डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कोरोना महामारी की रफ्तार जितनी तेज होती जा रही है, देश में उतना ही ज्यादा हड़कंप मचता जा रहा है। टीवी पर श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों के दृश्य देखकर लोगों का दिल बैठा जा रहा है। लेकिन देश के कोने-कोने से ऐसे सैकड़ों-हजारों लोग भी निकल पड़े हैं, जो अपना तन, मन, धन लगाकर मरीज़ों की सेवा कर रहे हैं। उनका जिक्र कुछ अखबारों में जरूर हो रहा है लेकिन हमारे टीवी चैनलों को क्या हुआ है ? वे उन दृश्यों को क्यों नहीं दिखाते? कई लोग आक्सीजन सिलेंडर मुफ्त में भर रहे हैं, कई मुफ्त वेक्सीन अपनी तरफ से लगवा रहे हैं, कुछ लोग जरुरतमंदों को रेमडेसिविर का इंजेक्शन सही कीमत पर उपलब्ध करवा रहे हैं। कुछ लोग अपनी जान हथेली पर रखकर मरीजों के लिए एंबुलेंस चला रहे हैं। उन डाॅक्टरों और नर्सों के क्या कहने, जो मौत के खतरे के बावजूद मरीजों की सेवा कर रहे हैं।
अब टीके की कीमत भी घटी है और सरकार मुफ्त में भी टीके उपलब्ध करवा रही है लेकिन असली सवाल यह है कि नौजवानों को लगनेवाले करोड़ों टीके कब तक उपलब्ध होंगे ? ऑक्सीजन एक्सप्रेस और विदेशी ऑक्सीजन यंत्रों के आयात के बावजूद दर्जनों लोग ऑक्सीजन के अभाव में दम क्यों तोड़ रहे हैं? चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के चुनाव-परिणाम के बाद की रैलियों पर प्रतिबंध लगाकर ठीक किया लेकिन बंगाल, तमिलनाडु और केरल के आंकड़े प्रतिदिन छलांग लगा रहे हैं।
कोरोना की लड़ाई में अभी विदेशों से जो भरपूर मदद की खबरें आ रही हैं, उन पर फूहड़ प्रतिक्रियाएं भी की जा रही हैं। कहा जा रहा है कि मोदी ने भारत को भिखारी बना दिया है। यह मानवीय मदद किसी व्यक्ति-विशेष की वजह से नहीं, भारत की अपनी वजह से आ रही है। उन देशों के लोगों के सीने में वही दिल धड़कता है, जो हमारे सीने में धड़क रहा है। भारतीय लोगों में अद्भुत सेवा-भाव है। उन्होंने दर्जनों देशों को मुफ्त वैक्सीन बांटी है। अब जो मुसीबतों का पहाड़ उस पर टूट पड़ा है, वह उस पर भी विजय पाकर रहेगा। भारत हारेगा नहीं, जीतेगा।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)