– हृदयनारायण दीक्षित
सांस्कृतिक प्रतीकों का आदर राष्ट्रवादी भावना है। हिन्दुत्व भारत की राष्ट्रीयता है। लेकिन हिन्दू साम्प्रदायिकता, हिन्दू कट्टरवाद, हिन्दू फैक्टर और हिन्दू वोट बैंक जैसे शब्द बहस में रहे हैं। राजनीति में किसी एक शब्द को लेकर ऐसी बहस कभी नहीं हुई। लेकिन अब अनुच्छेद 370 और श्री राम मंदिर के प्रश्नों ने राष्ट्रवाद का संवर्द्धन किया है। इसके पहले सेकुलर राजनीति हिन्दू सांस्कृतिक प्रतीकों पर हमलावर रही हैं। सेकुलरवाद की दृष्टि में हिन्दुत्व प्रतिमजहबवादी है। तथ्य यह है कि भारत हिन्दुत्व के कारण ही पंथनिरपेक्ष और लोकतंत्री है।
संप्रति भारतीय राजनीति का विमर्श बदल गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में उचित ही राष्ट्र के बदल गए विमर्श पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण को काल्पनिक बताने वाले लोग अब उनकी ही शरण में हैं। कई दल और नेता राष्ट्रवादी विमर्श के समर्थक हो रहे हैं। वे भी श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पक्षधर हो गए हैं। श्रीराम की चर्चा को साम्प्रदायिक बताने वाले मंदिर की भव्यता के लिए सार्वजनिक घोषणाएं कर रहे हैं। हिन्दू विचार की लोकस्वीकृति आश्चर्यजनक है। ममता बनर्जी ने चुनाव में सार्वजनिक रूप से चंडी पाठ किया। एक वरिष्ठ राजनेता जनेऊ दिखाकर हिन्दू होने की सनद दे रहे थे। भारत का वातावरण बदल गया है।
योगी जी ने सही बात कही है। हिन्दू सांस्कृतिक प्रतीकों के विरोधी हिन्दू सांस्कृतिक प्रतीक की शरण में हैं। उनके सेकुलर विचार पराजित हो रहे हैं। राष्ट्र की सांस्कृतिक अनुभूति सिर पर चढ़कर बोल रही है। भारत का वातायन केसरिया हो रहा है। संप्रति हिन्दू और रामभक्त हो जाने की हड़बड़ी है। सेकुलर लोगों के बीच ऐसा परिवर्तन बेशक राजनीतिक लाभ से सम्बन्धित है लेकिन हिन्दू दर्शन का प्रवाह स्वागत योग्य है।
सेकुलरवादी समूह हिन्दू और हिन्दुत्व को राजनीतिक नारा बता रहे थे। लेकिन असलियत ऐसी नहीं है। हिन्दू एक विशिष्ट जीवनशैली है। यहां तमाम प्रतीतियां और अनुभूतियां हैं। हजारों देवी देवता हैं, अनेक विचार हैं। वैदिक ज्ञान के प्रथम भाष्यकार यास्क ने ‘निरूक्त’ में ‘तर्क को ही देवता बताया। दुनिया की बाकी आस्थाओं में तर्क नहीं होते। हिन्दुत्व का विचार सनातन है। हिन्दू सिंधु/इण्डस-इंदू अति प्राचीन संज्ञाए हैं। हिन्दू भू-सांस्कृतिक संज्ञा है। हिन्दू संगठित पंथ/मजहब नहीं है। यह एक विशेष प्रकार की तर्कपूर्ण जीवन पद्धति है। इस देश की विनम्र राष्ट्रीय वैशिष्ट्याभिमानी चेतना का नाम हिन्दू है। महात्मा गांधी संघ के स्वयंसेवक नहीं थे। गांधी जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को यरवदा जेल से लिखे पत्र (2.5.1933) में लिखा, “मैं धर्म नहीं छोड़ सकता, इसलिए हिन्दुत्व छोड़ना असम्भव है। हिन्दुत्व के कारण ही मैं ईसाइयत, इस्लाम और अन्य धर्मो से प्रेम करता हूँ। इसे मुझसे दूर कर दो तो मेरे पास कुछ भी नहीं बचेगा।”
गांधी जी ने सर विलियम विल्सन, विलियम हंटर और पिनकाट आदि विद्वानों के उद्धरण देकर प्राचीन हिन्दू संस्कृति और दर्शन की श्रेष्ठता सिद्ध की। उन्होंने पिनकाट के हवाले लिखा, “तमाम सामाजिक मामलों में अंग्रेज हिन्दुओं के गुरु बनने के प्रयत्न की अपेक्षा उनके चरणों के पास बैठने और शिष्य बनकर सीखने के ही योग्य हैं।” हिन्दू संस्कृति सनातन है, वेद प्राचीनतम है, हिन्दू दर्शन श्रेष्ठ है, गणित के अंक उन्होंने खोजे। हिन्दू विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत के उत्तराधिकारी हैं। गांधी हिन्दुत्व नहीं छोड़ सकते क्योंकि “हिन्दुत्व छोड़ देने पर उनके पास कुछ भी नहीं बचेगा। लेकिन उसी गांधी के उत्तराधिकारी राजनेताओं की दृष्टि में हिन्दुत्व साम्प्रदायिकता है। डॉ0 लोहिया भारतीय समाजवादियों के महानायक थे। उन्होंने “सगुण निर्गुण धर्म पर एक दृष्टि” (पृष्ठ 25-27) में बताया कि “हमेशा कीड़े चीटीं की तरह नहीं, दूब की तरह झुक कर आत्मसमर्पण करने से अच्छा है कि हम खत्म हो जायें। ……. हम आत्म समर्पण की क्षति को खत्म करना सीखें और यह तभी होगा जब हिन्दू धर्म में आप तेजस्विता लायें।” डॉ0 लोहिया के अनुसार हिन्दुत्व की तेजस्विता ही राष्ट्रीय स्वाभिमान की पर्यायवाची है।
