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    रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की कुशल रणनीति

  • March 06, 2022

    – मृत्युंजय दीक्षित

    आज हर जगह केवल रूस -यूक्रेन संकट की चर्चा है और साथ ही पूरी दुनिया की निगाहें इस संकट पर भारत की भूमिका पर हैं। भारत सरकार ने अभी तक इस प्रकरण पर बहुत ही संतुलित व तटस्थ भूमिका का निर्वहन किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा सहित जिन मंचों पर रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव या अन्य जितने भी प्रस्ताव पास हुए हैं, उन सभी में मतदान के दौरान भारत अनुपस्थित रहा है। यह पंक्तियां लिखे जाने तक भारत के रुख से रूस और अमेरिका सहित विश्व के सभी देश संतुष्ट हैं ।

    इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व और विदेश के बड़े नेताओं के साथ उनकी मैत्री फिर से दिखाई दे रही है। जंग के खतरनाक दौर में भी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन जहां उनसे फोन पर बात कर रहे हैं और भरतीय छात्रों की सकुशल वापसी के लिए सुरक्षित मार्ग दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यूक्रेन भी भारत की ओर देख रहा है। उक्रेन ने नरेंद्र मोदी से मदद की अपील भी कर रहा है ताकि युद्ध को रोका जा सके। उधर, यूक्रेन के पड़ोसी देश इस विपरीत स्थिति में भारतीय छात्रों की वापसी में सहयोग कर रहे हैं।

    आज भारत ने जो तटस्थ नीति अपनायी है और जिसकी पूरे विश्व में प्रशंसा हो रही है, वहीं मोदी विरोधी मीडिया इस बात पर भी अपना नकारात्मक प्रवचन चला रहा है। पश्चिमी जगत के मीडिया की नकल करने वाला मीडिया का एक वर्ग यह भी कह रहा है कि भारत को इस युद्ध में रूस के निंदा प्रस्ताव में रूसी कार्यवाही के विरोध में अपना मत देना चाहिए था , आखिर क्यों ? भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी जो भूमिका निभायी है, उसके कारण भारत के दो धुर विरोधी चीन और पाकिस्तान भी हैरान हो रहे हैं। वहां के टीवी चैनलों पर बड़ी बहस हो रही है कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग में चल क्या रहा है।

    भारत की वर्तमान रणनीति की पृष्ठभूमि पर हम सभी को नजर डालनी होगी और अपना विस्मृत ज्ञान का भंडार फिर से ताजा करना होगा। यूक्रेन एक ऐसा देश रहा है, जिसने कभी भी किसी भी संकट में भारत का साथ नहीं दिया है। वह सदा ही भारत विरोध का रवैया अपानाता रहा है।। यूक्रेन की सरकार ने न तो अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के कार्यकाल में परमाणु परीक्षण के मुददे पर भारत का साथ दिया और न ही आतंकवाद के मुददे पर। यूक्रेन सदा पाकिस्तान व चीन के साथ खड़ा रहा है।

    अमेरिका व अन्य पश्चिमी देश भारत पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि वह रूस के खिलाफ मतदान करे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन देशों ने आज तक आतंकवाद के मुददे पर भारत को कोई सहयोग कभी नहीं दिया। इतिहास गवाह है कि अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देश पाकिस्तान के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर व पाक अधिकृत कश्मीर को मिलाकर एक स्वतंत्र देश बनाने का सपना देख रहे हैं। कई बार उनकी यह साजिशें उन देशों के नेताओं की जुबान पर आ जाती हैं। जब गलवान में चीन ने सोची समझी साजिश के तहत हमला किया, तब भी ये देश भारत के पक्ष में नहीं बोले। फिर आज भारत इन देशों का साथ क्यों दे ?

    भारत में बैठे पश्चिमी मीडिया के पिछलग्गू बुद्धिजीवी सरकार से यह आशा कर रहे हैं कि वह यूक्रेन का साथ दे। ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस ही आता है। वर्ष 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, उस समय संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए एक प्रस्ताव आया था।उस प्रस्ताव को दुनिया के जिन 25 देशों ने प्रस्तुत किया था, उसमें यूक्रेन प्रमुख था। भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए यूक्रेन ने पाकिस्तान का साथ दिया था।

    सबसे खतरनाक पहलू यह है कि पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान को हथियार बेचने वाला सबसे बड़ा देश यूक्रेन बना हुआ है। पाकिस्तान को हथियारों की जरूरत यूक्रेन ही पूरा करता है। वह अब तक पाकिस्तान को 12 हजार करोड़ रुपये के हथियार बेच चुका है। आज पाकिस्तान के पास जो 400 टैंक हैं, वो यूक्रेन के द्वारा ही बेचे गये हैं। खबर आई कि यूक्रेन पाकिस्तान को चोरी छिपे परमाणु हथियारो की सप्लाई भी कर रहा था। आज जब आपरेशन गंगा सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है, तब भी यूक्रेन की ओर से बाधा खड़ी की जा रही है।

