नई दिल्ली। चीन की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए भारतीय सेना जल्द ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लद्दाख और अन्य सेक्टरों में चार उन्नत हेरॉन ड्रोन तैनात करेगी। रणनीतिक निगरानी क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सेना को जल्द ही यह ड्रोन इजरायल से मिलेंगे। एलएसी पर यथास्थिति बदलने के चीनी प्रयास के बाद भारत ने भी अप्रैल, 2020 के बाद अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ाई है। इसके साथ ही चीन भी भारतीय क्षेत्र में कैलाश रेंज की निगरानी के लिए लद्दाख में नए यूएवी का परीक्षण कर रहा है।
लद्दाख सेक्टर में सर्विलांस के लिए तीनों सेनाएं पहले से ही हेरॉन अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) का इस्तेमाल कर रही है जो एक बार में दो दिन तक उड़ सकता है। अब भारतीय सेना भी हेरॉन ड्रोन के आर्म्ड वर्जन को अपने बेड़े में शामिल कर रही है। हेरॉन ड्रोन 10 किमी. की ऊंचाई से दुश्मन की हरकत पर नजर रख सकता है। इन्हें इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने सभी मौसमों के रणनीतिक मिशनों के लिए विकसित किया है। हालांकि कोविड-19 की वजह से पट्टे पर हेरॉन ड्रोन लेने की प्रक्रिया में देरी हुई है लेकिन जल्द ही इजराइल से आपूर्ति होने पर निगरानी के लिए एलएसी पर तैनात किए जाएंगे। आने वाले इजरायली ड्रोन पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक उन्नत और काफी बेहतर एंटी-जैमिंग क्षमता वाले हैं।
सूत्रों ने कहा कि लंबी दूरी के रडार और सेंसर, एंटी-जैमिंग क्षमता और 35 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचने की क्षमता के साथ हेरॉन ड्रोन एलएसी के पास सभी प्रकार की खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में सक्षम होंगे। इन ड्रोनों का अधिग्रहण रक्षा बलों को दी गई आपातकालीन वित्तीय शक्तियों के तहत किया गया था। चीन के साथ जारी संघर्ष के बीच रक्षा बलों को अपनी युद्धक क्षमताओं को उन्नत करने के लिए आपातकालीन वित्तीय शक्तियां दी गई हैं। 2019 में बालाकोट हवाई हमले के ठीक बाद भी रक्षा बलों को इसी तरह की आर्थिक शक्तियां दी गई थीं। इन्हीं शक्तियों का उपयोग करते हुए भारतीय वायु सेना ने भी बड़ी संख्या में टैंक-रोधी निर्देशित मिसाइलें, लंबी दूरी की सटीक-निर्देशित तोपखाने के गोले के साथ-साथ हैमर एयर-टू-ग्राउंड स्टैंडऑफ मिसाइलों को लगभग 70 किमी. स्ट्राइक रेंज के साथ हासिल किया है।
पैन्गोंग झील के उत्तरी किनारे पर चीन की कथित घुसपैठ की जवाबी कार्रवाई में पिछले साल 29/30 अगस्त को जब भारतीय सेना ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे पर कैलाश पर्वत श्रृंखला को अपने कब्जे में लिया था तो इसी के बाद चीनी सेना बौखला गई थी। पिछले साल मई से दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर पर 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। इसी कारण पैन्गोंग झील के दोनों किनारों से सैनिकों की वापसी प्रक्रिया फरवरी, 2021 में शुरू हुई थी। इसी साल 09 अप्रैल को सैन्य-कमांडर की बैठकों के 11वें दौर में चीन ने एलएसी के तीन अन्य विवादित क्षेत्रों गोगरा पोस्ट, हॉट स्प्रिंग्स और डेप्सांग मैदानों से अपने सैनिकों को वापस लेने से इनकार करने के बाद सेनाओं के विस्थापन की प्रक्रिया रुकी पड़ी है।
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