व्यक्ति की तरह राष्ट्र भी एक जीवंत सत्ता है। व्यक्ति की तरह राष्ट्र का भी धर्म होता है। जैसे व्यक्ति की देह मनस्, अंतस्, ओजस् और तेजस् मिलकर ‘व्यक्तित्व’ कहलाती है वैसे ही राष्ट्र की देह, अंतस्, मनस्, ओजस और तेजस् मिलकर राष्ट्रीयत्व कहलाती है। हिन्दू केवल नाम रूप ही नहीं है, इसका एक खोजी सामूहिक मन है। विराट मानवीय संवेदनाओं से युक्त एक सामूहिक अंतस् है। विश्व अभ्युदय की कामना से युक्त एक विशिष्ट ओजस् है। ऐसे सभी एकात्मक तत्वों, प्रेम प्रपंच और पराग का एक नाम है हिन्दुत्व। भारत एक जन है, हिन्दुत्व एक संस्कृति, इसीलिए हम सब एक राष्ट्र है। समान नागरिक संहिता भारतीय संविधान निर्माताओं की प्यास थी। राष्ट्र-राज्य और कानून की दृष्टि में सभी नागरिक एक समान होते हैं। संविधान ने “विधि के समक्ष समता” (मौलिक अधिकार अनु0 14) दी लेकिन सिविल कानूनों में विभेद हैं। संविधान सभा में समान नागरिक कानून पर जोरदार बहस (23 नवम्बर 1948) हुई। मोहम्मद इस्माइल, नजीरूद्दीन अहमद, महबूब अली और बी0 पोकर ने जबर्दस्त विरोध किया और मुस्लिम पर्सनल लॉ की पक्षधरता की। बिहार के हुसैन इमाम ने एक समान सिविल कानून के विचार को ठीक बताया लेकिन फौरन लागू करने को गलत बताया। डॉ0 अम्बेडकर ने जवाब में कहा “वे कहते हैं कि पर्सनल लॉ सारे भारत में अटल और एक विधि था। मैं चुनौती देता हूं, सन् 1935 तक पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में शरियत कानून नहीं था। उत्तराधिकार और अन्य मसलों पर वहां हिन्दू कानून का अनुसरण था। 1937 तक शेष भारत के भी विभिन्न भागो जैसे संयुक्त प्रांत (अब यू0पी0) मध्य प्रांत और बम्बई में उत्तराधिकार के विषय में मुसलमानों पर काफी हद तक हिन्दू कानून लागू था।” बहस के बाद हुए मतदान में कॉमन सिविल कोड संविधान का नीति निर्देशक तत्व (अनु0 44) बना। लेकिन इसी कॉमन सिविल कोड की मांग साम्प्रदायिक कही जाती रही है।
संविधान के अनुच्छेद 370 का शीर्षक “जम्मू कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थाई उपबंध” है। यह एक अस्थाई व्यवस्था थी। संविधान निर्माता इसका खात्मा चाहते थे। इसका खात्मा हो गया। अब जम्मू कश्मीर की मूलभूत समस्या का समाधान हो गया है। सेकुलर दृष्टि में इसके खात्मे की मांग साम्प्रदायिकता रही है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का ध्वस्तीकरण इतिहाससिद्ध घटना है। बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने यहां बाबरी मस्जिद बनायी। यहां कभी भी नमाज नहीं हुई। श्रीराम करोड़ों भारतीयों की श्रद्धा हैं। सेकुलर मित्र बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं के विरोधी रहे हैं। हिन्दू इस पवित्र स्थल को वापिस करने की मांग लम्बे समय से कर रहे थे। लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति संवैधानिक मार्ग चुनती है। संवैधानिक मार्ग से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण हो रहा है। सभी दल हिन्दुत्व को यथातथ्य राष्ट्रीयत्व स्वीकार करें। राष्ट्र के समग्र वैभव के लिए काम करें।
(लेखक सुप्रसिद्ध चिंतक और उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हैं)
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