    अब अमेरिका की पृष्ठभूमि पर भी नजर डालते हैं। इतिहास गवाह है कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी जगत कभी नहीं चाहता कि भारत एक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर देश बन जाये । यह सभी देश भारत को एक बाजार के नजरिये से ही देखते हैं और यही कारण है कि वह समय -समय पर भारत को धमकियां देते रहे हैं। वे भारत के आंतरिक मामलों में भी हस्तक्षेप करने का प्रयास करते रहते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के अखबारों में भारत विरोधी लेख लिखे जाते हैं ।उन्हीं के आधार पर भारत के विरोधी दल सरकार के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करते रहते हैं।

    जरा याद करें जब 1971 के युद्ध में अमेरिका ने भारत को युद्ध रोकने की धमकी दी थी। तब पाकिस्तान की हार आसान लग रही थी। उस समय किसिंजर ने राष्ट्रपति निक्सन को बंगाल की खाड़ी में परमाणु संचालित विमान वाहक पोत यूएसएस इंटरप्राइज के नेतृत्व में यूएस 7वी फ्लीट भेजने के लिए प्रेरित किया था। उस समय यह दुनिया का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत समुद्र की सतह पर चलता फिरता एक राक्षस था। उसके विपरीत, भारतीय नौसेना के बेड़े का नेतृत्व 20,000 टन के विमानवाहक पोत विक्रांत ने किया, जिसके पास 20 हल्के लड़ाकू विमान थे। उस समय रूस की पनडुब्बियों ने ही 1971 की जंग में अमेरिका के विरुद्ध ढाल बनकर भारतीय नौसेना का साथ दिया था।

    रूस ने हर कदम पर भारत का भरपूर सहयोग किया है। जब सोवियत संघ था, तब भी और आज के समय में जब सोवियत संघ खंड- खंड हो चुका है, उस समय भी रूस भारत के साथ खड़ा दिखाई देता है। जम्मू -कश्मीर के मुददे पर तो रूस ने सदा हर मंच पर भारत का ही साथ दिया है और वह कई बार पाकिस्तान को कड़ी फटकार भी लगाता रहा है। पूर्व सोवियत संघ ने भारत के परमाणु परीक्षण के समय भी भारत का खुलकर विरोध नहीं किया था। अफगानिस्तान में भारत की भूमिका पर भी वह भारत के ही साथ रहा है। आज अगर रूस यूक्रेन को कमजोर कर रहा है और उसकी सेना की कमर को ध्वस्त कर रहा है, तो फिर परोक्ष रूप से पाकिस्तान की ताकत को भी कमजोर कर रहा है। वैसे भी पाकिस्तान की हालत बहुत दयनीय हो चुकी है और वह बहुत दबाव में है तथा खिसियाहट में वह भी कोई बड़ी गलती करने का दुस्साहस कर सकता है ।

    अभी भारत को पाक अधिकृत कश्मीर भी आजाद कराना है, जबकि पाकिस्तान कश्मीर का राग अलाप रहा है। चीन की नजर अरुणाचल व लद्दाख पर लगी हुई है। वह वह कई बार सीमा का उल्लंघन भी कर चुका है। यह तो बहुत अच्छा है कि इस समय हमारे देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार चल रही है और देशहित में बड़े फैसले कर रही है।

    रूस- यूक्रेन विवाद के बीच एक बड़ी खबर यह भी आ गयी कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत ने रूस की निंदा वाले प्रस्ताव से एक बार फिर दूरी बनाकर सभी को चौंका दिया है । यह प्रस्ताव रूस की सैन्य कार्रवाइयों में मानवाधिकार उल्लंघन के संबंध में लाया गया था। यहां पर 32 सदस्यों ने रूस की निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया और भारत सहित 13 देशों ने हिस्सा नहीं लिया। वहीं दो देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया। इसी के साथ मानवाधिकार उल्लंघन की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच आयोग के गठन पर मुहर लग गयी। यूक्रेन पर हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र के अलग अलग निकाय रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव ला चुके हैं। वास्तविकता यह है कि मानवाधिकार परिषद कई मामलों में चुप्पी साध जाती है। यह वही मानवाधिकर परिषद है, जिसमें आज तक कश्मीर में आतंकवाद पर चर्चा नहीं की गयी और न ही कश्मीरी पंडितो पर हुए अत्याचारों की जांच के लिए कभी कोई किसी प्रकार की पहल की गयी। हां, अगर भारत में किसी अल्पसंख्यक पर कोई आंच आती है, तो यह सदस्य सक्रिय हो जाते हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सेना के अत्याचार, पाकिस्तान व बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी इस तरह की सभी संस्थाएं मौन हो जाती हैं।

    ऐसे में भारत रूस- यूक्रेन संकट पर तटस्थ रणनीति अपना रहा है। इसे अब तक की सबसे सफल रणनीति मानी जानी चाहिए। भारत इस समय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बहुत मजबूत स्थिति में है, जबकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश सहित भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले लोग हैरान और परेशान हैं।

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