नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल (Fatih Birol) ने संभावना जताई है कि सऊदी अरब, रूस और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा तेल उत्पादन में कटौती के फैसले के बाद भारत का तेल आयात खर्च साल की दूसरी छमाही में बढ़ सकती है।
इस साल की दूसरी छमाही में बाजार बहुत तंग होंगे: बिरोल
बिरोल ने कहा कि सऊदी अरब, रूस और अन्य ओपेक प्लस उत्पादकों ने तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया है। और जब हम अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के विश्लेषण और तेल बाजारों को देखने वाली लगभग हर गंभीर संस्था के विश्लेषण को देखते हैं, तो यह पता चलता है कि इस साल की दूसरी छमाही में बाजार बहुत तंग होंगे।
भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके उपभोक्ताओं पर पड़ेगा बोझ
आईईए के कार्यकारी निदेशक ने कहा कि भारत एक ऊर्जा आयातक देश है और देश में खपत होने वाले अधिकांश तेल का आयात किया जाता है। इसलिए प्रमुख उत्पादकों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती का निर्णय सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था और इसके उपभोक्ताओं पर बोझ डालेगा। बिरोल ने कहा कि आने वाले वर्षों में तेल की कीमतों और आपूर्ति सुरक्षा चिंताओं पर दबाव कम होगा क्योंकि अधिक देश अब अपनी प्राकृतिक गैस का उत्पादन और निर्यात कर रहे हैं जिससे बाजार में तरल प्राकृतिक गैस (LNG) का प्रवाह बढ़ेगा।
तेल आयात एक साल पहले की तुलना में 33 गुना अधिक
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से भारत वैश्विक तेल बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है, क्योंकि यूरोपीय संघ तेल समेत सभी रूसी उत्पादों से परहेज कर रहा है। दूसरी ओर, भारत ने रूस से अपने कच्चे तेल के आयात को रियायती दरों पर बढ़ाया है और डीजल और जेट ईंधन जैसे रिफाइंड तेल के लिए यूरोपीय देशों में पिछले दरवाजे से प्रवेश को सक्षम बनाया है।
जनवरी में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में तेल का आयात एक साल पहले की तुलना में 33 गुना अधिक बढ़ गया है। इसे लेकर आईईए के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यह एक उचित कदम है और भारत व्यापार और वित्तीय नियमों के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय नियमों और विनियमों का पालन कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत पारदर्शी तरीके से ऐसा कर रहा है और भारत दूसरों की तुलना में कम रियायती मूल्य पर कच्चे तेल का आयात करके लाभ उठा रहा है। यह निश्चित रूप से एक उचित कदम है।
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