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स्कूल बंद करने के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर भारत, 82 सप्ताह से लटके हैं ताले

नई दिल्ली। पूरी दुनिया में भारत (India) तीसरा ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा दिनों तक (longest time) महामारी के चलते स्कूल बंद (School closed due to epidemic) रहे। यूनिसेफ का यह आंकड़ा बता रहा है कि दुनिया की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाले हमारे देश में बच्चे लंबे वक्त से स्कूली वातावरण से महरूम हैं जो कि उनके विकास के लिए एक अहम पड़ाव होता है। भारत में संक्रमण की तीसरी लहर (third wave of infection) के चलते अब तक स्कूल बंद हैं जबकि अब कई राज्यों ने कोरोना प्रतिबंधों में ढील देनी शुरू कर दी है। कई विशेषज्ञ यह सलाह दे रहे हैं कि अब सरकार को स्कूल खोल देने चाहिए। हाल में केंद्र सरकार ने भी संकेत दिए हैं कि जल्द ही स्कूल खोलने को लेकर दिशानिर्देश जारी हो सकते हैं।


यूगांडा और बोलीविया जैसे छोटे देशों संग सूची में भारत
पूरी दुनिया में सबसे लंबी अवधि तक चली स्कूल बंदी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 82 सप्ताह यानी 574 दिनों तक स्कूल बंद रहे। ठीक इतने ही दिन बोलिविया और नेपाल में भी स्कूल बंदी रही। जबकि यूगांडा में 83 सप्ताह तक स्कूल बंद रहे। भारत में करीब 20 सप्ताह तक पूरी तरह स्कूल बंद थे, जबकि बाकी सप्ताह आंशिक बंदी जारी रही। यूनिसेफ के मुताबिक, इन देशों में 17 फरवरी, 2020 यानी महामारी के शुरूआती दौर से लेकर 31 अक्तूबर, 2021 तक स्कूलबंदी चली।

किस देश में कितने दिनों तक बंद रहे स्कूल?
यूगांडा – 83
बोलिविया – 82
भारत – 82
नेपाल – 82
होंडुरस – 81
पनामा – 81
अल साल्वाडोर – 80

बच्चों की शिक्षा को हुआ नुकसान भरपाई योग्य नहीं
यूनिसेफ ने ये डाटा जारी करते हुए हाल में कहा कि कोविड-19 महामारी से बच्चों की पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना लगभग असंभव है। यूनिसेफ का कहना है कि कई देशों में करीब दो साल के बाद जाकर स्कूल बंदी खत्म हो पायी है, इतने लंबे अंतराल के बाद बच्चे स्कूल नहीं लौटे क्योंकि गरीब परिवारों के इन बच्चों ने इस बीच काम करना शुरू कर दिया, या फिर कम उम्र में शादियां कर दी गईं, कई जगह शिक्षकों के नौकरी छोड़ देने के चलते भी बच्चे दोबारा स्कूल नहीं जा सके।

तीसरी लहर में स्कूलबंदी जारी
अगस्त से लेकर सितंबर तक देश में संक्रमण मंद था, इस दौरान कई राज्यों ने स्कूल खोल दिए थे, मगर नवंबर के अंतिम सप्ताह से हालात बिगड़ने लगे और दोबारा स्कूलों को बंद कर दिया गया। देश में राजधानी दिल्ली में तो महामारी के बाद से अधिकांश समय स्कूलबंदी बनी रही है। हालांकि इन राज्यों में ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं, मगर हर बच्चे के लिए इंटरनेट व मोबाइल-कंप्यूटर की उपलब्धता अब भी एक बड़ी बाधा बनी हुई है।

