नई दिल्ली (New Delhi) । इस वर्ष हम एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के 76 गौरवशाली वर्ष को पूरा कर रहे हैं। 15 अगस्त 1947 का दिन पूरे देश की अर्थव्यवस्था (economy) के पुनर्निर्माण की शुरुआत भी थी। 75 वर्षों में, भारतीय लोकतंत्र (Indian democracy) ने कई मोड़ लेते हुए एक लंबा सफर तय किया है। बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था के 2031 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। दुनिया के सामने भारत का कद बढ़ा है और हमें एक ‘महाशक्ति’ के रूप में देखा जा रहा है। 1947 में भारत की स्वतंत्रता उसके आर्थिक इतिहास का सबसे बड़ा कदम था। अंग्रेजों द्वारा किए गए विभिन्न हमलों से देश बुरी तरह से गरीब और आर्थिक रूप से ध्वस्त हो गया था।
पिछले 76 सालों में भारत ने आर्थिक स्वतंत्रता को अपनाया और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में काम किया। आजादी के समय खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाला भारत अब आत्मनिर्भर भारत बन दुनियाभर के देशों में खाद्यान्न निर्यात कर रहा है। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप रिकॉर्ड अनाज उत्पादन हुआ। भारत अब दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र बन चुका है। चीनी का यह दूसरा और कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक। 1970 में, श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) ने देश को दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश में बदल दिया।
सड़क और राजमार्ग निर्माण, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का विस्तार देशभर में गतिशीलता बढ़ाने के लिए किया गया है। भारतीय रेलवे अब दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्कों में से एक है जिसमें 1,21,520 किमी ट्रैक और 7,305 स्टेशन शामिल हैं। भाग्य की रेखाओं की तरह सड़कें तरक्की का रास्ता होती हैं।
देश के डिजिटली विकास
अस्सी के दशक के मध्य में बड़े पैमाने पर कम्प्यूटरीकरण का आगमन, स्वतंत्रता के बाद के भारत के लिए महत्वपूर्ण सकारात्मक विकासों में से एक है, जिसने अंततः भारत को एक विशाल आईटी शक्ति के रूप में माना। देश का भविष्य ‘डिजिटल’ है। डिजिटल लेनदेन का उदय और छोटे व्यापारियों में क्यूआर कोड की बढ़ती लोकप्रियता सुर्खियों में है, मंदिरों में क्यूआर कोड से डिजिटल दान हो रहा।
वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण करके औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी के साथ-साथ विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। 1991 के सुधारों के कारण वैश्विक जीडीपी में भारत की रैंकिंग तेजी से बढ़ी। किसी भी अर्थव्यवस्था का उत्थान और पतन काफी हद तक उसके वित्तीय क्षेत्र के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आज़ादी के 76 सालों में बैंकिंग की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है और यह कई पड़ावों से होते हुए आगे बढ़ रही।
बैंकों का बढ़ता नेटवर्क
1947 में जहां 664 निजी बैंकों की लगभग 5000 शाखाएं थीं वही आज 12 सरकारी बैंकों, 22 निजी क्षेत्र के बैंकों, 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 46 विदेशी बैंकों की लगभग 1 लाख 40 हजार शाखाएं देश में कार्यरत हैं। इस वर्ष बजट में भारत ने एक डिजिटल मुद्रा की योजना की घोषणा की है। एचडीएफसी बैंक के मूल हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) के साथ विलय के बाद यह दुनिया के शीर्ष 10 सबसे मूल्यवान बैंकों में से एक हो जाएगा और यह विश्व के शीर्ष 10 क्लब में जगह बनाने वाला पहला भारतीय बैंक भी होगा।
फार्मास्यूटिकल्स में भारत अब एक प्रमुख उत्पादक है और नई दवाओं के विकास के लिए नित नए अनुसंधान कर रहा है। इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिकल मशीनरी में देश नए वैश्विक बेंचमार्क छू रहा। 60 के दशक में, सेवा क्षेत्र में कामकाजी आबादी का केवल 4% कार्यरत था जो अभी 30% से अधिक लोगों को रोजगार दे रहा। इस समय सेवा क्षेत्र का जीडीपी में 50% से अधिक का योगदान है, और भविष्य में आंकड़े बढ़ने की उम्मीद है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स देश की अर्थव्यवस्था को लगातार मजबूत बना रहे।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved