नई दिल्ली । भारतीय रुपया (Indian Rupee) अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले 84 के स्तर को पार करते हुए अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, आने वाले हफ्तों में इसके और गिरने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे घरेलू अर्थव्यवस्था (domestic economy) पर कुछ असर दिख सकता है। हालांकि, यदि रुपये में गिरावट जारी रहती है तो इसे थामने के लिए आरबीआई (RBI) अपने स्तर पर जरूरी कदम भी उठा सकता है।
गिरावट का सिलसिला जारी
भारतीय रुपया पिछले हफ्ते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84 रुपये पर पहुंच गया। इस सप्ताह सोमवार को बाजार खुलने के बाद फिर से गिरकर 84.07 रुपये के रिकॉर्ड सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। यह इसी स्तर के आसपास बना हुआ है। इस वर्ष रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर रहा है। 11 मार्च को यह डॉलर के मुकाबले 82.68 के अपने सबसे मजबूत स्तर पर था। अप्रैल 2022 से अब तक भारतीय मुद्रा में नौ फीसदी से अधिक की तेज गिरावट आई है, जो 10 वर्षों में औसतन 3% वार्षिक गिरावट की दीर्घकालिक प्रवृत्ति से अधिक है, जिससे कुल 30% की गिरावट हुई है।
शेयर बाजार में और गिरावट के आसार
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव से स्थानीय मुद्रा पर अल्पावधि में असर पड़ सकता है। इस साल विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने लगभग 25 अरब डॉलर का निवेश भारतीय बाजारों में किया, जिसके बाद बाजार मूल्यांकन को अधिक माना जा रहा है। इसे देखते हुए केवल अक्तूबर में ही एफआईआई ने तेज मुनाफावसूली की है और बाजारों से लगभग आठ अरब डॉलर (करीब 66 हजार करोड़) वापस निकाल लिए हैं।
इससे रुपये की मांग कमजोर हुई है और डॉलर मजबूत हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर और बिकवाली होती है तो रुपया और गिरकर 84.20 के स्तर तक पहुंच सकता है। हालांकि, देश के 700 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार से आरबीआई हस्तक्षेप कर सकता है और रुपये की गिरावट को रोकने में मदद कर सकता है।
आम लोगों पर क्या होगा असर
रुपये के कमजोर होने से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, जिससे महंगाई बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि भारत अपनी वार्षिक जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है, इससे इसका सीधा असर तेल की कीमतों पर देखने को मिल सकता है। इसके अलावा भारत कुछ प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं का भी आयातक है। रुपये में गिरावट का इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और रसायनों के कई उत्पादों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विदेशी शिक्षा और पर्यटन महंगा हो सकते हैं।
निर्यातकों के भी लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण
हालांकि, रुपया कमजोर होने से निर्यातकों को फायदा होता, क्योंकि उन्हें डॉलर के बदले अधिक स्थानीय मुद्रा मिलती है, लेकिन नुकसान भी है। कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण विदेशी बाजारों में मांग कम हो जाती है और उनकी बिक्री पर असर पड़ता है। इसका प्रभाव भारत के वस्त्र निर्यात पर भी पड़ा है, जो अप्रैल-अगस्त के दौरान सिर्फ 1.1% की धीमी वृद्धि दिखा रहा है। हालांकि, सेवाओं के निर्यात में 11% की वृद्धि हुई है, फिर भी आयात की वृद्धि इससे अधिक तेजी से हो रही है, जिससे कुल व्यापार घाटा बढ़ रहा है। इस स्थिति में, रुपये की और कमजोरी निर्यातकों के लिए सकारात्मक होने के बजाय चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है
रुपये में गिरावट के कारण
दुनियाभर में भू-राजनीतिक अस्थिरता
इजराइल-ईरान और रूस-यूक्रेन संघर्ष
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें
विदेशी निवेश में गिरावट
अमेरिकी डॉलर की मजबूती
भारत की व्यापारिक स्थिति
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