– योगेश कुमार गोयल
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन एक ओर जहां रक्षाबंधन त्योहार मनाया जाता है, वहीं इसी दिन देवभाषा कही जाने वाली प्राचीन भाषा ‘संस्कृत’ के प्रसार को बढ़ावा देने और संस्कृत के महत्व को चिह्नित करने के उद्देश्य से ‘विश्व संस्कृत दिवस’ भी मनाया जाता है। चूंकि भारत की समृद्ध संस्कृति की प्रतीक संस्कृत भाषा धीरे-धीरे समाप्ति की ओर अग्रसर है, इसीलिए यह दिवस इस प्राचीन भारतीय भाषा के प्रति जागरूकता फैलाने, इसे बढ़ावा देने और पुनर्जीवत करने, भारतीय समुदाय अथवा समाज को संस्कृत की महत्ता एवं आवश्यकता का स्मरण कराने तथा जनमानस में इसका महत्व बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
इस दिवस के माध्यम से आम आदमी और युवाओं को संस्कृत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परम्परा से अवगत कराने का प्रयास किया जाता है। श्रावणी पूर्णिमा को ऋषियों के स्मरण का पर्व भी माना जाता है। दरअसल भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों को ही संस्कृत साहित्य के आदि-स्रोत माना गया है, इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को ‘ऋषि पर्व’ भी कहा जाता है और इस दिन ऋषियों-मुनियों का स्मरण करने तथा उनका पूजन करके समर्पण का भाव रखा जाता है।
संस्कृत दिवस मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 1969 से हुई थी, जब भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश पर हर साल श्रावणी पूर्णिमा के ही दिन केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। दुनियाभर में अब संस्कृत का झंडा दिनों-दिन बुलंद हो रहा है और अब न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी यह दिवस काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें भारत सरकार की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह दिवस मनाने के लिए इसी दिन का चयन इसीलिए किया गया क्योंकि प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र इसी दिन से शुरू होता था। छात्र इसी दिन वेद पाठ के साथ शास्त्रों का अध्ययन प्रारंभ किया करते थे। प्राचीन काल में पौष मास की पूर्णिमा से लेकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक छात्रों का अध्ययन बंद हो जाता था, जो पुनः श्रावण पूर्णिमा से शुरू होकर पौष पूर्णिमा तक चलता था। यही कारण है कि श्रावण पूर्णिमा के दिन ही संस्कृत दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया।
संस्कृत का अर्थ दो शब्दों ‘सम’ और ‘कृत’ से मिलकर बना है, ‘सम’ का अर्थ है ‘सम्पूर्ण तथा ‘कृत’ का अर्थ है ‘किया हुआ’ अर्थात् सम्पूर्ण किया हुआ। संस्कृत केवल एक स्व-विकसित भाषा ही नहीं है बल्कि एक संस्कारित भाषा भी है, इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। यह विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक मानी जाती है और दुनिया की कई भाषाओं की जड़ें संस्कृत भाषा में मिलती हैं। संस्कृत को ‘देवभाषा’ अर्थात् ‘देवताओं द्वारा बोली जाने वाली भाषा’ भी कहा जाता है। समय-समय पर हुए कई शोधों में यह भी स्पष्ट हुआ है कि संस्कृत वैज्ञानिक सम्मत भाषा है, यही नहीं कुछ शोधों में यह भी साबित हुआ है कि कम्प्यूटर के लिए भी सबसे उपयुक्त और अनुकूल भाषा संस्कृत ही है। संस्कृत को विश्व की सर्वाधिक पूर्ण और तर्कसम्मत भाषा माना गया है, जो भारत को एकता के सूत्र में बांधती है। कहा जाता है कि अंग्रेजों को भी पता चल गया था कि भारत की संस्कृति को संस्कृत के अध्ययन के बिना नहीं जाना जा सकता, इसीलिए उन्होंने कोलकाता तथा काशी में संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी।
