नई दिल्ली। भारत (India) 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था ($5,000 billion economy) बनने की राह पर तेजी से चल रहा है। इसमें कर वसूली की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने बृहस्पतिवार को कहा, चालू वित्त वर्ष के बजट (budget) में पूंजीगत खर्च (capital expenditure) पर जोर से घरेलू विनिर्माण को गति मिलेगी और कर राजस्व संग्रह (taxes revenue Collection) में भी इजाफा होगा। इससे भारत 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चलता रहेगा।
मंत्रालय ने कहा, केंद्र सरकार भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने पर जोर दे रही है। इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। यह हाल के वर्षों में देश की जीडीपी वृद्धि में दिखता है। बयान में कहा गया है कि इन उपायों से सरकारी खजाने के लिए राजस्व संग्रह बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था और वैश्विक आर्थिक ताकत बनाने की परिकल्पना की थी। भारतीय अर्थव्यवस्था के 2021-22 में बढ़ कर करीब 3,000 अरब डॉलर होने का अनुमान है।
जीडीपी में तेज सुधार के संकेत
देश का कर राजस्व 2021-22 में रिकॉर्ड 34 फीसदी बढ़कर 27.07 लाख करोड़ रुपये रहा। यह महामारी की तीन लहरों के बाद अर्थव्यवस्था में तीव्र सुधार का संकेत है। वहीं, कंपनी कर संग्रह 2021-22 में 8.6 लाख करोड़ रुपये रहा, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 6.5 लाख करोड़ रुपये था। पिछले वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर संग्रह रिकॉर्ड 49 फीसदी बढ़कर 14.10 लाख करोड़ रुपये रहा। अप्रत्यक्ष कर संग्रह 20% बढ़कर 12.90 लाख करोड़ रुपये रहा।
2022-23 में 100 अरब डॉलर एफडीआई की उम्मीद
भारत हाल के वर्षों में किए गए आर्थिक सुधारों और कारोबार सुगमता के लिए उठाए कदमों से 2022-23 में 100 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित कर सकता है। उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) ने बृहस्पतिवार को कहा कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 8 फीसदी से अधिक रहने की संभावना है। हालांकि, कच्चे तेल में तेजी से महंगाई बढ़ने का जोखिम है।
पीएचडी चैंबर ने आर्थिक विकास को मजबूत करने और अगले पांच साल में भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने को लेकर कुछ सुझाव भी दिए हैं। इनमें तेजी से बुनियादी ढांचा निवेश, पीएलआई योजना के तहत और अधिक क्षेत्रों को शामिल करना, कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि, वस्तुओं की ऊंची कीमत और कच्चे माल की कमी की समस्या दूर करना शामिल है।
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