नई दिल्ली । भारत सरकार (Government of India) ने सोमवार को पोप फ्रांसिस (Pope Francis) के निधन पर उनके सम्मान में 3 दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की। फ्रांसिस का सोमवार को निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने एक बयान में कहा, ‘पोप फ्रांसिस का 21 अप्रैल को निधन हो गया। उनके सम्मान में पूरे भारत में तीन दिवसीय राजकीय शोक रखा जाएगा।’ बयान में कहा गया कि इसके अनुसार, 22 अप्रैल और 23 अप्रैल को दो दिन का राजकीय शोक रहेगा। इसके अलावा, अंतिम संस्कार के दिन एक दिन का राजकीय शोक रहेगा। इसमें कहा गया कि राजकीय शोक की अवधि के दौरान पूरे भारत में उन सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा जहां नियमित रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। शोक की अवधि के दौरान मनोरंजन का कोई आधिकारिक कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा।
पोप के चयन की प्रक्रिया बहुत पवित्र और गोपनीय होती है। यह कोई लोकप्रियता की प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह चर्च की ओर से ईश्वरीय प्रेरणा से किया गया चुनाव होता है। फिर भी, हमेशा अग्रणी उम्मीदवार होते हैं, जिन्हें पापाबिले के नाम से जाना जाता है। इनमें कुछ ऐसे गुण होते हैं जो पोप बनने के लिए आवश्यक माने जाते हैं। बहुत कुछ वैसे ही जैसे पिछले वर्ष की ऑस्कर-नामांकित फिल्म कॉन्क्लेव में दर्शाए गए थे। बपतिस्मा प्रक्रिया से गुजरा कोई भी कैथोलिक पुरुष पोप बनने के लिए पात्र होता है। पोप उस व्यक्ति को चुना जाता है जिसे कार्डिनल के कम से कम दो-तिहाई वोट प्राप्त होते हैं।
कुछ संभावित उम्मीदवारों के बारे में जानिए-
कार्डिनल पीटर एर्दो
बुडापेस्ट के आर्कबिशप और हंगरी के प्राइमेट 72 वर्षीय एर्दो को 2005 और 2011 में दो बार काउंसिल ऑफ यूरोपीयन एपिस्कोपल कॉन्फ्रेंस का प्रमुख चुना गया था। इससे पता चलता है कि उन्हें यूरोपीय कार्डिनल की मान्यता प्राप्त है, जिनसे मतदाताओं का सबसे बड़ा समूह बनता है। उक्त पद पर रहते हुए एर्दो का कई अफ्रीकी कार्डिनल से परिचय हुआ क्योंकि काउंसिल अफ्रीकी बिशप कान्फ्रेंस के साथ नियमित सत्र आयोजित करती है।
कार्डिनल रेनहार्ड मार्क्स
मार्क्स म्यूनिख और फ्रीजिग के आर्कबिशप हैं। उन्हें फ्रांसिस ने 2013 में एक प्रमुख सलाहकार चुना था। बाद में मार्क्स को सुधारों के दौरान वेटिकन के वित्त की देखरेख करने वाली परिषद का प्रमुख नियुक्त किया गया।
कार्डिनल मार्क ओउलेट
कनाडा के 80 वर्षीय ओउलेट ने एक दशक से अधिक समय तक वेटिकन के प्रभावशाली बिशप कार्यालय का नेतृत्व किया। ओउलेट को फ्रांसिस की तुलना में अधिक रूढ़िवादी माना जाता है। लातिन अमेरिकी चर्च के साथ उनके अच्छे संपर्क हैं। उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक लातिन अमेरिका के लिए वेटिकन के पोंटिफिकल कमीशन का नेतृत्व किया है।
कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन
