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    घातक NeoCov वायरस के खतरे से अभी दूर है भारत, जानें ऐसा क्‍यों ?

  • January 29, 2022

    नई दिल्ली। हर तीन संक्रमित लोगों में से एक को मारने की क्षमता रखने वाले एक नए प्रकार के कोरोना वायरस (Corona virus) के उभरने की खबर पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट पर प्रसारित हो रही है. दावा किया जा रहा है कि नियोकोव (NeoCov) नाम का यह नया वायरस दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में चमगादड़ों के बीच खोजा गया है और यह संभवत: मानव कोशिकाओं में प्रवेश कर (can enter human cells) सकता है. यह समाचार रिपोर्ट स्पष्ट रूप से एक चीनी शोध पत्र (Chinese research paper) पर आधारित हैं जिसकी अभी समीक्षा की जानी है.
    यह अध्ययन प्रकाशन पूर्व संग्रह कोश बायोआरएक्सआईवी (biorxiv) पर हाल में डाला गया है. अध्ययन से यह पता चलता है कि नियोकोव ‘मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम’ (मर्स) से करीबी रूप से संबद्ध है. विषाणु जनित इस रोग की पहली बार 2012 में सऊदी अरब में पहचान की गई थी. कोरोना वायरस विषाणुओं का एक बड़ा परिवार है, जो सामान्य सर्दी जुकाम से लेकर सार्स जैसे रोग का कारण बन सकता है.



    अपने अध्ययन में चीनी शोधकर्ताओं ने पाया कि NeoCoV द्वारा जिस बैट (चमगादड़) रिसेप्टर्स का इस्तेमाल किया गया है, वो SARS-CoV2 द्वारा मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले के ही समान थे. इसके अतिरिक्त NeoCoV पर बढ़ा-चढ़ाकर कही जा रही सारी बात अनुमानों पर आधारित हैं.

    नियोकोव वायरस के रहस्य से हटा पर्दा
    महाराष्ट्र राज्य कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्य और इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अध्यक्ष डॉ शशांक जोशी ने NeoCov को लेकर एक ट्वीट में कहा, “नियोकोव रहस्य का पर्दाफाश: 1. नियोकोव एक पुराना वायरस है जो ‘मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम’ (मर्स) से करीबी रूप से संबद्ध है और यह DPP4 रिसेप्टर्स के माध्यम से कोशिकाओं में प्रवेश करता है. 2. इस वायरस में नया क्या है: नियोकोव वायरस चमगादड़ के एंजियोटेंसिन कंवर्टिंग एंजाइम 2 (एसीई 2) रिसेप्टर्स का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन यह तभी मुमकिन है, जब उसमें कोई नया उत्परिवर्तन (New Mutation) हो, इसके बिना वे मानव एसीई 2 रिसेप्टर का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसके अतिरिक्त जो भी बातें हो रही हैं, वे सब प्रचार के सिवाए कुछ नहीं.”

    ‘नियोकोव ने कभी किसी इंसान को संक्रमित नहीं किया’
    NeoCov केवल चमगादड़ों में पाया गया है और इसने कभी किसी इंसान को संक्रमित नहीं किया है. तीन लोगों में से एक को मारने की इसकी क्षमता सिर्फ इस तथ्य पर आधारित है कि इसका मर्स कोरोना वायरस (MERS Coronavirus) से बेहद करीबी संबंध है. शोध पत्र में कहा गया है कि एमईआरएस से संबंधित कोरोना वायरस का विस्तृत सेट, जिसे Merbecoviruses कहा जाता है, की मृत्यु दर लगभग 35 प्रतिशत है.

    ‘निगरानी बनाए रखने की जरूरत, लेकिन चिंता की बात नहीं’
    इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल ने कहा, “MERS कहीं अधिक घातक था और यह मनुष्यों के पास गया, लेकिन महामारी का कारण नहीं बना. हर चीज जो तेजी से हमारे सामने आती है, जरूरी नहीं कि वह महामारी बने. हालांकि यह बेहद जरूरी है कि हम जूनोटिक रोगजनकों (Zoonotic Pathogens) की निगरानी जारी रखें. जागरूक होना अच्छा है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.”

    नियोकोव के चमगादड़ से इंसानों में जाने का खतरा अभी नहीं
    NeoCov के चमगादड़ से इंसानों में जाने कोई खतरा फिलहाल नहीं है. अनुसंधानकर्ताओं ने इस बात का जिक्र किया कि अपने मौजूदा स्वरूप में नियोकोव मानव को संक्रमित नहीं करता है, लेकिन यदि यह और अधिक उत्परिवर्तित हुआ, तो यह संभवत: नुकसानदेह हो सकता है. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा, “इस अध्ययन में, हमने अप्रत्याशित रूप से पाया कि नियोकोव और इसके करीबी संबंधी पीडीएफ- 2180-कोव, मानव शरीर में प्रवेश करने के लिए कुछ प्रकार के बैट (चमगादड़) एसीई 2 का प्रभावी रूप से उपयोग कर सकते हैं.” एसीई 2 कोशिकाओं पर एक रिसेप्टर प्रोटीन है, जो कोरोना वायरस को कोशिकाओं से जुड़ जाने और संक्रमित करने के लिए प्रवेश बिंदु प्रदान करता है.
    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2012 में पहली बार शुरू होने के बाद से दुनिया के 27 देशों से MERS के मामले सामने आए हैं, जिससे कुल 858 मौतें हुई हैं.

    ‘इंसानों में नियोकोव के फैलने से इनकार नहीं कर सकते’
    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर में सेंटर फॉर इंफेक्शियस डिजीज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अमित सिंह ने कहा, “इस नियोकोव वायरस के इंसानों में जाने की उतनी ही संभावना है जितनी कि निपाह जैसे अन्य बैट वायरस में, इसमें कुछ खास नहीं है. जानवरों में कई तरह के संक्रमण होते हैं, वे सभी इंसानों में नहीं आते हैं और हमारे पास कुछ भी भविष्यवाणी करने का कोई तरीका नहीं है. हम जानते हैं कि मानव-पशु संपर्क में वृद्धि के साथ भविष्य में और अधिक संक्रमण होगा.”

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