नई दिल्ली । भारतीय वायुसेना ने हवाई अड्डे के रनवे पर उड़ानों की आवाजाही में दिक्कत पैदा करने वाले पक्षियों और जानवरों को खदेड़ने के लिए पहली बार कैनाइन दस्ता बनाया है। इसमें देशी नस्ल के 4 मुधोल हाउंड पिल्लों को शामिल किया गया है। कर्नाटक के बागलकोट जिले में कैनाइन रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सेंटर चारों पिल्ले वायुसेना को सौंप दिए हैं। इस नस्ल के डॉग्स का इस्तेमाल सेना भी विस्फोटकों का पता लगाने के लिए कर रही है।
कर्नाटक के बागलकोट जिले में कैनाइन रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सेंटर (सीआरआईसी) में मुधोल हाउंड नस्ल के पिल्लों को प्रशिक्षित किया गया है। इस विशेष नस्ल को प्राकृतिक रूप से फुर्तीला माना जाता है, जिन्हें कम प्रशिक्षण में ही तैयार कर लिया जाता है। किसी भी मौसम के लिए अनुकूल इन कुत्तों को अपने चपल स्वभाव के कारण भारतीय सेना, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ, एसएसबी, आईटीबीपी और कुछ राज्यों के पुलिस विभागों ने अपनी सेवाओं के लिए भर्ती किया है। सीआरआईसी के प्रमुख महेश आकाशी के मुताबिक मुधोल हाउंड्स नस्ल को इसकी सहनशक्ति, कुशाग्रता और चपलता के लिए जाना जाता है। हाउंड की सेवाएं अमूल्य हैं।
भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि कई एयरबेस पर बर्ड-हिट बड़ी समस्या बन गई है। हवाई अड्डे के रनवे पर उड़ानों की आवाजाही में दिक्कत पैदा करने वाले पक्षियों और जानवरों की समस्या से परेशान होकर वायुसेना ने पहली बार कैनाइन दस्ता बनाने का फैसला लिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मुधोल हाउंड नस्ल के कुत्तों की प्रशंसा की थी, इसलिए वायुसेना ने अपने कैनाइन दस्ते की शुरुआत इसी नस्ल से करने का फैसला किया। इन कुत्तों को लैपविंग और लार्क जैसे जमीन पर रहने वाले पक्षियों की समस्या का समाधान करने के लिए कैनाइन दस्ते में शामिल किया गया है। इस देशी नस्ल के कुत्तों के गुण और स्वभाव पक्षी डराने के लिए उपयुक्त पाए गए हैं।
डॉग यूनिट शुरू करने के लिए वायुसेना ने कर्नाटक के बागलकोट जिले में स्थित कैनाइन रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सेंटर को देशी नस्ल मुधोल हाउंड्स के सात पिल्ले मुहैया कराने का आदेश दिया था। सीआरआईसी ने आगरा वायु सेना स्टेशन के वायुसेना अधिकारियों को लगभग तीन महीने की आयु के चार पिल्ले सौंप दिए हैं। तीन अन्य पिल्ले छह महीने के बाद सौंपने की तैयारी है। भारतीय वायुसेना के अधिकारियों को उम्मीद है कि डॉग वॉकिंग मॉड्यूल इस खतरे को खत्म करने में मदद करेगा। वायुसेना इस परियोजना की सफलता के बाद अपने सभी एयरबेस पर कैनाइन दस्ता तैनात करने की भी योजना बना रहा है।
भारतीय सेना ने भी अपनी मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर में मुधोल की देशी नस्ल को शामिल किया है। इनका इस्तेमाल इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस (आईईडी) का पता लगाने में किया जा रहा है। इसके अलावा सेना चलाए जा रहे काउंटर ऑपरेशन के दौरान भी इनका इस्तेमाल कर रही है।
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