इटली के 70 वर्षीय पारोलिन को कैथोलिक पदानुक्रम में उनकी प्रमुखता को देखते हुए पोप बनने के प्रमुख दावेदारों में से एक माना जाता है। पारोलिन लातिन अमेरिकी चर्च को अच्छी तरह से जानते हैं। पारोलिन ने वेटिकन की नौकरशाही का प्रबंधन किया है, लेकिन उनके पास कोई वास्तविक पादरी अनुभव नहीं है।
कार्डिनल रॉबर्ट प्रीवोस्ट
अमेरिकी पोप का विचार लंबे समय से वर्जित रहा है, क्योंकि भू-राजनीतिक शक्ति पहले से ही अमेरिका के पास है। हालांकि शिकागो में जन्मे 69 वर्षीय प्रीवोस्ट ऐसे पहले पोप हो सकते हैं। उनके पास पेरू का व्यापक अनुभव है, पहले एक मिशनरी के रूप में और बाद में एक आर्कबिशप के रूप में। फ्रांसिस की उन पर वर्षों से नजर थी और उन्होंने 2014 में उन्हें पेरू के चिकलायो डायोसिस का कार्यभार संभालने के लिए भेजा था। वह 2023 तक उस पद पर रहे, फिर फ्रांसिस ने उन्हें रोम बुला लिया।
कार्डिनल रॉबर्ट सारा
गिनी के 79 वर्षीय सारा वेटिकन के लिटर्जी कार्यालय के सेवानिवृत्त प्रमुख हैं। उन्हें लंबे समय से एक अफ्रीकी पोप के लिए सबसे अच्छी उम्मीद माना जाता था। वह रूढ़िवादियों के प्रिय हैं।
कार्डिनल लुइस टैगले
फिलीपीन के 67 वर्षीय टैगले पहले एशियाई पोप हो सकते हैं। फ्रांसिस मनीला के लोकप्रिय आर्कबिशप को वेटिकन के ईसाई धर्म प्रचार कार्यालय का नेतृत्व करने के लिए रोम लाए थे, जो एशिया और अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में कैथोलिक चर्च की जरूरतों का ध्यान रखता है।
कार्डिनल माटेओ जुप्पी
जुप्पी बोलोग्ना के आर्कबिशप और इतालवी बिशप कान्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं। उन्हें 2022 में चुना गया था।
जानिए सदियों से कैसे चुने जाते हैं नए पोप
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद, दुनिया का ध्यान वैटिकन की एक चिमनी पर टिका रहेगा.इस चिमनी से सफेद धुआं उठने पर ही रोमन कैथोलिक चर्च को नए पोप मिलेंगे.88 साल की उम्र में पोप फ्रांसिस के निधन के बाद आयरिश-अमेरिकी कार्डिनल केविन फैरेल, कुछ समय के लिए रोमन कैथोलिक चर्च का काम काज संभालेंगे.आम तौर पर 15 दिन तक पोप फ्रांसिस के निधन का शोक मनाने के बाद, नए पोप को चुनने की प्रक्रिया शुरू होगी.रोमन कैथोलिक चर्च के उच्च अधिकारियों को कार्डिनल कहा जाता है.पोप फ्रांसिस के निधन के बाद दुनिया भर के कार्डिनल, रोमन कैथोलिक चर्च के मुख्यालय वैटिकन सिटी आएंगे.दुनिया के सबसे छोटे देश वैटिकन सिटी में कई कार्डिनल हर दिन बैठकें करेंगे और नए पोप का चरित्र कैसा होना चाहिए, इस बारे में अपने सुझाव रखेंगे.80 साल से ज्यादा उम्र के कार्डिनल, चर्च के काम काज से जुड़ी आम बैठकों में हिस्सा ले सकेंगे लेकिन पोप चुनने के लिए होने वाले अधिवेशन (कॉन्क्लेव) में वे शामिल नहीं होंगे.नए पोप के चुनाव के लिए होने वाले अधिवेशन में शामिल होने वाले कार्डिनल आपसी बातचीत में कई चीजें तय करेंगे.2013 में पोप बेनेडिक्ट ने संविधान में बदलाव कर नए पोप के चुनाव के टाइमटेबल में बदलाव किया.
