नई दिल्ली: पिछले दो साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) के लिए बहुत अच्छे नहीं रहे. कोविड-19 महामारी में कारण लॉकडाउन और अन्य समस्याओं के से इसरो को सभी कामकाज प्रभावित हुए और उसके कई प्रमुख अभियान तक टलते रहे. ऐसा लगा कि भारत (India) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष परिदृश्य से गायब होता जा रहा है, लेकिन अब कोविड दौर की भयावहता खत्म होने की उम्मीद के बीच इसरो का कामकाज पटरी पर लौटता दिख रहा है. भारत ने अब तक 60 देशों के साथ अंतरिक्ष संबंधी सहयोग के लिए समझौते किए हैं जो बताता कि वह अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Research) में कितना सक्रिय और गंभीर है.
कई देशों के साथ समझौते
भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग फिलहाल रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान और इजराइल की अंतरिक्ष एजेंसी के साथ मिलकर अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी के कई बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहा है. इसरो इनके अलावा दुनिया के कई देशों के साथ संयुक्त अभियान, अंतरिक्ष तकनीकी में विशेषज्ञता सहयोग, आदि पर काम कर रहा है. अंतरिक्ष विभाग की साल 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट ने इसी पर खुलासा किया जिसके मुताबिक भारत ने अभी तक 60 देशों और पांच बहुत राष्ट्रीय निकायों के साथ अंतरिक्ष सहयोग संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
नासा के साथ अहम सहयोग
इस सूच में इसरो और विदेशी स्पेस एजेंसी के बड़े सहयोगी अभियानों का भी जिक्र है. इसमें नासा और इसरो के सिंथेटिक अपर्चर राडार (NISAR) अभियान का भी जिक्र है जिसमें इसरो S बैंड का SAR और दूसरे हार्डवेयर को नसा के जेपीएल को भेजेगा जहां एस बैंड और एल बैंड पेलोड के टेस्ट होंगे.
रूस क साथ
वहीं दूसरी ओर रूस के साथ भारत का इसरो अपने गगनयान अभियान में सहयोग ले रहा है जो भारत का पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है. इसमें रूस के गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में चार भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है. इसके अलावा इसरो और रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेस भी अंतरिक्ष शोध में एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं.
फ्रांस के साथ
इसरो फ्रेंस स्पेस एजेंसी CNES के साथ मिल कर अंतरिक्ष से पृथ्वी के अवलोकन और मानव अंतरिक्ष उड़ान के साथ स्पेस सिचुएश्नल अवेयरनेस (SSA) के क्षेत्र में मिल कर काम कर रहा है. एसएसए के तहत अंतरिक्ष में कचरे और अन्य पिंडों पर नजर रखी जाती है जो पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं. इसके अलावा इसरो फ्रेंच गुयाना में अपना एक ग्राउंड स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहा है.
जापान के साथ
जापान की स्पेस एजेंसी जाक्सा और इसरो चंद्रमा के अन्वेषण, सैटेलाइट नेविगेशन, और पृथ्वी के अवलोकन पर काम कर रहे हैं. दोनों इंडो जापान लूनार पोलर एक्सप्लोरेशन (LUPEX) अभियान के पहले चरण का अध्ययन कर रहे हैं जिसमें लैंडर रोवर में शामिल होने वाले उपकरण का सुनिश्चित करना भी शामिल है.
यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल भी
इसरो यूरोपीय स्पेस एजेंसी के साथ मिल कर चंद्रयान-3, आदित्य L1 जैसे कई भारतीय अभियानों के लिए नेटवर्क और संक्रियाओं में सहयोग पर काम कर रहे हैं. गगनयान मिशन के लिए ऑस्ट्रेलिया के कोकोस कीलिंग द्वीप पर इसरो का ग्राउंड स्टेशन बनाने के लिए भी काम चल रहा है. इजराइल की स्पेस एजेंसी के साथ भी बातचीत चल रही है जिसमें इलेक्ट्रिक प्रपल्शन सिस्टम को इसरो के छोटे सैटेलाइट के साथ भेजा जा सके. इस समय भारत के प्रमुख अभियान चंद्रयान-3, गगनयान और आदित्य L1 हैं जो कोविड-19 महामारी की वजह से दो साल से टलते आ रहे हैं. चंद्रयान3 में चंद्रमा पर रोवर और लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा और गगनयान भारत का पहला मानवीय अंतरिक्ष अभियान होगा, जबकि आदित्य L1 अभियान में सूर्य का अध्ययन किया जाएगा. ये अभियान 2022 और 2023 में पूरे हो जाएंगे.
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