– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पिछले ढाई-तीन साल से भारत और चीन के संबंधों में जो तनाव पैदा हो गया था, वह अब कुछ घटता नजर आ रहा है। पूर्वी लद्दाख के गोगरा हॉट स्प्रिंग क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने लगी हैं। दोनों देशों के फौजियों के बीच दर्जनों बार घंटों चली बातचीत का यह असर तो है ही लेकिन ऐसा लगता है कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारे विदेश मंत्री जयशंकर की रही है। जयशंकर चीन के विदेश मंत्री से कई बार बात कर चुके हैं। वे चीन में हमारे राजदूत रह चुके हैं। इसके अलावा अब अगले सप्ताह समरकंद में होनेवाली शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में हमारे प्रधानमंत्री और चीन के नेता शी जिंगपिंग भी शीघ्र ही भाग लेने वाले हैं। हो सकता है कि वहां दोनों की आपसी मुलाकात और बातचीत हो। वहां कोई अप्रियता पैदा नहीं हो, इस दृष्टि से भी दोनों फौजों की यह वापसी प्रासंगिक है।
मोदी और शी के व्यक्तिगत संबंध जितने अनौपचारिक और घनिष्ट रहे हैं, उतने बहुत कम विदेशी नेताओं के होते हैं। इसके बावजूद दोनों में इस सीमांत मुठभेड़ के बाद अनबोला शुरू हो गया था। अब वह टूटेगा, ऐसा लगता है। यहां यह भी ध्यातव्य है कि गलवान घाटी मुठभेड़ के बाद चीन की वस्तुओं के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद भारत-चीन व्यापार में इधर अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। चीन के सिर पर यह तलवार लटकी रहती है कि भारत-जैसा बड़ा बाजार उसके हाथ से खिसक सकता है। चीन के नीति-निर्माताओं पर एक बड़ा दबाव यह भी है कि आजकल भारत पूर्व एशिया में अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान से जुड़कर चीन की नींद हराम क्यों कर रहा है? चीन के नेता इस तथ्य से भी चिंतित हो सकते हैं कि आजकल अमेरिकी सरकार पाकिस्तान की तरफ सामरिक और आर्थिक मदद का हाथ बढ़ा रही है। ऐसे में स्वाभाविक है कि चीन भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करे। यह तथ्य कितना रोचक है कि इस तनाव के बावजूद भारतीय, रूसी और चीन के फौजियों ने मिलकर सैन्य अभ्यास किया।
गोगरा हॉटस्प्रिंग (पेट्रोलिंग पाइंट 15) से पीछे हटने का फैसला तो अच्छी शुरुआत है लेकिन उससे भी गंभीर मामला दमचोक और देपसांग का है। ये मामले पुराने हैं लेकिन इन्हें हल करना तो दूर रहा, अभी इनके बारे में दोनों पक्षों में बात भी शुरू नहीं हुई है। दोनों पक्ष अपने-अपने दावों पर अड़े हुए हैं। भारत का कहना है कि चीन की फौज अप्रैल 2020 में नियंत्रण रेखा पर जहां थी, वहीं चली जाए। लेकिन चीन का कहना है कि भारतीय फौज ने उक्त तिथि तक चीन के क्षेत्र में घुसपैठ कर ली थी। इस आंशिक समझौते से यह आशा जरूर बंधती है कि दोनों पक्ष अब शेष विवादग्रस्त मुद्दों पर कम से कम बात तो शुरू करेंगे। दोनों देशों की नियंत्रण सीमा-रेखा पर 50-50 हजार जवान अभी भी टिके रहेंगे लेकिन उम्मीद है कि उनमें मुठभेड़ की नौबत नहीं आएगी। यदि वर्तमान आंशिक समझौता भारत-चीन संबंधों को सहज कर सके तो दोनों देश मिलकर 21वीं सदी का नक्शा बदल सकते हैं।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
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