नई दिल्ली (New Dehli)। विश्व व्यापार संगठन (world trade organization) में थाइलैंड के राजदूत पिमचानोक वॉनकोर्पोन पिटफील्ड (Pimchanok Wonkorpon Pitfield)की एक टिप्पणी से भारत भड़क (India is furious)गया है। भारत ने थाइलैंड का बायकॉट (Boycott)करते हुए उसके साथ डब्ल्यूटीओ में किसी भी चर्चा से इनकार (refusal to discuss)कर दिया। दरअसल थाइलैंड के दूत ने आरोप लगाया कि भारत निर्यात बाजार पर हावी होने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खरीदे गए ‘सब्सिडी वाले’ चावल का इस्तेमाल कर रहा है। उनकी इस टिप्पणी से कूटनीतिक विवाद पैदा हो गया। भारत ने इसका कड़ा विरोध जताया और साथ ही भारतीय वार्ताकारों ने उन समूहों की चर्चा में भाग लेने से भी इनकार कर दिया है, जहां थाइलैंड का प्रतिनिधि मौजूद था।
थाइलैंड के राजदूत ने मंगलवार को एक कंसल्टेशन मीटिंग के यह टिप्पणी की जिसका अमीर देशों के कुछ प्रतिनिधियों ने स्वागत किया। इससे यहां भारतीय प्रतिनिधिमंडल नाराज हो गया। ऐसा माना जा रहा है कि थाइलैंड अब अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों के साथ खड़ा है। इन देशों ने एक दशक से भी अधिक समय से पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग के स्थायी समाधान को ब्लॉक किया है। जबकि भारत इसके समाधान को लेकर सबसे ज्यादा मुखर रहा है।
अधिकारियों ने कहा कि भारत ने थाई सरकार के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया गया है और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने यूएसटीआर कैथरीन ताई और यूरोपीय संघ के कार्यकारी उपाध्यक्ष वाल्डिस डोम्ब्रोव्स्की के सामने भी इस मामले को उठाया है। भारत के इस कड़े रुख से स्पष्ट हो गया है कि उसे इस तरह की भाषा और व्यवहार स्वीकार नहीं है।
सरकारी अधिकारियों ने बताया कि थाई राजदूत ने जो भी कहा वह तथ्यात्मक रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि सरकार खाद्य सुरक्षा दायित्वों को पूरा करने के लिए केवल 40% उपज ही खरीदती है। किसानों की बची हुई उपज का एक हिस्सा भारत से बाजार मूल्य पर निर्यात किया जाता है। इसे सरकारी एजेंसियों द्वारा नहीं खरीदा जाता है।
हाल के वर्षों में, वैश्विक बाजार में भारतीय चावल की हिस्सेदारी बढ़ी है। लेकिन भारत द्वारा हाल के निर्यात प्रतिबंधों ने पश्चिमी देशों को नाराज कर दिया है। विकसित देश ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में सब्सिडी वाला चावल बेचकर वैश्विक व्यापार को बाधित कर रहा है, जो कि सच नहीं है।
इसके विपरीत, अधिकारियों ने बताया कि नियमों को इस तरह से तैयार किया गया था कि जो व्यापार की शर्तें थीं वे अमीर देशों के पक्ष में थीं। उन्होंने कहा कि सब्सिडी की गणना के लिए मूल्य 1986-88 के स्तर पर तय किया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि 3.20 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की पेशकश की गई किसी भी कीमत को सब्सिडी के रूप में माना जाएगा। फिलहाल ताजा विवाद की जड़ थाइलैंड का यह आरोप है कि भारत के चावल निर्यात पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनुचित लाभ मिलता है।
डब्ल्यूटीओ के शीर्ष निकाय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की यहां चल रही 13वीं बैठक के दौरान भारत ने विकास पर आयोजित सत्र में कहा कि ऐतिहासिक रूप से विकास के मुद्दे पर विकसित देशों के वादों की कोई कमी नहीं रही है क्योंकि हरेक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में ‘ऊंची-ऊंची’ बातों पर चर्चा होती रही है। वाणिज्य मंत्रालय ने कहा, “वादे तो बहुत किए गए हैं लेकिन इस बारे में कार्रवाई बहुत कम हुई है। इसकी वजह से अल्प-विकसित देशों सहित विकासशील देशों की समस्याएं और बढ़ गई हैं।
भारत ने मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की सहमति के लिए नए मुद्दों पर गौर करने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पहले लिए जा चुके फैसलों और अधूरे निर्णयों पर कार्रवाई नहीं होने तक नए मुद्दे नहीं लाए जाने चाहिए। भारत सहित विकासशील देश खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक अनाज भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने पर जोर दे रहे हैं लेकिन विकसित देशों ने अभी तक इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
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