उस बदलाव के बाद कार्डिनल चाहें तो जल्द ही नया पोप चुन सकते हैं या फिर पोप के निधन के 20 दिन बाद यह चुनाव किया ही जाना चाहिए.दुनिया से अलग थलग कर दिए जाएंगे कार्डिनल्सनए पोप के चुनाव के लिए अधिवेशन वैटिकन के सिस्तिने चैपल में होता है.इस दौरान कार्डिनल्स, कड़ी सुरक्षा के बीच वैटिकन सिटी के गेस्ट हाउस में रहेंगे.2005 में पोप बेनेडिक्ट के चुनाव के वक्त कार्डिनल्स को वैटिकन के 130 कमरों वाले सेंटा मार्टा गेस्ट हाउस में ठहराया गया था.उस दौरान गेस्ट हाउस को बाहरी दुनिया के लिए पूरी तरह सील किया गया था.नए पोप के चुनाव के लिए वोटिंग सिस्तिने चैपल में ही होगी.कॉन्क्लेव शब्द लैटिन भाषा से आया है.इसका अर्थ है “एक एक चाबी वाला” 13वीं शताब्दी में नए पोप का चुनाव करने के लिए कार्डिनल्स को एक हॉल में बंद कर दिया जाता था, ताकि वे बिना बाहरी दखल के जल्द से जल्द नए पोप का चुनाव कर सकें.इन दिनों भी पोप के चुनाव में शामिल होने वाले प्रतिनिधियों पर बाहरी दुनिया से संपर्क करने पर पाबंदी होती है.
अगले पोप के चुनाव तक कार्डिनल्स, फोन, इंटरनेट और अखबार भी नहीं देख पाएंगे.यह नियम कायदे ना टूटें, यह तय करना वैटिकन पुलिस की जिम्मेदारी होती है.अधिवेशन या कॉन्क्लेव के पहले दिन हर कार्डिनल एक वोट दे सकेगा.इसके बाद कार्डिनलों को दिन में दो बार मतदान करना होगा.नया पोप बनने के लिए चुनाव में दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ती है.अगर 13 दिन बाद भी कोई स्पष्ट रूप से नहीं जीतता है तो, सबसे आगे रहने वाले दो उम्मीदवारों के बीच चुनाव होता है.इस चुनाव में भी दो तिहाई बहुमत मिलना चाहिए.दो तिहाई बहुमत का मकसद, एक तरफ चर्च की सामंजस्य भरी एकता को दर्शाना है और दूसरी ओर, ये कमजोर उम्मीदवारों को हतोत्साहित करने का तरीका भी है.कैसे होगा नए पोप का आधिकारिक एलानकॉन्क्लेव के पोप चुन लेने के बाद, उस व्यक्ति से पूछा जाएगा कि क्या वे पोप पद की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं और अगर हां, तो वे अपने लिए कौन सा नाम चुनेंगे.अगर प्रस्तावित शख्स जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दे तो पोप चुनने की प्रक्रिया फिर से शुरूआती चरण से शुरू होगी.
हां कहने पर नए नए पोप को तीन अलग अलग साइजों वाली सफेद पोशाक ऑफर की जाएगी.पोशाक पहनने के बाद वह सिस्तिने चैपल के सिंहासन पर बैठेंगे और अन्य कार्डिनलों का स्वागत करेंगे.इस दौरान अन्य कार्डिनल नए पोप के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करेंगे और उनके आदेश के प्रति वफादार बने रहने का वचन देंगे.फिर पोप के चुनाव के लिए डाले गए बैलेट पेपरों को जलाया जाएगा.बैलेट पेपरों में एक खास रसायन होता है, जो जलने पर बेहद सफेद या काला धुआं छोड़ता है.सिस्तिने चैपल की चिमनी से जैसे ही सफेद धुआं निकलेगा, वैसे ही बाकी दुनिया को पता चल जाएगा कि नए पोप चुन लिए गए हैं.काला धुआं निकलने का मतलब है कि मामला वोटिंग में फंस गया है.नया पोप चुन लिए जाने पर कार्डिनल परिषद के सीनियर इलेक्टर, सेंट पीटर्स बासिलिका के स्क्वेयर की मुख्य बालकनी पर आएंगे और जनता के सामने लैटिन भाषा का वाक्य “हाबेमुस पापाम” कहेंगे.हाबेमुस पापाम का अर्थ है, “हमारे पास एक पोप हैं”इसके बाद नए पोप पहली बार जनता के सामने आएंगे और सेंट पीटर्स बासिलिका में उमड़े लोगों को पहला आशीर्वाद देंगे.
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