नई दिल्ली। OECD देशों में जाकर प्रवासी बनने और वहां की नागरिकता हासिल करने में भारतीय दूसरे नंबर पर हैं। साल 2018 के आंकड़ों में चीन जहां पहले पायदान पर बरकरार है, रोमानिया को पीछे छोड़ भारत दूसरे नंबर पर आ गया है। साल 2018 के दौरान 4.3 चीनी OECD देशों में बस गए जो कि इन देशों में कुल प्रवासियों का 6.5% है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले उसमें 1% की कमी आई है। भारत से प्रवासियों के आंकड़ों में 10% की भारी बढ़त देखने को मिली है। 2018 में कुल 3.3 लाख भारतीय प्रवासी हो गए जो कि टोटल का करीब 5% है। कनाडा में बसने वालों की संख्या में खासा उछाल देखा गया है जबकि जर्मनी और इटली को भी बहुत लोगों ने चुना है।
अलग-अलग देशों से जुटाए गए डेटा के अनुसार, 2018 में कुल 66 लाख लोग OECD देशों में जाकर बस गए जो कि पिछले साल के मुकाबले 3.8% ज्यादा है। हालांकि OECD के अनुसार, इस डेटा में अस्थायी तौर पर बसे लोग भी शामिल हैं। OECD में यूरोप के कुछ देश, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड शामिल हैं। यह सभी विकसित देश हैं और बड़ी संख्या में प्रवासियों को आकर्षित करते हैं। चाहे वह काम के लिए हो या पढ़ाई के लिए या शरण लेने के लिए।
कोरोना वायरस महामारी से पहले यानी 2019 में OECD देशों (कोलम्बिया और तुर्की छोड़कर) में बसने वालों की संख्या 53 लाख थी। 2017 और 2018 के आंकड़े भी इसी के आसपास हैं। सोमवार को ‘इंटरनैशनल माइग्रेशन आउटलुक 2020’ जारी करते हुए OECD के महासचिव एंजल गूरिया ने ककहा कि कोविड-19 की वजह से प्रवास पर असर पड़ा है। कोविड के चलते करीब-करीब हर OECD देश ने विदेशियों के लिए दरवाजे बंद कर दिए। 2020 की पहली छमाही में वीजा जारी करने में 46% की गिरावट आई है। यह अबतक की सबसे बड़ी गिरावट है। दूसरी तिमाही में यह कमी बढ़कर 72% हो गई।
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