नई दिल्ली । दुनिया की दिग्गज एजेंसियों ने मंदी (Recession) की आशंका को जताते हुए बार-बार ये कहा है कि भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था (Economy) बना रहेगा और इस पर मंदी का असर नहीं होगा. लेकिन अब KPMG के एक सर्वे में टॉप CEOs की राय के आधार पर दावा किया गया है कि अगले 12 महीनों में भारत में भी मंदी आ सकती है. KPMG 2022 India CEO Outlook सर्वे में 66% भारतीय CEOs ने अगले 12 महीनों में मंदी की आशंका जताई है. वहीं दुनियाभर में 86% CEOs ने कहा है कि वो मंदी का असर देखने लगे हैं.
IT सेक्टर पर होगा सबसे ज्यादा असर!
अमेरिका (America) और यूरोप में जिस तरह से मंदी के संकेत मिलने लगे हैं और आने वाले दिनों में इसके गहराने की आशंका है उसे देखते हुए सबसे ज्यादा भारत के IT सेक्टर पर पड़ने का डर है. भारत की ग्रोथ स्टोरी के लिहाज से IT सेक्टर का काफी बड़ा रोल है. खासकर कोरोना के 2 साल के दौरान जब IT कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे तो उस दौरान इनके खर्चे काफी घटने से इनके पास काफी रकम जमा हुई थी. रियल एस्टेट (Real Estate) कारोबारियों का दावा है कि जिस भी घर में दोनों पति पत्नी मिलकर हर महीने कम से कम 3 लाख रुपये कमा रहे थे, वो उनके खरीदारों में शामिल थे. इससे घरों की बिक्री ने भी कोरोना काल के बावजूद गति पकड़ी थी. कुछ इसी तरह का ट्रेंड कारों की बिक्री में भी देखने को मिला है जहां पर IT सेक्टर के लोगों की भारी तादाद है. लेकिन अब भारत के IT सेक्टर पर पश्चिमी देशों की मंदी का असर दिखने लगा है. हाल ही में आई TCS, विप्रो, इंफोसिस जैसी दिग्गज IT कंपनियों के नतीजों से ये जाहिर हो रहा है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में IT सेक्टर में हायरिंग घटकर आधी रह गई है.
IT सेक्टर में हायरिंग के बावजूद नहीं मिल रही ज्वाइनिंग डेट!
इनकम घटने से परेशान आईटी कंपनियों ने खर्च में कटौती करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही हायरिंग पर भी कई जगह रोक लगा दी गई है. सबसे ज्यादा असर टेक कंपनियों (Tech Companies) में आईटी सर्विसेज से होने वाली हायरिंग पर देखा जा रहा है जहां पर रिक्रूटमेंट में 20 परसेंट तक की कमी देखी जा रही है. कंपनियां अपने परमानेंट कर्मचारियों को नौकरी पर बनाए रखने की जद्दोजहद में लगी हैं और नए कर्मचारियों की भर्ती की योजना को ठंडे बस्ते में डाल रही हैं. इनकी योजनाओं में बदलाव से 30 हजार आईटी प्रोफेशनल्स पर असर देखा जा रहा है. इंफोसिस, टेक महिंद्रा, केपजेमिनी जैसी बड़ी आईटी कंपनियों में कर्मचारियों को रखने में देरी की वजह से हालात खराब हुए हैं. यहां तक की कई जगह हायरिंग के बावजूद कर्मचारियों को रखने में देरी हो रही है.
रियल एस्टेट-ऑटो सेक्टर के पस्त होने से भारत को झटका!
IT सेक्टर के हालात खराब होने से भारत की ग्रोथ स्टोरी को झटका लगने का खतरा बढ़ सकता है. इसकी वजह है कि अगर घर खरीदारों की संख्या में कमी आई तो रियल एस्टेट सेक्टर की रफ्तार रुक जाएगी और इस सेक्टर से जुड़ी सीमेंट-स्टील समेत 250 से ज्यादा इंडस्ट्रीज में संकट पैदा हो सकता है. इसी तरह भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर 10 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराता है. ये रोजगार केवल ऑटो प्लांट्स में काम करने वालों की वजह से नहीं है बल्कि इसमें कार शोरुम, मैकेनिक और पेट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारी तक शामिल हैं. ऐसे में अगर IT सेक्टर का ये संकट गहराते हुए दूसरे सेक्टर्स को भी ज्यादा प्रभावित करेगा तो फिर भारत के लिए मंदी में आने का खतरा बढ़ जाएगा.
आधे से ज्यादा CEOs के पास मंदी से निपटने का फॉर्मूला!
भारत के CEOs में से 55 फ़ीसदी के पास मंदी का मुकाबला करने की योजनाएं तैयार है. KPMG 2022 इंडिया सीईओ आउटलुक सर्वे के मुताबिक अब दुनिया भर के CEOs अपने कारोबार और आर्थिक नजरिए को 3 साल लंबी प्लानिंग के साथ देख रहे हैं. CEOs का अनुमान है कि जिओ पॉलिटिकल अनिश्चितताओं की वजह से कारोबारी रणनीति और सप्लाई चेन अगले 3 साल तक प्रभावित हो सकती हैं. भारत के 75 फ़ीसदी से ज्यादा CEOs रिस्क मैनेजमेंट प्रोसेस को जिओ पॉलिटिकल खतरे के मद्देनजर सुधारने में लगे हैं.
कम असर वाली मंदी कुछ समय के लिए आएगी!
गुड न्यूज ये है कि भारत के 82 फीसदी से ज्यादा CEOs को भरोसा है कि शॉर्ट टर्म में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी आने से वो ज्यादा प्रभावित नहीं होंगे. कंपनियों के इन मुख्य कार्यकारी अधिकारियों का मानना है कि लॉन्ग टर्म में देश का ग्रोथ आउटलुक शानदार है और देश की बड़ी आबादी की मांग और खपत के कारण उन्हें शॉर्ट टर्म की चुनौतियों से मिलने में मदद मिलेगी. हालांकि शॉर्ट टर्म में कंपनियों के मुनाफे में कमी के साथ ही भारत की जीडीपी में गिरावट की आशंका इन CEOs को भी है क्योंकि इस मियाद में वैश्विक मंदी का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है.
बढ़ गया CEOs का आत्मविश्वास
देश में CEOs का आत्मविश्वास बीते कुछ वक्त में बढ़ा है. इस साल की शुरुआत में फरवरी में CEOs का कॉन्फिडेंस लेवल 52 था जो अब बढ़कर 57 पर पहुंच गया है. दुनिया भर में छाए राजनीतिक और आर्थिक मुश्किलों के बावजूद भी उसका मुकाबला करने की क्षमता के बारे में भरोसा बढ़ना कारोबारी माहौल के लिए काफी पॉजिटिव खबर है.
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