संस्कृत एक प्राचीन इंडो-आर्य भाषा है, जिसके बारे में माना जाता है कि भारत में इस भाषा की उत्पत्ति करीब चार हजार वर्ष पूर्व हुई थी। इस प्राचीन भाषा का उपयोग बौद्ध, जैन और सिख धर्म के साथ-साथ हिन्दू धर्म के दार्शनिक प्रवचनों के लिए भी किया जाता था। हजारों वर्षों से हिन्दू संस्कृति में पूजा-पाठ में संस्कृत के मंत्रों का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि लिखित रूप में इस भाषा की उत्पत्ति ईसा पूर्व से पहले की दूसरी सहस्त्राब्दी से हुई मानी जाती है, जब ऋग्वेद में भजनों का एक संग्रह लिखा गया माना जाता है। वैदिक संस्कृति में ऋग्वेद, पुराणों और उपनिषदों का अत्यधिक महत्व है और भारत में चार अलग-अलग खंडों में विभाजित वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) की रचना 1000 से 500 ईसा पूर्व की अवधि में ही हुई थी। यह लगभग सभी वेदों और पुराणों की भाषा है, इसीलिए इस भाषा के प्रति लोगों के दिल में आदर का भाव रहता है। यह बहुत प्राचीन और व्यापक भाषा है, जिसमें कई पुराण, महापुराण और उपनिषद हैं। वास्तव में संस्कृत ऐसी भाषा है, जो लोगों को मूल वेदों के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों को भी मूल देवनागरी अथवा उसी संस्कृत भाषा में पढ़ने का अवसर प्रदान करती है, जिसमें वे लिखे गए हैं।
भारत की समृद्ध संस्कृति की प्रतीक संस्कृत समस्त भारतीय भाषाओं की जननी मानी जाती है, जो भारत में बोली जाने वाली प्राचीन भाषाओं में पहली है। भारत की कुछ प्राचीन लोककथाएं संस्कृत भाषा में ही हैं। संस्कृत की विशेषता के बारे में माना जाता है कि कोई व्यक्ति संस्कृत में केवल एक शब्द में ही स्वयं को व्यक्त कर सकता है। कुछ शोधकर्ताओं द्वारा संस्कृत को दो खण्डों (वैदिक संस्कृत तथा शास्त्रीय संस्कृत) में वर्गीकृत किया गया है। संगीत में संस्कृत का उपयोग अधिकाशतः हिन्दुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में ही किया जाता है। संस्कृत भाषा में करीब 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों की सबसे बड़ी शब्दावली है और इस भाषा की एक संगठित व्याकरणिक संरचना भी है, जिसमें स्वर और व्यंजन भी वैज्ञानिक पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं। संस्कृत को भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है और उत्तराखण्ड में तो यह राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित की गई है। कर्नाटक में शिमोगा जिले में मत्तूर नामक एक ऐसे गांव के बारे में भी जानकारी मिलती है, जहां प्रत्येक व्यक्ति संस्कृत में बात करता है।
बहरहाल, यदि इन कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो संस्कृत का उपयोग वर्तमान समय में केवल पूजा-पाठ, अनुष्ठानों तथा शैक्षणिक गतिविधियों तक ही सीमित होकर रह गया है और इसे पढ़ने, लिखने तथा समझने वाले लोगों की संख्या निरन्तर कम हो रही है। सही मायनों में संस्कृत केवल एक भाषा ही नहीं है बल्कि एक विचार, एक संस्कृति, एक संस्कार भी है, जिसमें विश्व का कल्याण, शांति, सहयोग और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना निहित है। इसलिए अत्यंत जरूरी है कि अब देश में विदेशी भाषाओं और अंग्रेजी का महत्व अत्यधिक बढ़ जाने के कारण अपना अस्तित्व खोती इस देवभाषा को बढ़ावा देने के लिए समुचित कदम उठाए जाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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