उज्जैन।भारत के पास विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में एक समृद्ध विरासत है। देश एक बार फिर जगतगुरू बनने की दिशा में अग्रसर है। विक्रम विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र की स्थापना एवं आगामी-सत्र से विभिन्न अध्ययन शालाओं, इलेक्ट्रॉनिक्स, फॉरेंसिक, फूड टेक्नालॉजी, हार्टिकल्चर और मत्स्य पालन सहित 100 से अधिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये जा रहे हैं। आशा है यह नवीन प्रयास क्षेत्र, राज्य और राष्ट्र के विकास में सहयोग कर विश्वविद्यालय के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करेंगे। राज्यपाल श्रीमती आनन्दीबेन पटेल ने यह बात आज विक्रम विश्वविद्यालय के 24वें दीक्षान्त समारोह में कही।
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हमें एक नई शिक्षा नीति को स्वीकार करने का सुयोग प्राप्त हुआ है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं शताब्दी की प्रथम शिक्षा नीति है, जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिये अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। शिक्षा नीति में भारत की महान प्राचीन परम्परा तथा उसके सांस्कृतिक मूल्यों को आधार बनाया गया है। प्रत्येक व्यक्ति में निहित अपरिमित रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर नीति में विशेष रूप से बल दिया गया है। उच्च शिक्षा विभाग इस नीति के क्रियान्वयन में अपनी भूमिका पूरी निष्ठा तथा एकाग्रता के साथ निभा रहा है।
दीक्षान्त समारोह में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह ने कहा कि राष्ट्ररूपी नौका का खिवैया युवा वर्ग ही होता है। उनमें छलकता हुआ जोश, कुछ कर गुजरने का जुनून, आंखों में संजोये हुए भविष्य के सपने, सुन्दर कल की उम्मीद, आसमान को छू लेने की ललक होती है। युवा ही शासक, प्रशासक, शिक्षक, वैज्ञानिक, संगीतकार, साहित्यकार, चिकित्सक, अभियंता एवं कलाकार के रूप में अपने योगदान से सम्पूर्ण विश्व में राष्ट्र की विशेष पहचान स्थापित करते हैं। नई पीढ़ी की अनन्त सृजनशीलता और असीम जिज्ञासा के परिपोषण हेतु उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
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