– डा. रमेश ठाकुर
‘किसान दिवस’ पर पुरुष किसानों की चर्चा जबकि चर्चाओं की हकदार महिला किसान भी हैं। खेती के कामों में दिये जाने वाले उनके नियमित योगदान को कमतर आंका जाता है। जनगणना 2011 के मुताबिक भारत में तकरीबन 6 करोड़ के आसपास महिला किसानों की संख्या बताई गई है। हालांकि धरातल पर उनकी संख्या कहीं ज्यादा है। बीते एकाध दशकों से ग्रामीण इलाके के पुरुषों विशेषकर युवाओं का रुझान खेती बाड़ी की बजाय नौकरियों व व्यापार में ज्यादा बढ़ा है। उनके नौकरियों या व्यापार में चले जाने के बाद खेती बाड़ी की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है, जिसे महिलाएं पूरी जिम्मेदारी से निर्वाह करती हैं। घरों का काम निपटाने के बाद वह खेतों में लग जाती हैं। इस लिहाज से ये आंकड़ा पुरुषों के मुकाबले आधे से भी ज्यादा हो जाता है। बावजूद इसके महिलाओं की भूमिका को पर्दे के पीछे रखा जाता है।
महिलाएं खेतीबाड़ी में किस तरह लगी हैं, इसकी ताजा तस्वीर इस समय हमारे सामने है। दिल्ली में तीन सप्ताह से किसानों का बड़ा आंदोलन हो रहा है। देश के अलग-अलग प्रांतों के अन्नदाताओं ने राजधानी के विभिन्न हिस्सों में डेरा डाला हुआ है। जबकि इस वक्त कुछ जगहों पर धान की कटाई और गेहूं में पानी लगाने का है। दूसरी मौसमी फसलें भी खेतों में लगी हैं, उन सभी की देखभाल महिलाएं ही कर रही हैं। किसान आंदोलन में डटे हैं। उनको पता है उनकी गैर मौजूदगी में उनकी औरतें खेती संभाल लेंगी। विगत कुछ वर्षों से मध्यम और सीमांत जोतकार दूसरे काम-धंधों की तरफ मुड़ गए हैं। उनकी जमीनें घरों की महिलाएं जोतती हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती सबसे ज्यादा होती है। यूपी के लखीमपुर और पीलीभीत जिले में गन्ने की खेती बहुतायत में होती है, इस समय वहां गन्ने की कटाई बड़े स्तर पर चालू है, जिसमें ज्यादातर महिलाएं लगी हैं।
समाज में आधी आबादी के सशक्तिकरण और उनके उत्थान की बातें जोर-शोर से होती हैं। उनको मुकम्मल हक फिर भी नहीं मिल पाता। पर, ऐसे हकों को अब साहसी महिलाएं अपने बूते हासिल करने लगी हैं। बिहार में ‘किसान चाची’ के नाम से प्रसिद्ध एक महिला किसान हमसबों के लिए बड़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने कई जिलों में मीलों दूर साईकल चलाकर किसानी के प्रति ग्रामीण महिलाओं में अलख जगाई। उन्होंने देखा, जिन किसानों के पास खेती के लिए कम जमीनें थीं। घर-परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। ऐसे में किसान चाची में पुरुषों को शहरों में जाकर नौकरी करने और महिलाओं को खेती करने का रामबाण नुस्खा दिया। महिलाओं ने उनकी सलाह मानी, नतीजा ये निकला कि उनके घरों में महिला-पुरुष दोनों कमाने के लिए सशक्त हुए। बिहार में किसान चाची के प्रयास से आज कई जिलों की महिलाएं खेती बाड़ी करती हैं। महिलाओं में खेती के प्रति जागरुकता जगाने के उनके कार्यों को देखते हुए दो वर्ष पूर्व भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से भी नवाजा।
आंकड़ों के अनुसार खेती बाड़ी के काम में 32.8 प्रतिशत महिलाएं और 81.1 फीसदी पुरुष जुड़े हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ये कागजी आंकड़े सच्चाई बताने से मुकर जाते हैं। नहीं बताते कि इनमें 81.1 फीसदी पुरुष किसानों के घर की औरतें, वह औरतें जो किसान नहीं कहलातीं। महिलाएं फसलों की बुआई से लेकर, निराई, फसल काटने आदि में अपनी भागीदारी बढ़-चढ़कर निभाती हैं। लेकिन इनकी मेहनत कहीं नहीं गिनी जाती। आजादी से लेकर अभीतक महिला किसानों के नाम पर कोई कार्य योजनाएं नहीं बनाई गई। कृषि ऐसा सेक्टर है जो जीडीपी को कोरोना जैसे संकट काल में भी संजीवनी देता है। जीडीपी के ओवरऑल ग्रोथ में तकरीबन बीस फीसदी भूमिका अदा करता है। लेकिन वह आंकड़े हमें सार्वजनिक रूप से नहीं बताते कि सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं का कितना योगदान होता है? दरअसल, सिस्टम के पास इकनॉमिक ग्रोथ में आधी आबादी की भूमिका नापने का कोई पैमाना नहीं है।
आधी आबादी के उत्थान के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल एक अच्छी पहल की है। महिला किसानों के लिए ‘महिला किसान सशक्तीकरण योजना’ का श्रीगणेश किया। योजना के तहत 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 84 परियोजनाओं के लिए 847 करोड़ रुपए आवंटित किए। देश में महिला किसानों की बढ़ती संख्या और कृषि से जुड़ी उनकी वर्तमान स्थिति मे सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के मकसद से योजना की शुरुआत की। कहा गया है कि योजना से महिलाओं को कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अवसर उपलब्ध होंगे। इसमें खेती करने के लिए महिलाओं को कर्ज व खाद और बीच में सब्सिडी देने का प्रावधान है। लेकिन, साल भर पहले शुरू हुई इस योजना की महिला किसानों को ज्यादा जानकारी नहीं है। सरकार को इस योजना का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, ताकि यह जन-जन तक पहुंच सके और महिलाएं लाभान्वित हो सकें।
योजना संख्या बल के आधार पर बनती हैं और तय होती हैं। 2011 की जनगणना रिपोर्ट में भारत की छह करोड़ से ज्यादा औरतें खेती से जुड़ी बताई गईं। पर, जमीन पर महिला किसानों का हक फिर भी नहीं दिखता। किसानी के अच्छे परिणाम की वाहवाही पुरुष किसानों के हिस्से में चली जाती है। निश्चित रूप इसे नाइंसाफी ही कहेंगे। संयुक्त राष्ट्र की यूनएडीपी की रिपोर्ट बताती है कि किसानी में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 फीसदी है जिन्हें किसान नहीं, बल्कि महिला मजदूर कहा जाता है। अरे भई, किसान क्यों नहीं? खेती से जुड़ी महिलाओं को मुकम्मल रूप से किसान माना जाए और उनके लिए वातावरण भी बनाया जाना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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