नई दिल्ली: एलएसी (LAC) पर चीन (China) को भारत (India) ने उसी के अंदाज में जवाब देना शुरू कर दिया है. चीन ने एलएसी के क़रीब सड़कों का जाल बिछाया तो भारत ने भी एलएसी तक जाने वाली सड़कों को ऑल वेदर में तब्दील कर दिया. चीन ने सैन्य अड्डे और वायुसेना (military bases and air force) के लिए नए रनवे और बड़े निर्माण किए तो भारत ने भी अपनी तरफ़ उसी बड़े पैमाने पर निर्माण तेज किया. एलएसी के क़रीब जितने भी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (advance landing ground) है उन्हें ऑप्रेशन के लिए तैयार कर दिया.
कम्यूनिकेशन (communication) के तौर पर चीन 5G को एलएसी के क़रीब लेकर आया है. यहां तक कि चीन ने तो तिब्बत में भूटान-भारत सीमा (Bhutan-India border) के क़रीब दुनिया के सबसे ऊंचे रडार स्टेशन पर 5G सिग्नल बेस पिछले साल ही शुरू किया है. यही नहीं एलएसी के करीब बसे गांव को लोगों के फ़ोन पर चीनी सर्विस प्रोवाइडर के रोमिंग सिग्नल, भारतीय फ़ोन पर आने लगते हैं, ताकी चीन अपनी जासूसी के मंसूबों को पूरा कर सके लेकिन अब इसके जवाब में भारत ने भी चीन के साथ लगने वाली 3488 किलोमीटर की सीमा के हर गांव और हाई ऑलटेट्यूड में सेना के हर पोस्ट तक हाई स्पीड कम्यूनिकेशन पहुंचाने का काम तेज़ी से शुरू किया है.
पिछले हफ़्ते ही भारतीय सेना ने 18000 फीट की ऊंचाई और दुर्गम इलाक़ों में इस्तेमाल के लिए 4G और 5G कम्यूनिकेशन सिस्टम के लिए RFI जारी की है. इस RFI में सेना में दूरसंचार कम्पनियों से दुर्गम इलाक़ों में सैन्य ठिकानों की ज़रूरत के हिसाब से सुरक्षित नेटवर्क, वायस, मैसेज और डाटा प्रदान करने की बात कही गई है. आरएफआई में ये भी कहा गया है कि ये सिस्टम -20 से -25 डिग्री के तापमान, 18000 फ़ीट की ऊंचाई, .5 mm से 50 सेन्टीमीटर बारिश, 10 फीट तक की बर्फबारी और 50 से 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलने वाली हवाओं वाले इलाक़ों में बेहतर तरीक़े से काम करना चाहिए. यूज़र डिवाइस 256 bit AES इंक्रिपटेड सिक्योरिटी होनी चाहिए.
सेना की आरएफआई के तहत करार होने के 12 महीने के भीतर कंपनी के ये डिलीवरी शुरू करनी होगी. वहीं भारत सरकार युद्ध स्तर पर देश के हर कोने में रहने वाले भारतीयों को हाईटेक कम्यूनिकेशन से जोड़ने के प्लान पर काम कर रही है. ख़ास तौर पर उन इलाक़ों में रहने वाले लोगों के लिए जो कि अभी तक मोबाईल और इंटरनेट से वंचित हैं और सामरिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भी बुधवार को ही केंद्रीय कैबिनेट ने पूर्वी लद्दाख सहित देश के सभी सीमावर्ती इलाकों में अब जल्द 4जी नेटवर्क मिलना शुरु करने पर फ़ैसला लिया गया.
केंद्रीय मंत्री अश्वनी वैष्णव ने कहा कि पीएम ने कैबिनेट की बैठक में कहा कि जिन गांव में 2जी नेटवर्क है वहां 4जी सर्विस मिलनी चाहिए और ये आदेश बॉर्डर एरिया के लिए भी दिया गया है. इस पर रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय और टेलीकम्युनिकेशन मंत्रालय मिलकर एक प्रपोजल तैयार करने को कहा गया है कि इसे कैसे इंप्लिमेंट किया जा सकता है. इसके लिए सरकारी टैलिकॉम कंपनी बीएसएनएल का रिवाइवल किया जाएगा जिसके लिए सरकार की तरफ से 1.64 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की गई है. साथ ही बीएसएनएल का बीबीएनएल यानि भारत ब्रॉडबैंड निगम के साथ विलय करने का फैसला भी लिया गया है ताकि दोनों सर्विस प्रोवाइडर का करीब 14 लाख किलोमीटर लंबे ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का ज्यादातर इस्तेमाल कर सकें.
अभी तक दूर दराज और सीमावर्ती इलाक़ों में प्राइवेट कंपनियों अपनी सर्विस के लिए इतना इच्छुक नहीं रही है और इसके पीछे की वजह है की जितना पैसा खर्च करके कंपनियां अपना सेटअप तैयार करेगी उतना प्रोफ़िट उनको नहीं मिलता. क्योंकि जनसंख्या कम होने के चलते सर्विस लेने वाले लोगों की संख्या ही बहुत कम होगी लेकिन बीएसएनएल का सेटअप देश के हर सीमावर्ती इलाक़े तक है. ऐसे में बीएसएनएल को 4जी स्पेक्ट्रम भी दिया जा रहा है.
दो साल पहले ही संचार मंत्रालय ने देश के दूर दराज और सीमावर्ती 354 गांवों तक मोबाईल कनेक्टिविटी पहुंचाने के लिए दूर संचार मंत्रालय भी कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है. जिनमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख में ऐसे 144 गांव है जहां मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है. संचार मंत्रालय तो जम्मू कश्मीर और लद्दाख में वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल यानी वीसैट लगा रही है जिससे जवान सैटेलाइट फ़ोन का इस्तेमाल कर सके. बहरहाल फ़ास्ट इंटरनेट के दौर में वो देश सामरिक और आर्थिक तौर पर सबसे ताक़तवर होगा जिसका कम्यूनिकेशन सिस्टम अव्वल दर्जे का होगा और भारत इस दिशा में बहुत तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है.
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