– मृत्युंजय दीक्षित
फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास ने सात अक्टूबर को इजराइल पर भीषण हमला कर उसके लगभग 1400 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। लगभग 200 लोगों को बंधक बनाकर गाजा ले गया। मानवता के इन दुश्मनों ने इस हमले में क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ दीं। बच्चों के सामने माता-पिता को मार देने फिर मासूमों को जलाकर कोयले में बदल देने जैसी जघन्य हरकत की। ऐसी बर्बरता और अपने नागरिकों की दुर्दशा को देखकर इजराइल का शोक और क्रोध में डूबना स्वाभाविक है। इजराइल का हमास को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प नैतिक है। गाजा पट्टी पर इजराइल के कहर से घबराये हमास के चालाक आतंकी अब आम नागरिकों के पीछे छुपकर उनको अपनी ढाल बना रहे हैं। हमास समर्थक संगठन और कुछ देश आतंकवादियों की तरफ से विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं।
इस प्रकरण में भारत ने आतंकवाद के प्रति शून्य सहनशीलता ( जीरो टॉलरेंस ) की नीति का पालन करते हुए इजराइल को समर्थन देने की घोषणा के साथ फिलिस्तीन और इजराइल के मध्य वार्ता के माध्यम से समस्या के स्थायी शांतिपूर्ण समाधान की पक्षधरता की है। संयुक्त राष्ट्र में जॉर्डन द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर भारत के प्रतिनिधि ने इसे रेखांकित भी किया। इस प्रस्ताव में हमास के आतंकी हमले की निंदा न होने के कारण स्वयं को मतदान से अलग रखा। भारत के इस संतुलित कदम की सभी जगह प्रशंसा हो रही है।
स्वाभाविक रूप से इस अंतरराष्ट्रीय घटना का प्रभाव भारत की आंतरिक राजनीति में भी दिखाई पड़ रहा है। विरोधी दलों का इंडी गठबंधन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा को हराने के लिए इसका राजनीतिक लाभ उठाने के प्रयास में है। सात अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल पर एयर स्ट्राइक की तो भारत के किसी भी विरोधी दल के नेता ने इस आतंकी घटना की निंदा नहीं की। किंतु जैसे ही इजराइल की सेना ने हमास के आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अपना अभियान प्रारम्भ किया वैसे ही ये सोते से जाग गए और फिलिस्तीन के नाम पर अपने मुस्लिम वोट बैंक को साधने का प्रयास करने लगे।
यह सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि हमास व हिजबुल्लाह जैसे संगठन बहुत ही खतरनाक और क्रूर आतंकवादी संगठन हैं। भारत में क्योंकि अगले कुछ माह में पांच राज्यों और उसके बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए कांग्रेस सहित सभी विरोधी दल मुसलमानों के वोट पाने के लिए हमास जैसे आतंकवादी संगठन का साथ देते दिख रहे हैं। वोट बैंक को रिझाने के लिए ये कितना नीचे जा सकते हैं इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इजराइल पर हमला करने के बाद हमास के जिन आतंकवादियों ने एक महिला के नग्न शव की परेड निकाली, भारत में मुस्लिम वोट बैंक को प्रसन्न करने में जुटी “लड़की हूं लड़ सकती हूं ” का नारा देने वाली कांग्रेस की एक नेता फिलिस्तीन के पीछे छुपकर उसी हमास के समर्थन में खड़ी दिखाई दे रही हैं और इस कुकृत्य की निंदा करने के बजाय इजराइल द्वारा आत्मरक्षा के लिए गाजा पर की जा रही बमबारी की निंदा कर रही हैं।
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर तो कुछ अन्य विरोधी दलों के नेताओं के साथ फिलिस्तीन के दूतावास तक पहुंच गए। बाटला हाउस एनकाउंटर पर आंसू बहाने वालीं सोनिया गांधी संयुक्त राष्ट्र में भारत के रुख का विरोध करते हुए लेख लिख रही हैं। बीच के कुछ वर्षों को छोड़ दें तो 2013 तक भारत में कांग्रेस या उसके सहयोग वाली सरकारें ही रहीं किंतु इन सरकारों ने एक बार भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर एक शब्द भी नहीं कहा। भारत में कश्मीरी हिन्दुओं का पलायन, 1984 में सिखों का नरसंहार जैसी घटनाएं हुईं, तब भी ये चुप रहीं। आज यही पार्टियां वोट बैंक के लिए फिलिस्तीन के नाम पर हमास का साथ दे रही हैं। मोहब्बत की दुकान के व्यापारी खूंखार हमास के साथ खड़े होकर आतंक की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं।
