नई दिल्ली । रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) से सीख लेते हुए भारतीय सेना (Indian Army)ने अपने सभी सैटेलाइट कम्युनिकेशन उपकरणों (Satellite Communication Equipment) के साथ एक बड़ी एक्सरसाइज की. एक हफ्ते तक पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) में चली इस एक्सरसाइज को ‘स्काईलाइट’ (Skylight) नाम दिया गया है. जानकारी के मुताबिक, इस एक्सरसाइज के दौरान सैटेलाइट से जुड़े सभी ग्राउंड कम्युनिकेशन उपकरणों को परखा गया. इसके लिए पूर्वी लद्दाख में 200 स्टेटिक ग्राउंड बेस्ड सैटेलाइट टर्मिनल (Static Ground Based Satellite Terminal) और 80 ट्रांसपोर्टेबल और मैन-हेल्ड टर्मिनल का इस्तेमाल किया गया.
‘स्काईलाइट’ की खासियत
इन टर्मिनल से सेना को सिक्योर वॉयस, वीडियो और डाटा कनेक्टिवेटी मिल सकती है और इन्हें एक जगह से दूसरी जगह आसानी से मूव किया जा सकता है और किसी भी तरह के इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है. मैकेनाइज्ड ऑपरेशन्स के लिए ये वियोंड लाइन ऑफ साइट टेक्टिकल कम्युनिकेशन मुहैया करा सकते हैं. इस एक्सरसाइज के दौरान इसरो यानि इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन की भी मदद ली गई.
रूस-यूक्रेन युद्ध को देखकर भारत हुआ सचेत
सूत्रों के मुताबिक, इस एक्सरसाइज को करने का उद्देश्य ये था कि अगर युद्ध के दौरान देश की ग्राउंड बेस्ड कम्युनिकेशन सिस्टम जैसे मोबाइल नेटवर्क और ओप्टिकल फाइबर सिस्टन नष्ट हो जाएं तो सेना कैसे कमांड और कंट्रोल करेगी. क्योंकि दुश्मन का पहला निशाना कम्युनिकेशन सेंटर होते हैं.
रुस से युद्ध के दौरान यूक्रेन का पूरा कम्युनिकेशन सिस्टम ठप पड़ गया था. ऐसे में एलन मस्क के स्टार-लिंक ने यूक्रेनी सेना को कम्युनिकेशन मुहैया कराया था. तब जाकर यूक्रेन के कमांडर बॉर्डर पर तैनात अपने सैनिकों को युद्ध से जुड़े दिशा-निर्देश दे पाए थे. यही वजह है कि भारतीय सेना ने अपने सभी स्पेस एसैट को इस एक्सरसाइज के दौरान परखा.
सेना जीसैट-7ए सैटेलाइट का करती है इस्तेमाल
भारतीय सेना के पास फिलहाल अपना कोई मिलिट्री सैटेलाइट नहीं है. भारतीय सेना नौसेना की जीसैट-7ए सैटेलाइट को ही इस्तेमाल करती है. इसी साल मार्च के महीने में रक्षा मंत्रालय ने थलसेना के लिए अलग से एक कम्युनिकेशन सैटेलाइट देनी की मंजूरी दी थी.
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