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    भारतीय टैक्सटाइल्स पर मंदी के बादल, सीसीआई को दो साल में रुई से क‌ई हजार करोड़ की हानि

  • November 02, 2020

    चंडीगढ़। भारत में चालू न‌ए कपास सीज़न वर्ष 2020-21 के दौरान विभिन्न कपास पैदावार राज्यों की घरेलू मंडियों में अबतक लगभग 22 लाख गांठों की आमद पहुंची है, जिसमें पंजाब, हरियाणा व राजस्थान की मंडियों की करीब 11-12 लाख गांठों की आमद भी शामिल है।

    सूत्रों के अनुसार कपड़ा मंत्रालय के उपक्रम भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने देश में अब तक लगभग छह लाख गांठ कपास पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश व तेलंगाना राज्यों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा है। बाजार के जानकारों ने बताया कि इस हफ्ते देश में कपास की आमद रोजाना 1.25 से 1.140 लाख गांठों की हो गई थी। इस महीने देश में कपास की आमद में बड़ी बढ़ोतरी होने के कयास लगाए जा रहे हैं।

    देश में प्रत्येक सीज़न नवम्बर – दिसम्बर के दो महीनों के दौरान सबसे ज्यादा कपास की आमद होती हैं। देश में कपास की कोई कमी नहीं है और खपत से अधिक कपास हैं। कोरोनावायरस के ख़तरे से यूरोपीय देशों में फिर से बंद कर दिया है, जिससे कपड़ा की मांग कमजोर पड़ गई है। इसके भारतीय टैक्सटाइल्स उद्योग पर एक बार फिर से मंदी के बादल मंडराने लगे हैं क्योंकि भारत मुख्य रूप से कपड़ा यूरोपीय देशों को निर्यात करता है। भारतीय टैक्सटाइल्स उद्योग व कताई मिलों को लाकडाउन की वजह से क‌ई माह बड़ी आर्थिक रूप से जूझना पड़ा और धन का भारी नुक़सान उठाना पड़ा। देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले टैक्सटाइल्स उद्योग व कताई मिलों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने की जानकारी केंद्र सरकार को पता होने के बावजूद सरकार अभी तक अनजान बनी हुई हैं।

    केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने देश के किसानों व टैक्सटाइल्स उद्योग व कताई मिलों की भलाई के लिए कपड़ा मंत्रालय ने भारतीय कपास निगम लिमिटेड का गठन किया था। सीसीआई चालू कपास सीज़न के दौरान किसानों के लिए 35000 करोड़ रुपये खर्च करके न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास खरीद रहा है। यह एक बहुत ही अच्छा फैसला है और ऐसे फैसले जारी रहने चाहिए। दूसरी तरफ भारतीय कपास निगम लिमिटेड सीसीआई ने आज तक भारतीय टैक्सटाइल्स उद्योग व कताई मिलों को ठेंगा ही दिखाई रही है। सीसीआई को पिछले 2 सालों में क‌ई हजार करोड़ रुपये की हानि हो चुकी हैं लेकिन सीसीआई को कोई पूछने वाला नहीं है कि आखिरकार लोगों से विभिन्न रुप से इकठ्ठा किया गया धन क्यों बर्बाद किया जा रहा है। वहीं, सीसीआई ने कताई मिलों को राहत तो क्या देनी थी बल्कि उसने अपनी रुई की कीमतों में बढ़ोतरी कर रखी है।

    सूत्रों के अनुसार सीसी.आई ने अक्तूबर माह में करीब 3100 -3400 रुपये प्रति कैंडी और पुरानी रुई कीमतों में जुलाई से अबतक करीब 6000 रुपए प्रति कैंडी की बढ़ोतरी की है। देश में लाकडाउन को देखते हुए केंद्र सरकार को भारतीय टैक्सटाइल्स उद्योग व कताई मिलों को सीसीआई द्वारा छोटी-बडी मिलों को विशेष छूट पैकेज देना चाहिए था लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया। सीसीआई की रुई हर कताई मिलर नहीं खरीद पाता है क्योंकि विभाग के नियम प्रत्येक कताई मिल पूरा नही कर सकती हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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