नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी 2024 में सत्ता की हैट्रिक लगाकर इतिहास रचना चाहती है तो विपक्षी दल एकजुट होकर नरेंद्र मोदी से मुकाबला करना चाहता है. बसपा प्रमुख मायावती फिलहाल किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है और अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. इसके बावजूद INDIA गठबंधन अभी भी मायावती को साथ लेने की कोशिश में है. सपा भले ही इंकार करे, लेकिन कांग्रेस को बसपा का इंतजार है. सोमवार को कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के साथ पार्टी के यूपी नेताओं के साथ बैठक में भी एक धड़ा मायावती के साथ गठबंधन करने की पैरवी की है.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे हो बाद मंगलवार को होने वाली INDIA गठबंधन की बैठक सीट शेयरिंग का रोडमैप तैयार करेगी, संयुक्त रैली, चुनावी अभियान के कार्यक्रम को अंतिम रूप देंगी. विपक्षी पार्टियां लोकसभा चुनावों में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए वैकल्पिक, सकारात्मक एजेंडे पर चर्चा करेंगी. सूत्रों की माने तो INDIA गठबंधन मायावती के अंतिम रुख का इंतजार करेगी. इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि विपक्षी गठबंधन में मायावती के अंतिम रुख तक कांग्रेस इंतजार करेगी. सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है, जिसके चलते कांग्रेस लास्ट टाइम तक मायावती को लेने को तैयार है?
दरअसल, मायावती ने पहले कहा था कि 2024 के चुनाव में हम किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. मायावती ने एनडीए के साथ-साथ विपक्षी गठबंधन से भी दूरी बनाए हुए हैं. अकेले चुनाव लड़ने की बात करने वाली मायावती के गठबंधन के रुख में बदलाव आया है और उन्होंने कहा, जिस दल का वोट ट्रांसफर हो सकते हैं, उसके साथ गठबंधन कर सकती हैं. मायावती के गठबंधन पर नरमी रुख अख्तियार करने के बाद कांग्रेस की मंशा है कि बसपा को साथ लिया जाना चाहिए.
कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने कहा कि हम चाहते हैं कि यूपी में विपक्षी गठबंधन मजबूत बने. आखिरी वक्त तक इंतजार करेंगे कि वो गठबंधन में शामिल हों. राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. प्रमोद तिवारी ही नहीं बल्कि यूपी कांग्रेस के तमाम नेताओं ने भी सोमवार शाम मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ बैठक में भी कहा कि मायावती INDIA गठबंधन में आए जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है. यूपी कांग्रेस नेताओं के इस बयान पर किसी ने कोई टोका-टाकी नहीं गई बल्कि कांग्रेस अब उन्हें लेने के लिए आखिरी वक्त तक इंतजार करना चाहती है.
कांग्रेस नेता यह बात मान रहे हैं कि यूपी में बिना बसपा को लेकर बीजेपी को हराना आसान नहीं है. सपा की तुलना में बसपा ज्यादा सियासी मुफीद कांग्रेस को लग रही है. सपा के साथ गठबंधन करने का फायदा यूपी के कुछ इलाके में ही हो सकता है जबकि बसपा अगर गठबंधन का हिस्सा बनती है तो यूपी ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों में भी राजनीतिक लाभ INDIA गठबंधन को मिलेगा. इसकी वजह यह है कि बसपा का सियासी आधार यूपी के साथ-साथ एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड जैसे तमाम राज्यों में है.
बसपा का कोर वोटबैंक दलित समुदाय है, जो अभी भी यूपी सहित देश के दूसरे तमाम राज्यों में भी है. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि बसपा अगर विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनती है तो फिर दलित समुदाय का वोट विपक्षी खेमे के साथ जुट जाएगा. इसी बात को समझते हुए कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को यूपी दौरा करने की अपील की है. इसके पीछे दलित वोटों का गणित है. ऐसे में कांग्रेस को लग रहा है कि मायावती और मल्लिकार्जुन खरगे एक साथ खड़े नजर आते हैं तो फिर दलित वोट एकजुट रहेगा. मायावती के साथ लेने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि INDIA गठबंधन में कोई पार्टी दलित आधार वाली नहीं है.
बसपा में भी एक धड़ा है, जो 2024 में गठबंधन को लेकर टोह ले रहा है. बसपा के कई सांसद और नेता यह मान रहे हैं कि बिना गठबंधन के चुनाव लड़ना जोखिम भरा होगा, क्योंकि चुनाव अब दो ध्रुवी होता जा रहा है. एक धड़ा बीजेपी को जिताने के लिए वोटिंग करता है तो दूसरा बीजेपी को हराने के लिए मतदान करता है. गठबंधन की सियासत में अकेले चुनाव लड़ना रणनीतिक रूप से भी सही नहीं है. मौजूदा सांसदों को भी अकेले चुनाव लड़ने पर अपनी जीत की उम्मीद नहीं दिख रही है, क्योंकि 2014 में बसपा को अकेले चुनाव लड़ने पर एक भी सीट नहीं मिली थी.
2019 में बसपा को सपा-आरएलडी के साथ चुनाव लड़ने का लाभ मिला था और 10 सांसद जीतने में सफल रहे हैं. इसीलिए बसपा यूपी में भी उन दलों की तलाश में है, जिनके साथ चुनाव लड़ने का लाभ उसे मिल सके. सूत्रों की मानें तो बसपा में भी एक धड़ा है, जो कांग्रेस और आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फायदा और नुकसान का आकलन कर रहा है. इसके लिए एक सर्वे एजेंसी के द्वारा पता किया जा रहा है. इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बसपा अपने पत्ते नहीं खोल रही है. देखना है कि बसपा क्या स्टैंड लेती है?
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