इन दलों की वर्तमान कार्यप्रणाली ने साफ कर दिया है कि 2013 के पूर्व जम्मू कश्मीर का आतंकवाद और अलगाववाद, मुंबई जैसी बड़ी आतंकी घटनाओं सहित देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले बम धमाकों को कांग्रेस व इन मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दलों का संरक्षण प्राप्त था। इन्हीं दलों की सरकारों की नीतियों के कारण दाऊद इब्राहीम जैसा आतंकवादी पाकिस्तान के संरक्षण में पल रहा है। इंडी गठबंधन में शामिल समाजवादीपार्टी का बस चलता तो उत्तर प्रदेश में हुए आतंकवादी हमलों में शामिल सभी आतंकियों को मुसलमान होने के नाम पर छुड़वा देती। किंतु न्यायपालिका के कारण समाजवादियों का यह प्रयास विफल हो गया। आज समाजवादी पार्टी खुलकर हमास जैसे आतंकवादी संगठन का समर्थन कर रही है।
इजराइल के पलटवार के बाद से हर जुमे की नमाज के बाद फिलिस्तीन व हमास के समर्थन की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी व उनकी नीतियों के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हो रहे हैं । इन प्रदर्शनों में एआईएआईएम नेता ओवैसी तथा कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल भारत के सामाजिक वातावरण को अशांत करने का या फिर देश को दंगों की आग में झोंकने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। सबसे घृणित व विकृत बात यह है कि विपक्षी दलों के प्रवक्ता दो हाथ आगे जाकर हमास को एक क्रांतिकारी संगठन बता रहे हैं। टीवी चैनलों पर बहस के दौरान हमास को मानवाधिकार संगठन तक बताया जा रहा है। कुछ लोग यह भी कह रहे है कि फिलिस्तीन, गाजा और हमास के प्रति हमारी श्रद्धा है।
मानसिक संतुलन खो चुके एक पार्टी के प्रवक्ता ने हमास के समर्थन में कहा कि वह बिल्कुल वैसा ही क्रांतिकारी कार्य कर रहा है जैसा भारत के लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध किया था और अंग्रेजों को मार भगाया था। विपक्षी गठबंधन द्वारा हवा दिए जाने का ही परिणाम है कि हमास के एक आतंकवादी ने केरल में एक रैली को वर्चुअल संबोधित किया। केरल में एर्नाकुलम जिले में ईसाई समुदाय के एक सम्मेलन में हुए धमाकों में तीन लोगों की दुखद मौत हो गई और 51 लोग घायल हो गए। वहीं बिहार के पूर्णिया जिले में भी एक युवक द्वारा सोशल मीडिया पर कुछ आपत्तिजनक पोस्ट लिखे जाने के बाद हिंसा भड़क उठी। उसके बाद भी बिहार की नीतीश कुमार सरकार अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर उतारू है ।
मुस्लिम वोट बैंक के तुष्टिकरण में अंधे विपक्षी गठबंधन को समझना पड़ेगा कि इजराइल सदा भारत के साथ मजबूती खड़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब भारत को आवश्यकता पड़ी इजराइल ने भारत का साथ दिया। अटल जी की सरकार के समय परमाणु परीक्षण होने पर विश्व के अनेक देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिये थे तब भी इजराइल भारत के साथ खड़ा रहा। ऐसे मित्र देश पर आतंकी हमला हो और भारत उसके साथ न खड़ा हो तो यह आत्मघाती होगा। केरल में हमास के पूर्व प्रमुख खालिद मशाल ने फिलिस्तीन समर्थक रैली को संबोधित कर हिन्दुत्व और यहूदीवाद को उखाड़ फेंकने का आह्वान कर चुका है। यह वामपंथी सरकार के संरक्षण से ही संभव हो पाया है। यह हिन्दुओं के चेतने का समय है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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