महाराष्ट्र ने स्कूल खोले, बाकी राज्य अब भी पुरानी रणनीति पर
स्कूल खोलने को लेकर जहां अभी ज्यादातर राज्यों में हिचक बनी हुई है, वहीं, महाराष्ट्र ने इस मामले में 24 जनवरी को निर्णय ले लिया था। हाल में मुंबई अभिभावक संघ ने बीएमसी को पत्र लिखकर यह कहा है कि वे सभी स्कूलों को खुलवाया सुनिश्चित करें। एक फरवरी से महाराष्ट्र में कॉलेज भी खुलने वाले हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि तथ्यों के आधार पर महाराष्ट्र में स्कूल खोलने का फैसला सही है क्योंकि राज्य में छोटे बच्चों में संक्रमण के मामले बहुत कम सामने आए हैं।

1. जहां संक्रमण घटा, वहां स्कूल खोले जाएं : इंस्टीट्यूट ऑफ जिनोमिक एंड इंट्रीगेटिव बायोलॉजी के प्रमुख डॉ. अनुराग अग्रवाल ने कहा कि अगले माह की शुरूआत से ही पूरे देश में संक्रमण घटने लगेगा इसलिए अब स्कूल खोलने का फैसला लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के जिन क्षेत्रों में संक्रमण घटने लगा है, कम से कम वहां तो बच्चों के स्कूल खोलने देने चाहिए। डॉ. अग्रवाल का कहना है कि स्कूल न जाने से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ता है।

2. जब सबकुछ खोला जा रहा तो बच्चे क्यों अछूते रहे : यूनिसेफ पूरी दुनिया में बच्चों के इन-पर्सन स्कूल को लेकर अभियान चला रहा है। उसका कहना है कि जब ज्यादातर देशों ने अर्थव्यवस्था खोल दी है, कोरोना संग जीना सीखने की रणनीति अपना ली है, गैर-आवश्यक चीजें भी खोली जा रही हैं तो स्कूल जैसी आवश्यक संस्थाएं क्यों बंद रहें। यूनिसेफ का कहना है कि महामारी काल में भी स्कूलों को सबसे देर में बंद किया जाना चाहिए और सबसे पहले खोलना चाहिए। सरकारों को ऐसे संसाधन जुटाने होंगे कि बच्चों की शिक्षा को नुकसान न हो।

ऑनलाइन पढ़ाई तक गरीब बच्चों की पहुंच नहीं
यूनिसेफ के मुताबिक, भारत में प्राथमिक और सेकेंडरी कक्षाओं के 24.7 करोड बच्चे स्कूलबंदी से प्रभावित रहे हैं। इतना ही नहीं, ग्रामीण भारत में हर दस में से चार बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। कई ऐसे शोध सामने आ चुके हैं जिससे पता लगा है कि बच्चे बेसिक पढ़ाई भी भूल चुके हैं। यूनिसेफ को आशंका है कि स्कूलबंदी के चलते जितने बच्चों की पढ़ाई छूट गई है, उसमें से एक बड़ी तादाद शायद ही कभी दोबारा पढ़ पाएगी।

पश्चिमी देशों ने बहुत कम वक्त के लिए बंद किए स्कूल
कोरोना संक्रमण के बीच भी स्कूलों की अहमियत को समझते हुए पश्चिमी देशों ने स्कूलबंदी के बजाय कई दूसरे रास्तों को अपनाया और ज्यादातर समय स्कूलों को खुला रखा। डेनमार्क और फिनलैंड जैसे देशों में तो स्कूलों में बहुत बड़ी तादाद में हाथ धोने के इंतजाम उपलब्ध करवाए गए, बच्चों की कक्षाओं को खुले में लगाने के भी उपाय अपनाए। इसके अलावा, अमेरिका-ब्रिटेन के स्कूलों ने कोविड बबल के तरीके को अपनाकर स्कूलों को जारी रखा, जिसमें बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया गया और ये समूह एक-दूसरे के संपर्क में नहीं आ सकते थे। इसके अलावा, पश्चिमी देशों को मजबूत इंटरनेट कनेक्टिविटी और मोबाइल-कंप्यूटर की उपलब्धता का भी लाभ मिला।

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