नई दिल्ली। तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) (Organization of the Oil Exporting Countries (OPEC)) द्वारा कच्चा तेल उत्पादन (crude oil production) न बढ़ाए जाने के बाद भारत, अमेरिका से लेकर चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन ने अपने रणनीतिक रिजर्व भंडार खोलने (open reserve reserves) का ऐतिहासिक फैसला (Historic decision) किया है।
अमेरिका ने पांच करोड़, भारत ने 55 लाख और जापान ने 42 लाख बैरल तेल निकालने का एलान किया है। 1990 में खाड़ी युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट आई थी। तब हमारे पास केवल तीन हफ्ते के आयात का ही पैसा बचा था।
तेल के भावी संकट को देखते हुए तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1998 में भंडार बनाने का सुझाव दिया था। दुनिया में काफी लोगों ने तेल के रणनीतिक रिजर्व भंडार के बारे में शायद पहली दफा सुना है।
क्यों बनाया जाता है रणनीतिक तेल भंडार
प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध और आपूर्ति में अनपेक्षित व्यवधान से निपटने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार बनाए जाते हैं।
अमेरिका में 70 के दशक से ही तैयारी
अमेरिका के रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व में 60 करोड़ बैरल तेल टेक्सास और लुसियाना की भूमिगत गुफाओं में रखा है। इसे 1970 के दशक में आपात स्थितियों के लिए बनाया गया था। लेकिन बीते वर्षों में वैश्विक तेल उद्योग के समीकरण इस तरह बदले कि अब अमेरिका आयात से ज्यादा तेल निर्यात करता है।
हालांकि, रिजर्व से एकबार में तेल जारी करने की निश्चित सीमा होती है। पूर्व में अमेरिकी सरकार 10 लाख बैरल प्रतिदिन तक निकाल चुकी है। इस हिसाब से पांच करोड़ बैरल तेल दो महीने तक चल सकता है।
कहां रखा है हमारा भंडार
भारत के पास पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तटों पर तीन जगहों पर बने भूमिगत गुफाओं में 3.8 करोड़ बैरल कच्चा तेल आपातकालीन भंडार के रूप में रखा है। ये भंडार आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम, कर्नाटक के मंगलुरु और पदूर में हैं। 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने ओडिशा के चंडीखोल और कर्नाटक के पदूर में दूसरे चरण के भंडार बनाने की मंजूरी दी है।
गुफाओं में ही क्यों भंडारण
कच्चा तेल भंडारण जमीन के नीचे पत्थरों की गुफाओं में किया जाता है। इन्हें हाइड्रोकार्बन जमा करने के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है।
90 दिन के आयात के बराबर रख सकते हैं तेल
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कार्यक्रम (आईईए) पर समझौते के अनुसार, कम से कम 90 दिनों के तेल आयात के बराबर आपातकालीन तेल का स्टॉक रखना प्रत्येक आईईए सदस्य देश का दायित्व है। वर्ष 2020 में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के मद्देनजर भारत ने अपना रणनीतिक भंडार बढ़ाया था।
भारत अपनी जरूरतों का 83 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है और इसके लिए वह खाड़ी देशों पर निर्भर है। वर्तमान में रणनीतिक भंडारों से भारत 13 दिन की पेट्रोलियम जरूरतें पूरी कर सकता है।
आपात भंडार खोलने के एलान से दाम में गिरावट
आपात तेल भंडार खोलने के एलान के बाद बुधवार को कच्चे तेल के दामों में गिरावट देखी गई। डब्ल्यूटीआई क्रूड 12 सेंट गिरकर 78.38 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर रहा। एक दिन पहले इसमें 2.3 फीसदी का उछाल दर्ज हुआ था। ब्रेंट क्रूड 32 सेंट घटकर 81.99 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। मंगलवार को 3.3 फीसदी चढ़ा था।
अब भी विश्लेषक मानते हैं कि तेल भंडार खोलने का बाजार पर थोड़ा ही असर रहेगा। भारत, अमेरिका के बाद जापान ने भी भंडार से 42 लाख बैरल तेल की नीलामी का एलान कर दिया है।
आगे क्या…. ओपेक देश बढ़ाएंगे उत्पादन?
ओपेक के सहयोगी हफ्तेभर में तेल उत्पादन बढ़ाने या मौजूदा स्थिति पर बैठक करेंगे। इस माह की शुरुआत में बाइडन ने उम्मीद जताई थी कि सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओपेक देश उत्पादन बढ़ाने पर राजी हो जाएंगे। ऐसे में भारत, अमेरिका, चीन और अन्य देशों द्वारा रिजर्व भंडार खोलने से बाजार में सात से आठ करोड़ बैरल तेल आएगा।
क्या पेट्रोल-डीजल सस्ता होगा
लोग यह जानना चाहते हैं कि सरकारों के रिजर्व तेल निकालने के फैसले से क्या उन्हें सस्ता पेट्रोल-डीजल मिलेगा। लेकिन इसके पीछे कई कारक जिम्मेदार होते हैं। रिफाइनरियां कच्चे तेल की अग्रिम खरीद करती हैं। ऐसे में वे फिलहाल महंगा तेल ही शोधित कर रही हैं।
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