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    भारत का ताइवान से तीन दशक पुराना रिश्ता, जानिए फिर भी क्यों नहीं है डिप्लोमैटिक रिलेशन?

  • August 03, 2022


    नई दिल्ली: अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं. नैंसी पेलोसी के इस दौरे पर चीन भड़क गया है. माना जा रहा है कि अमेरिकी स्पीकर पेलोसी का ये दौरा अमेरिका और चीन के बीच तनाव को बढ़ा सकते हैं. वहीं, इस पूरे मामले पर भारत अपनी नजर बनाए हुए है, हालांकि, उसकी ओर से अभी तक इस मामले में कोई बयान नहीं आया है.
    भारत ने अभी तक ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक रिश्ते नहीं बनाए हैं, क्योंकि यह चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है. हालांकि, दिसंबर 2010 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान, नई दिल्ली ने संयुक्त बयान में चीन की वन चाइना पॉलिसी के समर्थन का जिक्र नहीं किया था.

    क्या है भारत की ताइवान पर नीति?
    भारत सरकार ने दिसंबर 2021 में संसद में बताया था कि उसके ताइवान के साथ कैसे रिश्ते हैं? राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने बताया था कि ताइवान पर भारत की नीति स्पष्ट और सुसंगत है और यह व्यापार, निवेश और पर्यटन के क्षेत्रों में बातचीत को बढ़ावा देने पर केंद्रित है. उन्होंने बताया था कि सरकार व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा और इस तरह के अन्य क्षेत्रों और लोगों से लोगों के संबंध के क्षेत्रों में बातचीत को बढ़ावा देती है.

    क्या ताइवान के साथ नजदीकी बढ़ा रहा भारत?
    2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए. उन्होंने अपने शपथ ग्रहण में तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष लोबसंग सांगे के साथ ताइवान के राजदूत चुंग-क्वांग टीएन अपने शपथ ग्रहण में आमंत्रित किया. वन चाइना पॉलिसी का पालन करते हुए भी भारत ने राजनयिक कार्यों के लिए ताइपे में एक ऑफिस बनाया है. यहां वरिष्ठ राजनयिक भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) का नेतृत्व करता है. ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है. इनकी स्थापना 1995 में हुई थी.


    भारत और ताइवान के संबंध वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित हैं. चीन की संवेदनशीलता की वजह से इन्हें अब तक जानबूझकर लो-प्रोफाइल रखा गया है. चीन और भारत के बीच डोकलाम में गतिरोध के बाद भारत और ताइवान के बीच संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा और विधायक स्तरीय संवाद 2017 में बंद हो गया.

    लेकिन हाल ही के कुछ सालों में चीन के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच भारत ने ताइवान के साथ अपने संबंधों को निभाने की कोशिश की है. 2020 में गलवान में हुए विवाद के बाद भारत ने विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव (अमेरिका) गौरांगलाल दास को ताइवान में राजनयिक नियुक्त किया. मई 2020 में बीजेपी ने अपने दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कसवान को ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन के शपथ ग्रहण में वर्चुअली शामिल होने के लिए कहा.

    अगस्त 2020 में भारत ने ताइवान की पूर्व राष्ट्रपति ली तेंग की मौत पर उन्हें Mr Democracy बताया था. इसे चीन को एक संदेश देने की कोशिश बताया गया. भारत इस मामले में काफी सावधान है, यही वजह है कि ताइवान को लेकर राजनीतिक बयान जारी नहीं किए जाते. ली तेंग के शासन के दौरान ही भारत ने 1995 में आईटीए की स्थापना की थी. 1996 में, ली को ताइवान के पहले प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे कार्यकाल के लिए चुना गया था.

    राष्ट्रपति साई इंग वेन की सरकार भारत के साथ सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार करने की इच्छुक है. भारत ताइवान के लिए प्राथमिकता वाले देशों में से एक है. अब तक, भारत और ताइवान के बीच यह काफी हद तक एक आर्थिक और लोगों से लोगों के बीच संबंध रहा है. अब चीन के साथ तनाव के बीच भारत सरकार भारत-ताइवान संबंधों को आगे बढ़ाने की जरूरत पर ध्यान दे रही है. हालांकि, समय समय पर चीन भारत के स्टैंड का विरोध जताते आया है.

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