– ऋतुपर्ण दवे
दुनिया में तरक्की के अलग-अलग पैमाने हैं। कहीं बड़ी इमारतों और विलासिता भरे जीवन को तो कहीं सादगी और भरपेट भोजन। हमारे यहाँ तो रोटी, कपड़ा और मकान को ही जीवन के तीन निशान मान लिए गए हैं। लेकिन अब वक्त बदल गया है। भारत की नई तस्वीर सारी दुनिया में बेहद अलग बनती जा रही है। इसी के साथ समृध्दि के नए आयाम भी दिखने लगे हैं।
समय के साथ मानव अस्तित्व और प्रगति के लिए, भारत ही नहीं समूची दुनिया को रोटी, कपड़ा और मकान के साथ बिजली, पानी और साफ पर्यावरण को जोड़ना ही होगा। अब समृध्द दुनिया की पहचान रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी और साफ सुथरा आसमान ही है। इसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दूसरी बड़ी आबादी वाले देश की तीसरी सबसे बड़ी हैसियत ने मुफ्त और साफ सुथरी बिजली की दिशा में दुनिया को नया रास्ता दिखाया है। भारत की यह बड़ी और महत्वपूर्ण उपलब्धि है जो आगे और भी बड़ी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल को अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिला जिससे दुनिया को भविष्य की सौर ऊर्जा का बेहतर विकल्प मिलना तय है। इस प्रेरक प्रसंग की पृष्ठभूमि को भी जानना जरूरी है।
दरअसल ब्राजील के रियो डी जनेरियो में 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जिसे पहला पृथ्वी शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है, उसकी शुरुआत हुई। इसमें जलवायु प्रणाली के साथ खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप का प्रतिरोध करने हेतु वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को स्थिर करने हेतु अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि की शुरुआत हुई। उद्देश्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना तथा पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाना है। इसकी हर साल बैठक होती है। यहीं 21वीं बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव से एक नई और आसन सुलभ सौर ऊर्जा के उपयोग पर विचार हुआ। इसे यूएनएफसीसीसी कॉप यानी यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेशन ऑन क्लाइमेट चेन्ज काँफ्रेन्स ऑफ पार्टीज कहा गया।
2020 कोरोना काल छोड़कर 1992 से 2021 तक इसकी 26 बैठकें हो चुकी हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण 21वीं बैठक रही जो 2015 में हुई और जिसमें भारत के प्रधानमंत्री व फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस के पेरिस में यूएनएफसीसीसी के पक्षकारों के सम्मेलन काप-21 में 121 सौर संसाधन समृद्ध देशों को चिन्हित कर शुरू किया गया था जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के बीच स्थित हैं।
सच में यह बहुत दूर की सोच है इससे एक विशिष्ट क्षेत्र में उत्पन्न सौर ऊर्जा को किसी दूसरे क्षेत्र की बिजली की मांग को पूरा करने के लिये स्थानांतरित करना है। इसके महत्व को इससे भी समझा जा सकता है कि इसमें 101 वें देश के रूप में अमेरिका भी शामिल हो गया है। इसे अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) नाम दिया गया है।
सचमुच भारत ने दुनिया को सौर ऊर्जा की ताकत का अहसास तो कराया है लेकिन एक हकीकत यह है कि खुद भारत में लोगों की इसमें उतनी दिलचस्पी नहीं दिख रही है। बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन के क्षेत्र में भारत की सुधरती ग्रेडिंग अच्छे संकेत हैं। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की अद्भुत क्षमता है। औसतन देश को सालाना 300 दिन सूर्य की भरपूर रोशनी मिलती है जिसमें 748 गीगावॉट सोलर एनर्जी पैदा करने की क्षमता है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत नेशनल सोलर मिशन भी चला रहा है जिसकी प्रगति की विश्व बैंक ने 2017 की अपनी रिपोर्ट में प्रशंसा की है। लेकिन भारतीय धरातल पर तस्वीर अलग है। दुनिया में सौर उर्जा उत्पादन की सफलता का अंदाज इसी से समझ में आता है कि एक दशक में सौर बिजली की कीमत 82 प्रतिशत पर आ गई है। अनुमान है कि 2040 तक इसकी कीमत 66 प्रतिशत से भी नीचे आ जाएगी। यह तब है जब देश में इसके उपयोग का बहुत कम चलन है।
