नई दिल्ली। भारत ने चीन से बिना लाग-लपेट कह दिया है कि हमारे सैनिक खुद की सुरक्षा और पूर्वी लद्दाख में अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। भारत ने बिल्कुल साफ-सुथरी भाषा में चीन से कहा कि अगर क्षेत्र में हालात नियंत्रण से बाहर हुए तो हमारे सैनिक गोलियां चलाने से भी तनिक भी नहीं हिचकेंगे। कुल मिलाकर चीन को सीधा संदेश दे दिया गया है कि मजबूर किया गया तो भारत संघर्ष से पीछे नहीं हटेगा।
एक अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘चीन को साफ संदेश दिया गया है कि धक्का-मुक्की और झड़प की कार्रवाई अब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्हें साफ समझा दिया गया है कि अगर चीनी सैनिकों की तरफ से पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ तो भारतीय सैनिक गोलियां चलाने में देर नहीं करेंगे।’
हालांकि, दोनों पक्षों ने अग्रिम मोर्चों पर अतिरिक्त सैनिक भेजकर तनाव और नहीं बढ़ाने पर सहमति जताई, लेकिन कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य स्तरीय बातचीत के बावजूद पूर्वी लद्दाख में महीनों से जारी तनाव कम किए जाने का अब तक कोई बड़ा रास्ता नहीं खुल सका है। दोनों देशों की सेना घनघोर सर्दियों के मौसम में भी अपने-अपने मोर्चों पर कायम रहने को तैयार हैं।
10 दिन बाद 14 कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और साउथ शिनजियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट चीफ मेजर जनरल लियु लिन की अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडलों के बीच सातवें दौर की बातचीत होनी है ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से सटे अग्रिम मोर्चों से अतिरिक्त सैनिकों की वापसी सुनिश्चित की जा सके। एक सूत्र ने गुरुवार को बताया, ’21 सितंबर को छठे दौर की बातचीत में भारत ने चीन के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी और कहा कि पीपबल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को कोई आक्रामक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, वरना भारतीय सैनिक अपनी रक्षा के लिए कदम उठाएंगे और आत्मरक्षा में फायरिंग भी करेंगे।’
ध्यान रहे कि पीएलए ने पैंगोंग सो-चुशूल में 29-30 अगस्त की रात हासिल कई रणनीतिक चोटियों को हटाने की कोशिश की तो भारतीय सैन्य दल ने चेतावनी देने के लिहाज से कम-से-कम चार गोलियां दागीं। तब से वहां पीएलए ने कुछ नहीं किया है, लेकिन माहौल तनावपूर्ण है। दोनों पक्षों ने बीते सोमवार को इस बात पर सहमति जताई कि अब अग्रिम मोर्चों पर अतिरिक्त फौजें नहीं भेजी जाएंगी।
दोनों सैनिकों ने एलएसी पर अपने 50-50 हजार सैनिक जमा कर रखे हैं। साथ ही, सीमा पर टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां, होवित्जर तोपें, सत से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम भी लगा दिए गए हैं। ऐसे में अगर दोनों पक्ष इनकी वापसी को राजी भी होते हैं तो सीमा से इनके सफाये में यह पूरा साल लग जाएगा। सोमवार को कॉर्प्स कमांडर लेवल की लंबी देर तक चली बातचीत में चीन बार-बार कहता रहा कि भारतीय सैनिकों को पेंगोंग सो-चुशूल एरिया में रणनीतिक महत्व की चोटियां खाली कर देनी चाहिए। हालांकि, भारत का हर बार जवाब यही रहा कि सिर्फ चोटियों से नहीं, डीएक्सेलेशन पूरे पूर्वी लद्दाख से होना चाहिए।
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