाओं के लिए एक मदरसा संचालित करते रहे हैं. जहां 25 से अधिक मुस्लिम महिलाएं दीनी और दुनियावाी तालीम हासिल कर रही हैं.
ताजनगर में महिलाओं के लिए बन रही इस मस्जिद की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के ही हाथ होगी. इस मस्जिद में पुरुषों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी रहेगी. डॉ. नूरजमां के मुताबिक जब महिलाओं के लिए इस मस्जिद को बनाने का निर्णय लिया था तो कई लोगों ने इसका विरोध भी किया था, मगर मैंने ठान रखा था कि इस काम को जरूर पूरा करना है.
‘सैय्यदा जहरा बीबी फातिमा’ मस्जिद का काम इस साल पूरा हो जाएगा. इसमें महिलाओं को दीनी तालीम भी दी जाएगी. समाजसेवी डॉ. नूरजमां कहते हैं कि मस्जिद के बनने से इलाके की महिलाएं खुश हैं. उधर मस्जिद बनने पर महिलाओं का कहना है कि अब उन्हें घर में कैद होकर इबादत नहीं करनी होगी. वह भी पुरुषों की तरह मस्जिद में जमा पढ़ने जा सकेंगी.
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेवली ने जमशेदपुर में बन रही मस्जिद को हन्फी मसलक के खिलाफ बताया है. उनका कहना है कि महिलाओं की मस्जिद और और महिला इमाम को बनाना हन्फी मसलक के हिसाब से दुरुस्त नहीं है. वह कहते हैं कि पैगम्बरे इस्लाम के जमाने में महिलाएं नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद जाती थीं, लेकिन फिर उनके उत्तराधिकारी खलीफा हजरते उमर फारुख ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस प्रतिबंध के पीछे कुछ शिकायतें थी, खास तौर पर ये डर था कि कहीं फितना व फसाद न हो जाए.
मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेवली के मुताबिक भारत में ज्यादा आबादी हन्फी मसलक मानने वालों की है. हालांकि दूसरे ऐहले हदीक मसलक में महिलाओं को जामत के साथ नमाज पढ़ने की आजादी है. जमशेदपुर में महिलाओं के लिए जो मस्जिद बन रही है वह भारत के एक नए शगूफा को जन्म देने जैसा है.
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