जहाँ 1947 में आजादी के वक्त देश में सिर्फ 1362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था। वहीं कुछ हफ्ते पहले 30 नवंबर 2021 की स्थिति में 3,92,017 मेगावॉट बिजली पैदा हो रही है। इसमें केन्द्रीय उपक्रमों से 98,547 राज्य के उपक्रमों से 1,04,384 निजी क्षेत्रों से 1,89,087 मेगावॉट का सहयोग है। इस उत्पादन में पूरे देश में केवल सौर ऊर्जा का हिस्सा देखें तो वह केवल 48,557 मेगावॉट ही है जो महज 12.4 फीसदी है। वह भी उस आसमान के नीचे, जहाँ सौर ऊर्जा की अकूत संभावनाएँ हैं। भविष्य में बिजली की माँग बढ़नी है। बीते 20-25 वर्षों में जिस तरह घर-घर कूलर, फ्रिज, मिक्सर, हीटर, गीजर, ओवेन आदि उपयोग होने लग गए हैं। वहीं जल्द ही शहरों व संपन्न ग्रामीणों की तर्ज पर घर-घर कूलर की जगह एयर कंडीशनर और दूसरे तमाम गैजेट्स लेंगे ही। ऐसे में बिजली की जबरदस्त माँग तो बढ़नी है।
एलईडी या स्टार रेटिंग उपकरणों के जरिए कम खपत की बात और बिजली बचाना ठीक है। लेकिन तेज औद्योगिकीकरण, सुविधाभोगी बनाने वाले बिजली के उपकरणों की भरमार के बीच ‘तरक्की का साथ बिजली का हाथ’ से इनकार नामुमकिन होगा। ऐसे में घूम-फिरकर सवाल सौर ऊर्जा पर आ टिकता है। सवाल यह भी कि इसके उपयोग के प्रति लोगों में वैसी रुचि क्यों नहीं जागृत हो पा रही है जो तमाम संभावनाओं के बाद इस क्षेत्र में दिखनी चाहिए थी? जबकि इसके लिए केन्द्र और तमाम राज्य सरकारों ने पृथक मंत्रालय और जिले-जिले विशेष कार्यालय बना रखे हैं।
दरअसल जमीनी हकीकत और भारी भरकम सरकारी खानापूर्ति के चलते ही नगर-नगर, डगर-डगर, घर-घर, खेत-खेत सौर ऊर्जा का विस्तार नहीं हो पा रहा है। अमूमन आम भारतीय पेचीदगियों से बचता है। इसी कारण ज्यादातर लोगों को देश में चल रही अधिकांश योजनाओं के बारे में या तो पता नहीं होता या फिर जानना भी नहीं चाहता। दरअसल दफ्तरों की दौड़, कागजों की होड़, तरह-तरह की अनापत्तियां जुटाना, शपथ-पत्र व दूसरी अनावश्यक औपचारिकताओं की ऊल-जलूल फेहरिस्त में इतनी परेशानी झेलनी पड़ती है कि साधारण भारतीय योजनाओं से लाभ तो दूर सोचता तक नहीं है। हाँ, केन्द्र और राज्य सरकारों का ज्यादा ध्यान बड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं में है, होना भी चाहिए। लेकिन हरित क्रान्ति और श्वेत क्रान्ति की तर्ज पर सौर ऊर्जा क्रान्ति जैसी सोच पैदाकर सिंगल विन्डो आवेदन और बिना तामझाम के स्वीकृति से लक्ष्य को तय समय से बहुत पहले पाया जा सकता है।
देश में 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीनीकरणीय ऊर्जा जिसमें सौर ऊर्जा के अलावा भू-तापीय, पवन, ज्वार, जल और बायोमास से भी उत्पादन कर 2050 तक जरूरत की आधी बिजली सोलर पैनल से पैदा करने की क्षमता विकसित करना शामिल है। भारत इसी बदौलत 2070 तक शून्य ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जन वाला देश बनने का लक्ष्य हासिल कर पाएगा। इसके लिए अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 5630 गीगावॉट करनी होगी जिसके लिए अभी से न केवल तैयारियाँ बल्कि सुलभ योजनाएँ, पब्लिक फ्रेन्डली काम करने वाली ऐसी एजेन्सियाँ बनें जो मेक, मेड, फिटिंग, क्वालिटी के पेंच में लोगों को उलझाकर अपने मुताबिक माहौल बना अतिरिक्त लाभ कमाने की जुगत की बजाए हर भारतीय छत के लिए तय औसत मॉडल पर काम करे। कहीं फिटिंग में कुछ ज्यादा एक्सेसीरिज तो कहीं कम से संतुलन का फॉर्मूला बने जिसका साल में ऑडिट कर कांट्रेक्ट एजेंसी के घट-बढ़ की पूर्ति की जाए। जब एक आवेदन पर सारा कुछ क्षेत्र की विभागीय एजेंसी, कांट्रेक्टर को ही करना होगा तो इससे पेचीदिगियाँ घटेंगी और जनसाधारण की जबरदस्त रुचि बढ़ेगी। निश्चित रूप से घर-घर सोलर रूफ टॉप होंगे जिससे भरपूर बिजली बनेगी जो देश की तरक्की के साथ ज्यादा होने पर फिलहाल स्थानीय ग्रिड तो भविष्य में ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ जाकर घर-घर की अतिरिक्त कमाई का जरिया भी बनेगी।
यदि घरों की अतिरिक्त सोलर बिजली का लेखा-जोखा बैंकों की तर्ज पर क्रेडिट-डेबिट फॉर्मूला से होने लग जाता और बिजली दे, वापस बिजली ले- के साथ ही महंगी बिजली बेचना और सस्ती खरीदना वाली विसंगति भी खत्म हो जाती तो सोलर पैनल योजना और लोकलुभावन हो जाती। कई राज्य कुछ यूनिट मुफ्त तो कुछ सस्ती बिजली दे रहे हैं।
राजनीतिज्ञों के लिए बड़ी रेवड़ी भी बन रही है मुफ्त की बिजली। लेकिन यदि एक बार के निवेश से भविष्य में घर-घर अपने उपयोग की स्वतः बिजली बनने लग जाती तो देश को विकास का नये पंख लग जाते। प्रदूषण रहित स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन से ईंधन व धन, दोनों की भारी बचत के साथ पर्यावरण की भी रक्षा हो पाती। भविष्य का ऑटोमोबाइल सेक्टर भी बिजली आधारित होना है। इसलिए जरूरत है कि ऐसा कुछ ऐसा किया जाए ताकि सोलर बिजली में सबकी जबरदस्त रुचि जागती और भारत दुनिया का सुपर पॉवर बनने के साथ सबसे बड़ा पॉवर सेक्टर भी बन पाता।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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