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    भारत ने 34 साल बाद अरुणाचल में चीन को दी मात

  • October 26, 2020

    नई दिल्ली । भारत ने 34 साल बाद​​ अरुणाचल प्रदेश में सुमदोरोंग चू फ्लैशपॉइंट के पास 202 एकड़ उस रणनीतिक भूमि का अधिग्रहण कर लिया है, जिस पर बरसों से चीन की नजर थी। इसी जमीन को लेकर चीन के साथ 1986 में भारत के साथ विवाद हुआ था और दोनों देशों की सेनाएं आठ महीने तक आमने-सामने रही थीं। मौजूदा गतिरोध से पहले चीन के साथ यह आख़िरी मौका था, जब बड़ी तादाद में करीब 200 भारतीय सैनिकों को वहां तैनात किया गया था।

    सुमदोरोंग चू भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के तवांग ज़िले में बहने वाली एक नदी है। यह नमका चू और न्यामजांग चू के संगम स्थल से पूर्वोत्तर में बहती है। इसी नदी के किनारे लुंग्रो ला पास के पास 1986 में 202 एकड़ के चराई मैदान पर चीनी सेना ने कब्ज़ा करने की कोशिश की थी। सुमदोरोंग चू विवाद की शुरुआत साल 1980 में हुई थी, जब इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आई थीं। साल 1982-83 में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन जनरल केवी कृष्णा राव की उस योजना को मंजूरी दी, जिसमें भारत-चीन बॉर्डर (एलएसी) पर ज्यादा से ज्यादा तैनाती किये जाने का प्रस्ताव था। दरअसल, इंदिरा गांधी चीन से युद्ध की स्थिति में अरुणाचल प्रदेश के तवांग को हर हाल में बचाना चाहती थीं। इस पर 1984 की गर्मियों में भारत ने सुमदोरोंग चू में ऑब्जर्वेशन पोस्ट स्थापित कर दी। यहां गर्मियों में जवान तैनात रहते थे और सर्दियों में यह चौकी खाली रहती थी।

    अगले दो साल तक ऐसा ही चला लेकिन जून 1986 में भारत की पेट्रोलिंग पार्टी ने देखा कि इस इलाके में चीनी सैनिक स्थाई चौकियां बना रहे हैं और चीन ने अपना हेलीपैड भी बना लिया था। इस पर भारत ने अपने 200 सैनिक स्थाई रूप से तैनात कर दिए। भारत ने चीन के सामने प्रस्ताव रखा कि वह सर्दियों तक अपनी फौज इस इलाके से हटा दे तो भारत इस जगह पर कब्जा नहीं करेगा लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया था। दोनों देशों के बीच 1987 में इस जमीन को लेकर इतना गतिरोध बढ़ा कि भारतीय और चीनी सेना 8 महीने तक आमने-सामने रहीं। इसके बाद से 202 एकड़ जमीन का यह टुकड़ा दोनों देशों के बीच विवादित बना रहा और चीन की नजर हमेशा इस जमीन पर बनी रही। चीन सीमा से लगा यह सुमदोरोंग चू क्षेत्र सामरिक महत्व का है, इसीलिए 1986 में लुंगरो ग्राज़िंग ग्राउंड पर चीन कब्जा करके सुमदोरोंग चू घाटी पर एक कमांडिंग स्थिति हासिल करना चाहता था।

    अब जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ छह महीने से गतिरोध बरकरार है, जहां मई की शुरुआत से आगे के स्थानों पर सैनिकों को तैनात किया गया है। एक तरफ सीमा पर जवानों की तैनाती बढ़ाई गई है तो चीन सीमा तक अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए भारत की ओर से हर तरह की तैयारियां की जा रही हैं। इसीलिए भारत ने चीन सीमा के करीब तवांग शहर से 17 किमी दूर बोमदिर गांव में लुंगरो ग्राज़िंग ग्राउंड (जीजी) की इसी 202.563 एकड़ पर नए रक्षा ढांचे को विकसित करने की योजना बनाई है। इसीलिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 12 अक्टूबर को तवांग जाने वाली एक महत्वपूर्ण सड़क पर नेचिफू सुरंग की भी आधारशिला रखी है। इसका निर्माण भी सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) करेगा। इस सुरंग के बनने के बाद सेना के लिए चीन सीमा तक जाना आसान होगा।

    सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में गृह मंत्रालय के माध्यम से ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत भूमि संसाधनों के विभाग को भूमि अधिग्रहण के लिए एक अनुरोध भेजा। 2013 के अधिनियम के अनुसार रक्षा उद्देश्यों, रेलवे और संचार के लिए ग्राम निकाय की बैठक की आवश्यकताओं के बिना किसी भी भूमि को अधिग्रहण किया जा सकता है। स्थानीय लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले इस सामुदायिक चरागाह के बारे में भारतीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अब अधिसूचित किया है कि रक्षा मंत्रालय को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के तहत ‘उचित अधिकार’ है। इसका मतलब यह है कि रक्षा मंत्रालय को अब कुल 250 लोगों की आबादी वाले बोमदिर गांव के इस चरागाह पर अधिकार दिया गया है।

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